कोलकाता में रोजाना 30 फीसद स्वच्छ जल हो रहा बर्बाद
- देश के कई हिस्सों में भारी जल संकट के बीच महानगर में हजारों लीटर पानी हो रहा बर्बा
- देश के कई हिस्सों में भारी जल संकट के बीच महानगर में हजारों लीटर पानी हो रहा बर्बाद
- कोलकाता नगर निगम पानी की बर्बादी रोकने में पूरी तरह विफल
जागरण संवाददाता, कोलकाता : देश का कई हिस्सा एक ओर जहां भारी जल संकट के दौर से गुजर रहा है, ऐसे समय में कोलकाता शहर का करीब 30 फीसद पानी रोजाना बर्बाद हो रहा है। कोलकाता नगर निगम (केएमसी) द्वारा हाल में किए गए एक सर्वेक्षण में महानगर में पानी की बर्बाद को लेकर जो तस्वीरें सामने आई है वह केएमसी प्रबंधन व सरकार पर सवाल खड़े कर रही है। सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, केएमसी अपने तीन प्रमुख वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के माध्यम से प्रतिदिन 450 मिलियन गैलन स्वच्छ पानी का उत्पादन करता है, इसमें से लगभग 30 फीसद पानी बर्बाद हो जाता है।
केएमसी प्रशासन ने 2015 में पलता वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और गार्डेनरीच वाटर वर्क्स के संवर्द्धन व नवीनीकरण के बाद उत्तर, मध्य व दक्षिण कोलकाता के कई हिस्सों में 24 घंटे व सातों दिन जल आपूर्ति सेवा शुरू करने और 2020 तक इस लक्ष्य को प्राप्त करने की पूरी योजना बनाई थी। लेकिन, चार साल बाद स्थिति को देखकर साफ पता चलता है कि यह महत्वाकांक्षी योजना तब तक संभव नहीं होगा जब तक निगम प्रशासन जल वितरण नेटवर्क में मौजूद छेद और फिल्टर किए गए पानी की बर्बादी रोकने में कामयाब नहीं होती। दरअसल, पानी की बर्बादी रोकने के लिए उचित कदम उठाना एशियाई विकास बैंक (एडीबी) द्वारा निर्धारित एक बड़ी शर्त है, इसके आधार पर ही वह जल आपूर्ति प्रणाली के लिए धन जारी करता है। एडीबी से महत्वपूर्ण फंड हासिल करने में अब निगम प्रशासन के सामने सबसे प्रमुख बाधा फिल्टर किए गए पानी की बर्बादी है।
केएमसी के जल आपूर्ति विभाग के एक अधिकारी ने स्वीकार किया कि कुल फिल्टर किए गए पानी का कम से कम तीस फीसद हिस्सा प्रतिदिन बर्बाद हो जाता है। उन्होंने इसके पीछे दो प्रमुख कारण बताए, जिसमें पानी की पुरानी पाइपलाइनों से लीकेज और सड़क किनारे लगे नलों व टैप्स से पानी का बहाव शामिल है। अधिकारी के अनुसार, एक दिन में उत्पादित फिल्टर किए गए पानी का कम से कम 10 फीसद हिस्सा केवल महानगर में लगे 17,000 नलों के माध्यम से बर्बाद हो जाता है। इन नलों में से केवल एक भाग पानी ही मलिन बस्तियों की पानी की जरूरतों को पूरा करता है। इसके अलावा शहर भर के घरों में पीने योग्य पानी की भारी बर्बादी होती है। अधिकारियों की मानें तो पानी की बर्बादी रोकने के लिए शायद घरों में मीटर लगाने और उपयोगकर्ताओं को जिम्मेदार बनाने के लिए उनसे मामूली चार्ज वसूलने का कदम कारगर हो सकता है।