अब पटसन से बनेगा बायो-फ्यूल
आइआइटी खड़गपुर के प्रोफेसर सैकत चक्रवर्ती की टीम को मिली सफलता, बढ़ते प्रदूषण के खतरे को नियंत्रित करने में कारगर साबित होगी खोज
खड़गपुर (दुर्गेश चंद्र शुक्ला)। उन्नत तकनीक के क्षेत्र में नित नए कीर्तिमान कायम कर रहे आइआइटी खड़गपुर ने बायो-फ्यूल के क्षेत्र में एक नई छलांग लगाते हुए पहली बार पटसन (जूट) से बायो-फ्यूल तैयार करने में सफलता हासिल की है। यह नया आविष्कार देश-दुनिया में बढ़ते प्रदूषण के खतरे को नियंत्रित करने में कारगर साबित होगा। खास बात यह है कि इस नई खोज के पेटेंट कराने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है।
इस नई खोज में जुटी टीम का नेतृत्व कर रहे आइआइटी खड़गपुर के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर सैकत चक्रवर्ती कहते हैं कि हम अक्सर इस कहावत के बारे में सोचते हैं कि रोकथाम इलाज से बेहतर है। प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए चल रहे प्रयासों के मद्देनजर भी यह कहावत चरितार्थ होती है।
पेट्रोल और डीजल जैसे जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल की जगह विभिन्न स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का उपयोग बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम में कारगार होता है। इसको देखते हुए हम लोगों ने उच्च ऊर्जा वाले गैर-खाद्य पदार्थ पटसन से बायो-फ्यूल तैयार किया है। इसके बड़े पैमाने पर उपलब्ध होने की संभावना है जो परिवहन क्षेत्र
में अपनी अहम भूमिका निभाने को तैयार होगा।
इसे भविष्य के ईंधन के रूप में तैयार किया जा सकता है। प्रो. सैकत चक्रवर्ती कहते हैं कि माइक्रोवेव विकिरण के उपयोग के माध्यम से हम जूट से बायो-फ्यूल तैयार करते हैं।
बराबर हो सकती है कच्चे माल की आपूर्ति
उन्होंने कहा कि बांग्लादेश, ब्राजील, भारत, पाकिस्तान, रूस, श्रीलंका, अमेरिका व युगांडा में पटसन की पैदावार व्यापक रूप से होती है। यह भारत के लगभग सभी राज्यों, विशेषकर बिहार, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में उगाया जाता है। इसलिए हमें कच्चे माल की बराबर आपूर्ति हो सकती है।
प्रोजेक्ट में लगे चार साल
प्रो. चक्रवर्ती के मुताबिक पटसन से इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में चार साल का समय लगा। पहले दो साल तो दूसरी चीजों पर शोध करने में बेकार गए। बाद के दो वर्षों में हमने अपनी टीम के साथ पटसन पर काम करते हुए यह सफलता हासिल की है।