प्रीत बढ़ाने का माध्यम बनी 'संप्रीति', धुपगुड़ी में मुस्लिम महिलाएं भी मनाती हैं दुर्गापूजा
जलपाईगुड़ी के धुपगुड़ी में संप्रीति महिला दुर्गापूजा समिति सामाजिक सद्भाव का संदेश दे रही है। इस कमेटी में 60 महिलाओं में 14 मुस्लिम महिलाएं हैं।
By Rajesh PatelEdited By: Published: Tue, 09 Oct 2018 08:03 PM (IST)Updated: Tue, 09 Oct 2018 10:12 PM (IST)
-संप्रीति महिला दुर्गापूजा कमेटी की 60 सदस्यों में 14 हैं मुस्लिम महिलाएं
-पिछले वर्ष शुरू हुई यह पूजा पूरे जिले में रहती है चर्चा में
धुपगुड़ी [रॉनी चौधरी]। 'संप्रीति'। बांग्ला भाषा के इस शब्द का हिंदी में मतलब होता है सद्भाव। पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के धुपगुड़ी में इस शब्द की सार्थकता साबित कर रही हैं कुछ हिंदू व मुस्लिम महिलाएं। दोनों समुदाय की महिलाएं मिलकर भव्य रूप से दुर्गापूजा का आयोजन करती हैं। हिंदू महिलाओं की ही तरह मुस्लिम महिलाएं भी पूजा में शामिल होती हैं। सिंदूर खेला करती हैं, विसर्जन जुलूस में भी बुरका या हिजाब के साथ उत्साह के साथ शिरकत करती हैं।
हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश देने वाली यह दुर्गापूजा गत वर्ष ही शुरू की गई थी। इसमें चार-पांच लाख रुपये खर्च होते हैं। एकता का संदेश देने के कारण लोग खुले दिल से सहयोग भी करते हैं। खास बात यह है कि जहां पर पंडाल बनाया जाता है, उसके इर्द-गिर्द मुस्लिम समुदाय के करीब एक दर्जन घर भी हैं। इसमें मुस्लिम समुदाय के पुरुष भी भागीदार बनते हैं। संप्रीति (एकता) महिला दुर्गा पूजा कमेटी में 60 महिलाएं सदस्य हैं, जिनमें 14 मुस्लिम समुदाय की है। या देवी सर्वभुतेषु... के मंत्र गूंजते हैं और मुस्लिम महिलाएं उसे दोहराती हैं। कमेटी की सदस्य सबिता खानम, नूरी बेगम, रेहाना खातून, पॉली परवीन, रेशमी बेगम, रेशमी अख्तर परवीन, टुंपा परवीन आदि का कहना है कि देश में विभिन्न समुदायों के बीच बढ़ती नफरत को देखते हुए गत वर्ष निर्णय लिया गया कि यहां कुछ ऐसा किया जाए, जिसका संदेश दूर तक जाए। कमेटी की सचिव रूबी चौधरी ने कहा कि इस इलाके में हिंदू-मुसलमान सभी मिलकर साथ रहते हैं। एक-दूसरे के पर्व त्यौहार तथा सुख-दुख में शामिल होते हैं। दुर्गापूजा ही क्यों, होली-दिवाली, ईद-बकरीद सभी साथ मिलकर मनाते हैं।
रूबी चौधरी ने कहा कि दुर्गापूजा शुरू होने पर यहां की फिजा और बदल जाती है। न किसी को अजान से दिक्कत है, न नमाज से। भजन से भी नहीं, और देवी मंत्रों से भी नहीं। हां, एक-दूसरे की भावनाओं का जरूर ख्याल रखा जाता है। खुशी तब और ज्यादा होती है, जब सिंदूर खेला में मुस्लिम बहने नाक तक सिंदूर लगाकर देवी की आराधना करती हैं। और, अगले वर्ष फिर आने के लिए प्रार्थना करके देवी मां की विदाई के समय रोती हैं। इस कमेटी में अन्य सदस्यों के नाम आलोका दे, पॉपिया दे, वारोटी दे, शिखा पॉल, सोमा दे, प्रतिमा भुईमाली, चिटू भुईमाली, हेलेन दे आदि हैं।
-पिछले वर्ष शुरू हुई यह पूजा पूरे जिले में रहती है चर्चा में
धुपगुड़ी [रॉनी चौधरी]। 'संप्रीति'। बांग्ला भाषा के इस शब्द का हिंदी में मतलब होता है सद्भाव। पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के धुपगुड़ी में इस शब्द की सार्थकता साबित कर रही हैं कुछ हिंदू व मुस्लिम महिलाएं। दोनों समुदाय की महिलाएं मिलकर भव्य रूप से दुर्गापूजा का आयोजन करती हैं। हिंदू महिलाओं की ही तरह मुस्लिम महिलाएं भी पूजा में शामिल होती हैं। सिंदूर खेला करती हैं, विसर्जन जुलूस में भी बुरका या हिजाब के साथ उत्साह के साथ शिरकत करती हैं।
हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश देने वाली यह दुर्गापूजा गत वर्ष ही शुरू की गई थी। इसमें चार-पांच लाख रुपये खर्च होते हैं। एकता का संदेश देने के कारण लोग खुले दिल से सहयोग भी करते हैं। खास बात यह है कि जहां पर पंडाल बनाया जाता है, उसके इर्द-गिर्द मुस्लिम समुदाय के करीब एक दर्जन घर भी हैं। इसमें मुस्लिम समुदाय के पुरुष भी भागीदार बनते हैं। संप्रीति (एकता) महिला दुर्गा पूजा कमेटी में 60 महिलाएं सदस्य हैं, जिनमें 14 मुस्लिम समुदाय की है। या देवी सर्वभुतेषु... के मंत्र गूंजते हैं और मुस्लिम महिलाएं उसे दोहराती हैं। कमेटी की सदस्य सबिता खानम, नूरी बेगम, रेहाना खातून, पॉली परवीन, रेशमी बेगम, रेशमी अख्तर परवीन, टुंपा परवीन आदि का कहना है कि देश में विभिन्न समुदायों के बीच बढ़ती नफरत को देखते हुए गत वर्ष निर्णय लिया गया कि यहां कुछ ऐसा किया जाए, जिसका संदेश दूर तक जाए। कमेटी की सचिव रूबी चौधरी ने कहा कि इस इलाके में हिंदू-मुसलमान सभी मिलकर साथ रहते हैं। एक-दूसरे के पर्व त्यौहार तथा सुख-दुख में शामिल होते हैं। दुर्गापूजा ही क्यों, होली-दिवाली, ईद-बकरीद सभी साथ मिलकर मनाते हैं।
रूबी चौधरी ने कहा कि दुर्गापूजा शुरू होने पर यहां की फिजा और बदल जाती है। न किसी को अजान से दिक्कत है, न नमाज से। भजन से भी नहीं, और देवी मंत्रों से भी नहीं। हां, एक-दूसरे की भावनाओं का जरूर ख्याल रखा जाता है। खुशी तब और ज्यादा होती है, जब सिंदूर खेला में मुस्लिम बहने नाक तक सिंदूर लगाकर देवी की आराधना करती हैं। और, अगले वर्ष फिर आने के लिए प्रार्थना करके देवी मां की विदाई के समय रोती हैं। इस कमेटी में अन्य सदस्यों के नाम आलोका दे, पॉपिया दे, वारोटी दे, शिखा पॉल, सोमा दे, प्रतिमा भुईमाली, चिटू भुईमाली, हेलेन दे आदि हैं।
Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें