Coronavirus: अक्षय तृतीया पर कोरोना की छाया, नहीं गूंजेगी शहनाई; घर में रहकर करें पूजा
Akshaya Tritiya. इस पर भी कोरोना वायरस के कारण चल रहे लॉक डाउन की छाया दिखाई दे रही है।
सिलीगुड़ी, अशोक झा। Akshaya Tritiya. अक्षय का अर्थ है जो कभी नष्ट न हो। इस दिन ग्रहों का विशेष संयोग बनता है। सूर्य और चंद्रमा अपनी उच्च राशि में होते है। साल में सिर्फ एक दिन ये संयोग बनता है। सूर्य, मेष में होता है और चंद्रमा वृषभ में होता है। इस पर भी कोरोना वायरस के कारण चल रहे लॉक डाउन की छाया दिखाई दे रही है।आचार्य पंडित यशोधर झा के अनुसार, शास्त्रों में सूर्य को हमारा प्राण और चंद्रमा को हमारा मन माना गया है। सूर्य और चंद्रमा का संबंध बनने की वजह से ये तिथि बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। इसलिए इस दिन जो भी काम किया जाए उसका फल दोगुना और कभी न खत्म होने वाला होगा। अक्षय तृतीया को अखतीज और वैशाख तीज भी कहा जाता है। यह वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है। इस दिन स्नान, दान, जप, होम आदि अपने सामर्थ्य के अनुसार जितना भी किया जाएं, अक्षय रूप में प्राप्त होता है। इस महामारी काल मे इस दौरान दानपुण्य फिक्स डिपॉजिट के तौर पर भगवान के घर पड़ा रहेगा।
कहते हैं ग्रीष्म ऋतु का आगमन, खेतों में फसलों का पकना और उस खुशी को मनाते खेतीहर व ग्रामीण लोग विभिन्न व्रत, पर्वों के साथ इस तिथि का पदार्पण होता है। धर्म की रक्षा के लिए भगवान श्री विष्णु के तीन शुभ रुपों का अवतरण भी इसी अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ हैं। माना जाता है कि जिनके अटके हुए काम नहीं बन पाते हैं। व्यापार में लगातार घाटा हो रहा है या किसी कार्य के लिए कोई शुभ मुहुर्त नहीं मिल पा रहा है तो उनके लिए कोई भी नई शुरुआत करने के लिए अक्षय तृतीया का दिन बेहद शुभ माना जाता है। अक्षय तृतीया में सोना खरीदना हजार अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फल प्रदान करता है। अक्षय तृतीया पर लक्ष्मी कुबेर की पूजा करते हैं। इस पूजा में देवी लक्ष्मी की मूॢत की पूजा सुदर्शन चक्र और कुबेर यंत्र के साथ में रखते है।
परशुरामजी की गिनती भचरजीवी महात्माओं में की जाती है। अत: यह तिथि चिरंजीवी तिथि भी कहलाती है। चारों युगों सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग में से त्रेतायुग का आरंभ इसी आखातीज से हुआ है जिससे इस तिथि को युग के आरंभ की तिथि युर्गाद तिथि भी कहते हैं। मान्यता है कि यदि इस काल में हम यदि घर में स्वर्ण लाएंगे तो अक्षय रूप से स्वर्ण आता रहेगा। तिथि का उन लोगों के लिए विशेष महत्व होता है। जिनके विवाह के लिए गृह-नक्षत्र मेल नहीं खाते, लेकिन इस दिन गृह नक्षत्रों का दोष नहीं होता। यानी इस दिन जो भी अच्छा काम करेंगे उसका फल कभी समाप्त नहीं होगा, अगर कोई बुरा काम करेंगे तो उस काम का परिणाम भी कई जन्मों तक पीछा नहीं छोड़ेगा। अक्षय तृतीया के विषय में कहा गया है कि इस दिन किया गया दान खर्च नहीं होता है, यानी आप जितना दान करते हैं उससे कई गुणा आपके अलौकिक कोष में जमा हो जाता है। मृत्यु के बाद जब अन्य लोक में जाना पड़ता है, तब उस धन से दिया गया दान विभिन्न रूपों में प्राप्त होता है।
पुनर्जन्म लेकर जब धरती पर आते हैं तब भी उस कोष में जमा धन के कारण धरती पर भौतिक सुख एवं वैभव प्राप्त होता है। इस दिन सभी विवाहित और अविवाहित लड़कियां पूजा में भाग लेती हैं। इस दिन लोग भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की पूजा भी करते हैं। कई लोग इस दिन महालक्ष्मी मंदिर जाकर सभी दिशाओं में सिक्के उछालते हैं। सभी दिशाओं में सिक्के उछालने का कारण यह माना जाता है कि इससे सभी दिशाओं से धन की प्राप्ति होती है। अंकों में विषम अंकों को विशेष रूप से तीन को अविभाज्य यानी अक्षय माना जाता है।
तिथियों में शुक्ल पक्ष की 'तीज यानी तृतीया को विशेष महत्व दिया जाता है। सामन्यतया अक्षय तृतीया में 42 घरी और 21 पल होते हैं। पद्म पुराण अपराह्म काल को व्यापक फल देने वाला मानता है।
ज्योतिषाचार्य रामदुलार उपाध्याय ने बताया कि 13 अप्रैल को ग्रहों के राजा सूर्य देव के मीन राशि से निकल कर अपनी उच्च राशि मेष में प्रवेश कर चुके है। 14 अप्रैल से मीन मलमास खत्म हो गया। 31 मई को शुक्र का तारा अस्त होगा। इसके बाद विवाह समारोह नहीं हो सकेंगे, लेकिन आठ जून को शुक्रोदय के साथ फिर से विवाह कार्यक्रम शुरू होंगे। इस दौरान 13 जून, 15 जून और 27 जून को अंतिम विवाह होगा। इसके बाद देव सो जाएंगे।
जैन धर्म में तपस्वियों के लिये विशेष दिन 'अक्षय तृतीया का पर्व जैन धर्मावलंबियों के लिए खासा महत्व रखता है। कहते है इस दिन ही जैन तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या के बाद पारायण किया था। और गन्ने के रस का पान किया था। वे जैन धर्म के ऐसे प्रथम तपस्वी थे, जिन्होंने सत्य और अभहसा का प्रसार करने के उद्देश्य से पारिवारिक प्रेम और स्नेह का त्याग करते हुए जैन वैराग्य को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। जैन धर्म को मानने वाले इस दिन इक्षु तृतीया के नाम से भी संबोधित करते है।
गन्ने को ही इक्षु नाम दिया गया है। कहते है वर्षीतप के पूर्ण हो जाने पर जैन तीर्थ श्री शत्रुंजय पर जाकर 'अक्षय तृतीया के दिन उपवास तोड़ा जाता है। यदि वर्षीतप करने वाली कोई महिला हुई तो उसे उसके भाई द्वारा पारायण कराया जाता है। जिसे पारणा नाम दिया गया है। पारणा के साथ तपस्वी को उनके पारिवारिक सदस्य, ईष्ट मित्र आदि भेंट प्रदान करते है। इस दिन सारे तपस्वी जो शत्रुंजय पर एकत्रित होते है। उनकी भव्य शोभायात्रा समारोह पूर्वक निकाली जाती है। सभी तपस्वियों को उपहार प्रदान किये जाते है। जिसे प्रभावना कहा जाता है।
भगवान परशुराम की मनाई जाती है जन्म जयंती
अक्षय तृतीया का पर्व भगवान परशुराम के जन्म से भी जुड़ा हुआ है। भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाने वाले परशुराम इस पृथ्वी लोक में ब्राम्हणों के आदिदेव माने जाते है। भगवान परशुराम थे तो ब्राम्हण, ङ्क्षकतु उनका पराक्रम क्षत्रियों जैसा था। परशुराम रामायण काल के मुनि थे। उनके पिता जमदग्नि ने पुत्रेष्ठि यज्ञ संपन्न कर उन्हें वरदान के रूप में पाया था। जनदग्नि जी की पत्नि रेणुका के गर्भ से परशुराम जी ने 'अक्षय तृतीया के दिन जन्म लिया। उन्हें भगवान विष्णु का आवेशावतार अर्थात गुस्सैल स्वभाव वाला अवतार माना जाता है। भगवान परशुराम शस्त्र विद्या के महान गुरू थे। उन्होंने भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण को शस्त्र विद्या सिखायी थी। धर्म में ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम के शेष कार्यों में अभी उनका एक अवतार होना बाकि है, जो कलयुग की समाप्ति पर कल्कि अवतार के रूप में भगवान विष्णु के दसवें अवतार को शस्त्र विद्या प्रदान करेंगे। भगवान परशुराम महान मातृ-पितृ भक्त थे।
श्रीमद्भागवत में उल्लेख मिलता है कि एक बार गंधर्व राज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख उनकी माता रेणुका उन पर आसक्त हो गई और हवन काल का समय बीत जाने पर जनदग्नि अपनी पत्नि अथवा रेणुका के मर्यादा विरोधी आचरण के कारण अपने पुत्रों को माता का वध करने की आज्ञा दे डाली। परशुराम जी के अन्य भाईयों ने ऐसा करने का साहस नहीं दिखाया और पिता के आज्ञा की अवहेलना की। परशुराम जी ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुये अपनी मां का सिर धड़ से अलग कर दिया और पिता के चरणों में लाकर रख दिया। इस पर जनदग्नि जी ने परशुराम जी से इच्छित वरदान मांगने कहा। परशुराम जी का मातृ और पितृ प्रेम सबके सामने आया, उन्होंने पिता की आज्ञा न माने जाने पर मां और भाईयों के वध के बाद अपने पिता से मांगे वर में सभी का जीवन तो मांगा ही साथ ही यह भी वर मांग लिया कि मां सहित सभी भाई वध की बातों को भी हमेशा के लिये भुल जाये।
सराफा बाजार में कोरोना की मार, व्यापारी है दुखी और परेशान : पहले से ही सुस्ती की मार झेल रहे बाजार को कोरोना संकट ने तगड़ा झटका दिया है। 26 अप्रैल को अक्षय तृतीया को लेकर सिलीगुड़ी सराफा कारोबारियों में खासा उत्साह था। उनको उम्मीद थी कि 14 अप्रैल को लॉकडाउन खत्म होने के बाद बाजार की सुस्ती दूर हटेगी। नहींं तो 20 अप्रैल के बाद सराफा बाजार कोो खोलने की छूट दी जा सकती हैं। लेकिन 20 अप्रैल के बाद मुख्यमंत्री के निर्देश पर सिलीगुड़ी और आसपास के क्षेत्रों में और कड़ाई से इसका पालन कराया जा रहा है अक्षय तृतीया के दिन बंगाल के लोग निश्चित रूप से ही कुछ ना कुछ सोना खरीदते हैं। पूर्वोत्तर के प्रवेश द्वार माने जाने वाली सिलीगुड़ी में इस मौके पर कई पड़ोसी राज्य से शादी विवाह का ऑर्डर भी आता है जो यहां होने वाले शादी में ज्वैलरी आदि खरीदना शुभ मानते हैं। तीन मई तक लॉक डाउन बढ़ने पर सराफा व्यवसाय से जुड़े जिले के तकरीबन 200 कारोबारियों को करोड़ों का नुकसान हो गया है।
खुशियों को लग गया कोरोना का ग्रहण
खुशियों के मौसम को कोरोना का ग्रहण लग गया है। लॉकडाउन की वजह से जिले में चालू सीजन में तय हो चुकी 200 से अधिक शादियों की बुकिंग निरस्त हुई है। शादियों के जयमाल और मंडप सजाने वालों से लेकर टेंट और भांगड़ा जैसे कारोबार पर आश्रित बड़ी संख्या में मजदूर परिवारों की जीविका प्रभावित हुए हैं। पूरे सीजन पर संकट की काली छाया मंडराने से इस सेक्टर को 15 से 20 करोड़ रुपये से अधिक की चपत लगने का अनुमान है। कोरोना वायरस से बचने के लिए लॉकडाउन का व्यापक असर लोगों की खरमास बाद शुरू होने वाली इस सीजन की खुशियों पर पड़ा है। महीनों पहले से तय शादियों के लिए गेस्ट हाउस, माली, रोड लाइट, दूल्हों के लिए बग्घिया-घोड़े, डीजे बैंड, बैंड बाजा, भांगड़ा व हलवाई की बुकिंग हो चुकी थी। जिसे रद कर दिया गया है।जबतक लॉक डाउन पूरी तरह नहीं हटता है तबतक आगे की बुकिंग नही की जा रही है।
शुभ मुहूर्त
26 अप्रैल को सुबह 5:48 से दोपहर 1:22 तक पूजा का मुहूर्त है। तृतीया तिथि का प्रारंभ 25 अप्रैल को 11 बजकर 51 मिनट से है तथा समाप्ति 26 अप्रैल को है।