इस वर्ष स्वार्थ सिद्धि योग में करवा चौथ का व्रत रखेंगी महिलाएं
कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को रखे जाने वाले करवा चौथ का व्रत इस साल महिलाएं स्वार्थ सिध्दि योम में रखेंगी। इसी प्रकार का योग काफी पहले वर्ष 1991 में बना था।
जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी :
कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को रखे जाने वाले करवा चौथ का व्रत 27 अक्टूबर को है। इस वर्ष अमृत सिद्धि और स्वार्थ सिद्धि योग का विशेष संयोग बन रहा है। इसी प्रकार का संयोग वर्ष 1991 में बना था।
पूजा का शुभ मुहूर्त
करवा चौथ पर महिलाएं पूरे दिन व्रत रखतीं हैं और रात को चांद देखकर उसे अर्घ्य देकर व्रत खोलतीं हैं। करवा चौथ मुहूर्त 5.40 मिनट से 6.47 मिनट पर। करवा चौथ चंद्रोदय समय 7 बजकर 55 मिनट है। शनिवार को करवा चौथ होने के कारण चंद्रमा की वृष गत होने कारण कई राशि के जातक को काफी लाभ मिलेगा।
करवा चौथ से जुड़ी मान्यताएं
करवा चौथ का व्रत रखने से पति की उम्र लंबी होती है और परिवार में संपन्नता आती है। इस सिलसिले में कई प्रकार की कथाएं सुनने को मिलती है। कहते हैं कि एक यह भी मान्यता है कि जब पांडव नीलगिरि के जंगल में तपस्या कर रहे थे तब परेशान द्रौपदी ने भगवान कृष्ण से अपना दु:ख सुनाया और उनकी रक्षा करने का उपाय पूछा। भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को करवा चौथ का व्रत रखने की सलाह दी। जिसके बाद पांडवों की सकुशल वापसी संभव हो पाई। एक और कथा के अनुसार प्राचीन समय में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी। एक बार नदी में स्नान करते समय उसके पति को मगरमच्छ ने खा लिया। करवा ने अपने पतिव्रत शक्ति से मगर की पेट से पति को निकाल लिया। करवा के पतिव्रत प्रभाव से पति जिंदा हो गया। उसने यमराज से पति की दीर्घायु का वरदान भी पा लिया था।
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छलनी, चांद और करवा का महत्व
सिलीगुड़ी : करवा चौथ में छलनी के पीछे एक पौराणिक कथा है। एक पतिव्रता स्त्री जिसका नाम वीरवती था। इसने विवाह के पहले साल करवाचौथ का व्रत रखा, लेकिन भूख के कारण इसकी हालत खराब होने लगी। भाइयों से बहन की यह स्थिति देखी नहीं गई। इसलिए चांद निकलने से पहले ही एक पेड़ की ओट में छलनी के पीछे दीप रखकर बहन से कहने लगे कि देखो चांद निकल आया है। इससे वीरवती के पति की मृत्यु हो गई। वीरवती ने दोबारा करवा चौथ का व्रत रखा जिसके बाद मृत पति जीवित हो गया। वहीं छलनी से अपने पति को देखने का मनोवैज्ञानिक कारण भी है। दरअसल पत्नी अपने मन से सभी विचारों और भावनाओं को छलनी से छानकर शुद्ध कर लेती है और अपने पति के प्रति सच्चे प्रेम को व्यक्त करती है। मिट्टी का करवा पंच तत्व का प्रतीक माना जाता है। करवा का अर्थ होता है मिट्टी का बर्तन। इस व्रत में सुहागिन स्त्रियां करवा की पूजा करके करवा माता से प्रार्थना करती हैं कि उनका प्रेम अटूट रहे। पति-पत्नी के बीच विश्वास का कच्चा धागा कमजोर न पड़ने पाए।