पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग के बटसी के पास यात्री ट्रेन की चपेट में आने से दो हाथियों की मौत
सिलीगुड़ी से 25 किलोमीटर दूर नेपाल सीमांत खोरीबारी थाना के बतासी के निकट दुधमोड पर ट्रेन से कटकर दो हाथियों की मौत हो गयी है।
सिलीगुड़ी, जागरण संवाददाता। सिलीगुड़ी से 25 किलोमीटर दूर नेपाल सीमांत खोरीबारी थाना के बतासी के निकट दुधमोड पर ट्रेन से कटकर दो हाथियों की मौत हो गयी है। कटिहार रेलवे डिवीजन के तहत सिलीगुड़ी से बुधबार की सुबह 5 बजे ट्रेन संख्या 75744 से ट्रेक पर आये हाथियों की मौत हुई है। यह क्षेत्र कर्सियांग फॉरेस्ट डिवीजन के तहत आता है।
डीएफओ कर्सियांग शेख फरीद ने बताया कि टीम पहुंच कर मामले की जांच कर रही है। पोस्टमार्टम कराने की प्रकिया प्रारम्भ की गई है। हाथी नेपाल से भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करने की आशंका जताई जा रही है। हाथी की मौत की खबर सुनने के स्थानीय लोगो की भीड़ जमा हो गयी है। लोग हाथी की पूजा की जा रही है। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस के साथ रेलवे पुलिस को भी लगाया गया है।
वन विभाग की ओर से रेल विभाग के खिलाफ मामला दर्ज कराने की तैयारी भी की जा रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस क्षेत्र में कई दिनों से हाथियों की झुंड को घूमते देखा गया है। वन विभाग को इसकी जानकारी भी दी गयी थी। हाथियों ने इस क्षेत्र में फसलों को भी नुकसान पहुंचाया है।
तालमेल के अभाव में ट्रेन के धक्के से जा रही हाथियों की जान
ट्रेनों की टक्कर से प्रतिवर्ष हो रही मौत से हेरिटेज वन्य प्राणी हाथी के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। हर साल ट्रेन के धक्के से हाथी मर रहे हैं। इसे लेकर परिवेश प्रेमी संगठनों ने कई बार रोष प्रकट किया। लेकिन इसके बावजूद वन विभाग व रेल विभाग ने कोई सबक नहीं लिया। बीते मंगलवार को ही हाथियों की जान बचाने के लिए अलीपुरद्वार डिवीजन की ओर से ट्रेन चालकों को पुरस्कृत किया गया था। इसके दूसरे दिन ही फिर ट्रेन के धक्के से दो हाथियों की मौत ने फिर एक बार रेल विभाग पर सवाल उठा दिए हैं।
सिलीगुड़ी से अलीपुरद्वार जाने वाली डुवार्स रेल लाइन में 1973 से 2013 तक ट्रेन के धक्के से 53 हाथी की मौत हो चुकी है। इसमें केवल 2004 से 2013 तक ट्रेन के कारण 30 हाथियों की जान गई थी। वर्ष 2015-16 में कुछ कमी तो आई लेकिन वर्ष 2017 से फिर ट्रेन के धक्के से हाथियों की मौत की संख्या बढ़ने लगी। वर्ष 2018 में चार व वर्ष 2019 में अब तक तीन हाथियों की मौत ट्रेक के धक्के से हुई है।
उत्तर बंगाल में विशेष तौर पर दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार जिले के जलदापाड़ा, गोरुमारा, नेवरावैली राष्ट्रीय उद्यान, बक्शा बाघ परियोजना, चापड़ामारी जंगल में हाथियों की संख्या काफी अधिक है। अलीपुरद्वार व जलपाईगुड़ी जिले के 977.51 वर्ग किलोमीटर इलाके में जंगल फैला हुआ है और इन्हीं जंगलों के बीच से डुवार्स से सिलीगुड़ी तक रेल लाइन गई है। वर्ष 2016 के मई महीने में मदारीहाट, 14 दिसंबर को गुलमा व 23 दिसंबर को राजाभातखावा पानझोड़ा में तीन हाथियों की मौत हुई थी। वर्ष 2018 में ट्रेन के धक्के से चार हाथियों की मौत हुई थी। इसमें 4 फरवरी की रात को चापड़ामारी पानझोड़ा में एक, 7 जून बानरहाट के देवपाड़ा के बीच एक, 6 जुलाई को देवपाड़ा चाय बागान में ही दो हाथियों की मौत हुई थी।
कहां अधिक दुर्घटनाएं हुई :
सिलीगुड़ी से अलीपुरद्वार जाने वाली ब्रॉड गज रेल लाइन के 16/5 किलोमीटर पोस्ट से 27 किलोमीटर, 30/2 से 33/5 किलोमीटर पोस्ट, 41/5 से 51/4 किलोमीटर पोस्ट, 65/8 से 71 किलोमीटर पोस्ट, 128/3 से 130/7 पोस्ट व 151 से 163 पोस्ट के बीच सबसे अधिक दुर्घटनाएं हुई है।
वन व रेल विभाग का एक-दूसरे पर आरोप:
लगातार ट्रेन से कटकर हो रही हाथियों की मौत के बावजूद वन व रेल विभाग की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। बस दोनों विभाग एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में लगे रहे। वर्ष 2010 में बानरहाट में ट्रेन के धक्के से आठ हाथियों की मौत हो गई थी। इसके बाद ही तत्कालीन सरकार के केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इस प्रकार की घटनाओं को रोकने का काफी प्रयास किया, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। रेल व वन विभाग के बीच तालमेल का अभाव होने के कारण ही हाथियों की मौत होती रही। वन अधिकारियों की माने तो कर्मियों की संख्या कम होने के कारण हाथियों के पटरी आने पर कुछ नहीं कर पाते हैं।
उपाए नहीं हुए कारगर:
ट्रेन के धक्के से हाथियों की मौत को रोकने के लिए अलीपुरद्वार डिवीजन के गेट नंबर एसके वन 71 व एसके वन 26 दो स्थानों पर मधुमक्खी की आवाज वाली बॉक्स लगाई गई। वहीं चालसा व नागराकाटा के बीच कालचीनी में भी इस प्रकार का बॉक्स लगाया गया है। अगर रेलगेट के आसपास हाथियों का झुंड दिखाई देता है तो मधुमक्खी की आवाज बजने लगती है। लेकिन वर्तमान स्थिति देखकर लग रहा है कि दूसरे स्टेशनों के आसपास भी मधुमक्खी की आवाज वाली बॉक्स लगाई जानी चाहिए। एनएफ रेलवे के डीआरएम सूत्रों ने बताया कि वर्ष 2015 के बाद रेल चालकों की तत्परता से कई हाथियों की जान बचाई जा चुकी है।