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West Bengal Assembly Election 2021: विधानसभा चुनाव की बयार, आखिर, क्या है 'खैला होबे, खैला होबे'?

चारों ओर सिर चढ़ कर गूंज रहा खैला होबे खैला होबे लेकिन यह है क्या? राजनीति तो राजनीति धर्म व समाज कुछ भी नहीं रह गया अछूता हिंदी में इसका अर्थ होता है खेल होगा खेल होगा। आजकल बंगाल में जहां जाइए यही सुनाई पड़ेगा खैला होबे खैला होबे।

By Priti JhaEdited By: Published: Wed, 24 Mar 2021 09:53 AM (IST)Updated: Wed, 24 Mar 2021 04:04 PM (IST)
West Bengal Assembly Election 2021: विधानसभा चुनाव की बयार, आखिर, क्या है 'खैला होबे, खैला होबे'?
आखिर, क्या है 'खैला होबे, खैला होबे'?

सिलीगुड़ी, इरफ़ान-ए-आज़म। भारत में इन दिनों पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडू, केरल व पुडूचेरी में विधानसभा चुनाव की बयार बह रही है। पर, ज्यादा चर्चे पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के ही हैं। उसमें भी सबसे ज्यादा 'खैला होबे, खैला होबे' की ही गूंज है। हिंदी में इसका अर्थ होता है 'खेल होगा, खेल होगा'। आजकल बंगाल में जहां जाइए, यही सुनाई पड़ेगा 'खैला होबे, खैला होबे'। यह राजनीतिक नारा शुरू तो तृणमूल कांग्रेस से हुआ पर इसके उपयोग से अछूती अब कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं रह गई है।

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भाजपा, कांग्रेस, माकपा सबने इसका इस्तेमाल कर डाला है। इस पर एक नहीं अनेक गाने भी बाजार में आ गए हैं व धूम मचा रहे हैं। राजनीति तो राजनीति, धार्मिक व सामाजिक आयोजनों में भी इसके खूब जलवे हैं। हाल ही की सरस्वती पूजा में भी जगह-जगह इस पर आधारित गाने खूब बजे। वहीं, अब शादी-विवाह व अन्य समारोहों में भी इस थीम पर डीजे-डांस की धूम मचने लगी है। इन सबके बीच अहम सवाल यह उभरता है कि आखिर, यह 'खैला होबे' है क्या?

इसकी शुरूआत इसी साल जनवरी महीने से हुई। यह तृणमूल कांग्रेस के युवा नेता देबांग्शु भट्टाचार्य की दिमागी उपज है। उन्होंने ही सबसे पहले इसे यू-ट्यूब पर अपलोड कर जारी किया। उसके बाद तो इसे वायरल होते देर नहीं लगी। पर, राजनीति के मैदान में इसे तृणमूल कांग्रेस के बीरभूम के धाकड़ नेता अणुव्रत मंडल ने हवा दी। एक सभा में उन्होंने कहा 'भयंकर खैला होबे' (भयंकर खेल होगा)। बस, उसके बाद तो यह जंगल में आग की तरह फैल गया। इसके लिए देबांग्शु भट्टाचार्य उनका धन्यवाद भी करते हैं कि 'केस्टो दा (अणुव्रत मंडल) को असंख्य धन्यवाद। वह एक बार कुछ भी बोल दें तो वह बंगाल में हिट होना अनिवार्य है'। इसकी अपने खास अंदाज में प्रस्तुति के लिए देबांग्शु की हर जगह तृणमूल कांग्रेस के राजनीतिक आयोजनों में डिमांड भी बढ़ गई है।

खैर, यह 'खैला होबे' कैसे और कहां से आया? इस बारे में देबांग्शु का कहना है कि कृषि विधेयकों के विरुद्ध आंदोलन के दौरान ममता बनर्जी ने कहा था 'एशो बोंधु, खेलते चाओ' (आइए बंधु, खेलना चाहते हैं)। वहीं से देबांग्शु के दिमाग में यह बात क्लिक कर गई। फिर, इसी सिलसिले में रवींद्रनाथ टैगोर की एक कविता '...खैला मोदेर लड़ाई करा... खैला मोदेर बांचा-मरा... खेला मोदेर गड़ा...' (...खेल हमारा संघर्ष है... खेल हमारा जीवन-मरण है..., खेल हमारा निर्माण है...) ने भी उन्हें प्रेरित किया। ऊपर से बदलते राजनीतिक परिदृश्य ने भी असर डाला। बंगाल में भाजपा की पैठ, तृणमूल कांग्रेस में सेंध, उसके नेताओं को तोड़ कर अपने पाले में करना, इन सारी चीजों ने देबांग्शु के दिमाग से 'खैला होबे, खैला होबे' का जन्म करवा डाला।

देबांग्शु भट्टाचार्य ने जिन चीजों के असर से यह बनाया उन सारी चीजों की झलक इसमें साफ दिखती है। 'तृणमूलेर भांगिए नेता... नय गो सहोज वोटे जेता... दीदीर छोबि सोरबे जबे... बोंधु से दिन खेला होबे... खेला होबे, खेला होबे...' (...तृणमूल के टूटे नेता... नहीं है सहज वोट जीतना... दीदी की तस्वीर हटेगी जब.... बंधु उस दिन खेल होगा..., खेल होगा, खेल होगा...)। तृणमूल के दलबदलुओं के साथ ही साथ बंगाल में भाजपा की पैठ पर भी वह अपनी इस रचना से खूब प्रहार करते हैं। '...आमार माटी सोइबे ना... यूपी बिहार होइबे ना... बांग्ला आमार बांग्लार रोबे... खेला होबे, खेला होबे...' (...हमारी माटी सहेगी नहीं... यूपी बिहार होएगी नहीं... बंगाल हमार बंगाल रहेगा... खेल होगा, खेल होगा...)।

यह 'खैला होबे, खैला होबे' बंगाल की राजनीति में इन दिनों हर दल का हथियार हो गया है। भाजपा नेता व केंद्र में मंत्री बाबुल सुप्रियो इस पर सवाल उठाते हैं कि 'क्या खेल होगा? 10 साल तो बंगाल के लोगों संग खिलवाड़ ही हुआ। इसके बाद 'खेल होगा' का मतलब क्या है? गुंडों द्वारा मुहल्ले-मुहल्ले मोड़ पर मुंह पर कपड़े बांध कर विकास को खड़ा करवाए रखेंगे? वही खेल होगा, क्या खेल होगा, क्या खेल? गणतंत्र में, गणतंत्र का वोट होगा। मुझे लगता है कि गणतंत्र को लेकर खिलवाड़ होगा बोला जा रहा है, खिलवाड़ किया जाएगा, गुंडागर्दी की जाएगी, उसी की एक चेतावनी दी जा रही है। गणतांत्रिक व्यवस्था का उत्सव होता है वोट बॉक्स में जा कर वोट देना। उसे क्या अटका देने की बात कर रही है तृणमूल कांग्रेस। यह मैं महामान्य नेत्री (ममता बनर्जी) से जानना चाहूंगा'। इसके जवाब में तृणमूल कांग्रेस के अपने ही अलग अंदाज के धाकड़ नेता अणुव्रत मंडल का कहना है कि 'अभी भी बोल रहा हूं खेल होगा। बहुत तरह का खेल होता है। खेल के बारे में जानते नहीं हैं। इसीलिए सवाल उठा रहे हैं, कैसा खेल! गुंडागर्दी क्यों होगी? 2019 में भी तो वोट हुआ। एक मर्डर हुआ? एकआदमी मरा? बोल सकेगा कोई? गोली चली? बम चला? एक भी चैनल दिखा सकेगा? भाजपा बताए कि आठ साल में क्या विकास किया? पूरे देश को तो बेच दिया। तहस-नहस कर डाला, और बड़ी बड़ी बात करते हैं! बड़ी-बड़ी बात न करें। ममता बनर्जी गरीबों की ममता बनर्जी हैं। 10 साल में ममता बनर्जी ने जो किया वह देख लें। रास्ते में विकास अभी भी खड़ा हुआ है। आठ साल में भाजपा ने क्या किया वह इतिहास भी एक बार देखें और 10 साल में ममता बनर्जी ने क्या किया वह इतिहास भी देख लें। फिर, चैलेंज करता हूं मेरे साथ खेलने वाला भाजपा में कोई पैदा नहीं हुआ है। मैं फिर कह रहा हूं, खेल होगा, पूरे बंगाल में खेल होगा'।

इस 'खैला होबे, खैला होबे' पर बंगाल में चुनावी राजनीति चरम पर है भाजपाई दिग्गज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में कोलकाता में अपनी जनसभा में इस पर चुटकी कसी कि 'खेल खत्म'। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता ने भी कहा कि 'खैला होबे... आमी गोलकीपर... देखी के जीते...' (खेल होगा... मैं गोलकीपर हूं... देखती हूं कौन जीतता है)। वहीं, भाजपा के पश्चिम बंगाल प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष का कहना है कि 'खेल तो होगा। इस बार हम लोग मैदान में खेलेंगे। आप लोग (तृणमूल कांग्रेस) गैलरी में बैठ कर देखेंगे'। अब, आगे-आगे देखिए, होता है क्या?! 


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