West Bengal Municipal Elections 2020: निकाय चुनाव को लेकर उलझी बंगाल भाजपा जोह रही अमित शाह की बाट
West Bengal Municipal Elections 2020. अमित शाह कोलकाता पहुंचते ही बंगाल भाजपा के नेताओं के साथ महत्वपूर्ण बैठक करेंगे।
राज्य ब्यूरो, कोलकाता। West Bengal Municipal Elections 2020. बंगाल निकाय चुनाव को लेकर उलझन में पड़ी बंगाल भाजपा एक बार फिर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के भरोसे है। शाह भले अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर न हों, लेकिन पार्टी की चुनावी रणनीति की धुरी में अभी भी वे ही हैं। शाह 29 फरवरी की शाम को कोलकाता पहुंचेंगे और अगले दिन यानी एक मार्च को शहीद मीनार मैदान में जनसभा को संबोधित करेंगे। उसी जनसभा से वे पार्टी कार्यकर्ताओं से निकाय चुनाव की तैयारियों में जुट जाने को कह सकते हैं। शाह कोलकाता पहुंचते ही बंगाल भाजपा के नेताओं के साथ महत्वपूर्ण बैठक करेंगे। इसमें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद रहेंगे। इसी बैठक में निकाय चुनाव को लेकर रणनीति तय की जाएगी।
दरअसल, इस समय प्रदेश के पार्टी नेता दो विकल्पों को लेकर उलझे हुए हैं। पहला, भाजपा सीधे चुनावी मैदान में उतरे और दूसरा, पार्टी अदालत जाकर इसके समय का विरोध करे। एक वर्ग चाहता है कि पार्टी पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में बंगाल में मिली जबर्दस्त सफलता के मद्देनजर सीधे चुनाव में उतरे जबकि दूसरे वर्ग का तर्क है कि अगर अप्रैल के मध्य में निकाय चुनाव होंगे तो पार्टी को प्रचार के लिए समय नहीं मिलेगा। ऐसे में चुनाव के समय के विरोध में अदालत का रूख करना ही सही होगा। इसे लेकर बंगाल भाजपा के नेता दो वर्गों में बंट गए हैं। स्थिति कुछ ऐसी जगह आकर ठहर गई है कि अब इसका समाधान अमित शाह के निर्णय पर निर्भर हो गया है।
इस बीच, भाजपा नेता मुकुल राय ने राज्य चुनाव आयुक्त सौरव कुमार दास से मुलाकात कर उन्हें अदालत के दो निर्देश की प्रतियां सौंपी हैं। एक निर्देश में कहा गया है कि बोर्ड की परीक्षाएं चलने तक किसी तरह का प्रचार नहीं किया जा सकेगा। दूसरा निर्देश यह है कि चुनाव कराने के लिए आयोग को चुनाव के दिन तक न्यूनतम 22 दिनों का समय देना पड़ेगा। अगर निकाय चुनाव 22 अप्रैल को होते हैं तो अदालत के इन दोनों निर्देशों की अवमानना हो सकती है। कारण, बंगाल में माध्यमिक, उच्च माध्यमिक, आइसीएससी व आइएससी की परीक्षाएं 30 मार्च को खत्म होंगी।
चुनावी रण में उतरने के पक्षधर वर्ग का कहना है कि ऐसा नहीं करने पर पार्टी कार्यकर्ताओं में गलत संदेश जाएगा और वे निरुत्साही होंगे। वहीं अन्य वर्ग का इसपर कहना है कि चुनाव लडऩे के लिए प्रचार को हाथ में समय भी तो होना चाहिए।
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