पूरे भारत में भाजपा का विरोध करेंगे गोरखा समुदाय के लोग ः विनय तमांग
उत्तर बंगाल के गोरखा बहुल इलाकों में आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को मुश्किल होने वाली है। गोरखा समुदाय की 11 जातियों को एससी,एसटी का दर्जा न दिया जाना भारी पड़ सकता है।
By Rajesh PatelEdited By: Published: Sun, 06 Jan 2019 10:06 AM (IST)Updated: Sun, 06 Jan 2019 10:06 AM (IST)
सिलीगुड़ी [जागरण संवाददाता]। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा आगामी लोकसभा चुनाव में पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी का विरोध करेगा। इसने पहाड़ के लोगों के साथ बहुत बड़ा धोखा किया है। यह एलान गोरखालैंड टेरिटोरिअल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) के बोर्ड ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर्स (बीओए) के चेयरमैन एवं गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) अध्यक्ष विनय तामांग ने किया।
उन्होंने कहा कि पूरे भारत में गोरखा जहां-जहां रहते हैं, वे लोग वहां-वहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का विरोध करेंगे। वे यहां पिंटेल विलेज (डागापुर) में संवाददाताओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमें खबर मिली है कि केंद्र सरकार के अनुसूचित जनजाति मंत्रालय का एक प्रतिनिधिमंडल सात से नौ जनवरी तक सिक्किम पार्वत्य क्षेत्र का दौरा कर वहां उन 11 समुदायों की दशा-दिशा का अध्ययन करेगा, जिन्हें अनुसूचित जाति व जनजाति का दर्जा दिए जाने की लंबे समय से मांग हो रही है। यह केंद्र की भाजपा सरकार की नौटंकी मात्र है। वास्तव में भाजपा गोरखाओं के प्रति संवेदनशील नहीं है। गोरखाओं के लिए सबसे संवेदनहीन पार्टी भाजपा ही है।
उन्होंने कहा कि भाजपा गोरखाओं को वोट बैंक के अलावा कुछ नहीं समझती है। इसलिए हमारे गोरखा समुदाय को टहला ही रही है। वर्ष 2016 में ही केंद्र की भाजपा सरकार ने अशोक पाई कमेटी का गठन किया था। उस कमेटी के लोग दार्जिलिंग-सिक्किम पार्वत्य क्षेत्र का दौरा भी कर गए थे। अशोक पाई के बाद उस कमेटी में दूसरे चेयरमैन आए। उस कमेटी का कार्य यही था कि वह दार्जिलिंग व सिक्किम पार्वत्य क्षेत्र में उन 11 समुदायों की दशा-दिशा का अध्ययन करे, जिन्हें अनुसूचित जाति व जनजाति का दर्जा दिए जाने की लंबे समय से मांग हो रही है।
कमेटी को रिपोर्ट देने के लिए समय सीमा भी दिसंबर 2016 तय कर दी गई थी। उसके बाद कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर संसद के शीत सत्र में वह विधेयक लाए जाने की बात थी, जिसके तहत पहाड़ के इन 11 समुदायों को अनुसूचितजाति-जनजाति का दर्जा मिल सके। मगर, हुआ क्या? कुछ नहीं। उसके बाद कितने शीत सत्र आए चले गए। वर्तमान 2018 का शीत सत्र भी जाने वाला है। मगर, विधेयक का कहीं नामोनिशान नहीं है। अब फिर से नई कमेटी का लॉलीपॉप दिखाया जा रहा है। यह तमाशा नहीं तो क्या है? नौटंकी नहीं तो क्या है? इस संवेदनहीनता को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
विनय तमांग ने कहा कि दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र के गोरखाओं ने वर्ष 2009 और वर्ष 2014 दो-दो बार भाजपा के नेताओं को अपना सांसद बनाया कि वे संसद में उनकी आवाज बनेंगे। मगर, किसी ने गोरखाओं के लिए कहीं भी एक शब्द तक नहीं बोला। उन्होंने कहा कि अब विमल गुरुंग, रोशन गिरि व अहलूवालिया और भाजपा का चैप्टर यहां बंद हो गया है। दार्जिलिंग पहाड़ पर अब भाजपा की दाल नहीं गलेगी। पहले हम लोगों ने दार्जिलिंग तराई व डुवार्स में भाजपा के विरोध का एलान किया था। मगर, अब पूरे भारत में भाजपा का विरोध किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि पूरे भारत में गोरखा जहां-जहां रहते हैं, वे लोग वहां-वहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का विरोध करेंगे। वे यहां पिंटेल विलेज (डागापुर) में संवाददाताओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमें खबर मिली है कि केंद्र सरकार के अनुसूचित जनजाति मंत्रालय का एक प्रतिनिधिमंडल सात से नौ जनवरी तक सिक्किम पार्वत्य क्षेत्र का दौरा कर वहां उन 11 समुदायों की दशा-दिशा का अध्ययन करेगा, जिन्हें अनुसूचित जाति व जनजाति का दर्जा दिए जाने की लंबे समय से मांग हो रही है। यह केंद्र की भाजपा सरकार की नौटंकी मात्र है। वास्तव में भाजपा गोरखाओं के प्रति संवेदनशील नहीं है। गोरखाओं के लिए सबसे संवेदनहीन पार्टी भाजपा ही है।
उन्होंने कहा कि भाजपा गोरखाओं को वोट बैंक के अलावा कुछ नहीं समझती है। इसलिए हमारे गोरखा समुदाय को टहला ही रही है। वर्ष 2016 में ही केंद्र की भाजपा सरकार ने अशोक पाई कमेटी का गठन किया था। उस कमेटी के लोग दार्जिलिंग-सिक्किम पार्वत्य क्षेत्र का दौरा भी कर गए थे। अशोक पाई के बाद उस कमेटी में दूसरे चेयरमैन आए। उस कमेटी का कार्य यही था कि वह दार्जिलिंग व सिक्किम पार्वत्य क्षेत्र में उन 11 समुदायों की दशा-दिशा का अध्ययन करे, जिन्हें अनुसूचित जाति व जनजाति का दर्जा दिए जाने की लंबे समय से मांग हो रही है।
कमेटी को रिपोर्ट देने के लिए समय सीमा भी दिसंबर 2016 तय कर दी गई थी। उसके बाद कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर संसद के शीत सत्र में वह विधेयक लाए जाने की बात थी, जिसके तहत पहाड़ के इन 11 समुदायों को अनुसूचितजाति-जनजाति का दर्जा मिल सके। मगर, हुआ क्या? कुछ नहीं। उसके बाद कितने शीत सत्र आए चले गए। वर्तमान 2018 का शीत सत्र भी जाने वाला है। मगर, विधेयक का कहीं नामोनिशान नहीं है। अब फिर से नई कमेटी का लॉलीपॉप दिखाया जा रहा है। यह तमाशा नहीं तो क्या है? नौटंकी नहीं तो क्या है? इस संवेदनहीनता को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
विनय तमांग ने कहा कि दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र के गोरखाओं ने वर्ष 2009 और वर्ष 2014 दो-दो बार भाजपा के नेताओं को अपना सांसद बनाया कि वे संसद में उनकी आवाज बनेंगे। मगर, किसी ने गोरखाओं के लिए कहीं भी एक शब्द तक नहीं बोला। उन्होंने कहा कि अब विमल गुरुंग, रोशन गिरि व अहलूवालिया और भाजपा का चैप्टर यहां बंद हो गया है। दार्जिलिंग पहाड़ पर अब भाजपा की दाल नहीं गलेगी। पहले हम लोगों ने दार्जिलिंग तराई व डुवार्स में भाजपा के विरोध का एलान किया था। मगर, अब पूरे भारत में भाजपा का विरोध किया जाएगा।
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