बागडोगरा में अनोखी शादी के गवाह बने गांव वाले, पीपल तथा बड़ के पेड़ एक दूसरे के हो गए
बागडोगरा हरे कृष्ण पल्ली गांव के लोग पीपल और बड़ के पेड़ों की अनोखी शादी का गवाह बने। बाराती थे क्षेत्र के गांवों के सैकड़ों ग्रामीण। नृत्य ढोल नगाड़ों और मांगलिक गीतों के बीच पीपल तथा बड़ के पेड़ एक दूसरे के हो गए।
सिलीगुड़ी, अशोक झा। पूर्वोत्तर के प्रवेश द्वार सिलीगुड़ी महकमा के बागडोगरा हरे कृष्ण पल्ली गांव के लोग पीपल और बड़ के पेड़ों की अनोखी शादी का गवाह बने। बाराती थे क्षेत्र के गांवों के सैकड़ों ग्रामीण। नृत्य, ढोल नगाड़ों और मांगलिक गीतों के बीच पीपल तथा बड़ के पेड़ एक दूसरे के हो गए। लोगों का कहना है कि विवाह अनुष्ठान के बाद पेड़ सभी धार्मिक कार्यों के लिए पवित्र माने जाते हैं।
21 वी सदी के न्यू इंडिया के इस माहौल में सुनने में जरूर आश्चर्य होगा, मगर यह है सौ फीसदी सत्य। वसंत पंचमी के मौके पर गांव वालों की ओर से एक अनोखी शादी हुई। इसमें वट वृक्ष यानी लड़की की शादी पीपल वृक्ष यानी लड़के के रूप में विधि-विधान से रचाई गई। सैकड़ों ग्रामीण इस विवाह के साक्षी बने। बंगाली परंपरागत रीति रिवाज से शादी के लिए वर पक्ष की ओर से पुरुष एवं महिलाएं नाचते गाते पेड़ के निकट पहुंचे और फिर शादी की प्रत्येक रस्म को पूरा किया।
ग्रामीणों का कहना है कि नि:संतान महिलाओं द्वारा वट वृक्ष व पीपल की शादी रचाने की पंरपरा रही है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से हरे कृष्ण पल्ली में देखा जा रहा था कि कोई न कोई अपशगुन हो रहा था। पिछले कुछ माह पूर्व एक ग्रामीण ने प्राचीन वट वृक्ष और पीपल के पेड़ के निकट आकर ग्रामीणों से कहा कि इसकी शादी होनी चाहिए। अगर इसकी शादी होती है तो इस गांव के मुंगरा नष्ट हो जाएंगे और यह आप उन्नति होगी। गांव की परंपरा के अनुसार वट वृक्ष यानी वधू पक्ष व पीपल यानी वर पक्ष का विवाह संपन्न कराया।
विवाह हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार पूरे विधि-विधान से किया गया। महिलाओं द्वारा मांगलिक गीत गाए गए। बरातियों के लिए उत्तम प्रबंध किया गया। वैदिक मंत्रोच्चारण व रीति-रिवाज के साथ विवाह संपन्न कराया गया। एक दूसरे मोहल्ले के लोग एक दूसरे को शादी की बधाई देते नहीं थक रहे थे। इस अनोखी शादी की चर्चा सरस्वती पूजा के मौके पर पूरे महकमा में जोर शोर से है।
धर्म शास्त्र के अनुसार भी पेड़ों के विवाह का वर्णन ग्रह दोष से मुक्ति के लिए किए जाते रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण से जुड़े शंकर मजूमदार का कहना है कि धर्म और अंधविश्वास पर वे विश्वास नहीं करते परंतु वृक्षों की शादी के बाद यह तय है कि पेड़ के संरक्षण में यह पूरा गांव एकजुट हुआ है जो पर्यावरण के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है। इतने पुराने वृक्ष को विवाह के बाद अब पूरे इलाके के लोगों की नजर होगी।
उत्तर बंगाल का यह पूरा भूभाग पर्यावरण के लिए काफी महत्वपूर्ण रहा है यही कारण है कि अंग्रेजों ने दार्जिलिंग जिला को स्वास्थ्य लाभ के लिए सर्वाधिक महत्व दिया था। रक्षाबंधन और शादी के मौके पर भी पेड़ पौधों की पूजा यहां की परंपरा रही है। उत्सव कोई भी हो लक्ष्य एक ही होना चाहिए अपने आस-पास के पेड़ पौधों को कैसे बचाया जाए।