चादमुनि चाय बागान के काले इतिहास का नायक कौन?
- तृणमूल प्रवक्ता ने अशोक भट्टाचार्य पर साधा निशाना -कहाजमीन की बंदरबाट का पेश करेंगे ब्
- तृणमूल प्रवक्ता ने अशोक भट्टाचार्य पर साधा निशाना
-कहा,जमीन की बंदरबाट का पेश करेंगे ब्योरा जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : दाíजलिंग जिला (समतल) तृणमूल काग्रेस के प्रवक्ता वेदव्रत दत्ता ने राज्य के पूर्व शहरी विकास मंत्री और वर्तमान में सिलीगुड़ी के विधायक व सिलीगुड़ी नगर निगम की प्रशासकीय समिति के चेयरमैन अशोक भट्टाचार्य को निशाने पर लेते हुए कहा है कि वह चादमुनि चाय बागान के काले इतिहास के नायक हैं। उन्होंने कहा कि चादमुनि चाय बागान को बर्बाद करने में अशोक भट्टाचार्य और उनकी पार्टी माकपा का ही हाथ रहा है। वह शनिवार को पार्टी जिला कार्यालय विधान भवन में संवाददाताओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अशोक बाबू आए दिन तरह-तरह के तथ्य देते रहते हैं तो मैं उनके तथ्यों का विरोध करता हूं। उन्हें चैलेंज करता हूं कि वह बताएं कि चादमुनि चाय बागान के काले इतिहास का नायक कौन है? चादमुनि चाय बागान कभी 1400 एकड़ भूभाग का हुआ करता था। पहली बार, सिलीगुड़ी जंक्शन के लिए उसका अधिग्रहण हुआ। फिर, दाíजलिंग मोड़ से माटीगाड़ा तक राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के लिए उसका अधिग्रहण हुआ। फिर उसके बाद परिवहन नगर के लिए उसका अधिग्रहण किया गया। फिर न्यू टाउनशिप की बात सब जानते ही हैं। उसके अधिग्रहण के खिलाफ आदोलन में पुलिसिया गोलिया चलवाई गईं। मजदूर की मौत भी हुई। यह सब किसके सत्ता में रहते हुआ। यह किसी से छुपा नहीं है। सिलीगुड़ी के सारे लोग जानते हैं कि चादमुनि चाय बागान की जमीन की कितनी बंदरबाट की गई है। उसमें माकपा के कौन-कौन से नेता शामिल हैं। हम आने वाले दिनों में हर एक के नाम के साथ और भी खुलासा पेश करेंगे। यह बताएंगे कि सिलीगुड़ी महकमा में कहा-कहा और कैसे-कैसे क्या-क्या किया गया। कहा-कहा और कैसे-कैसे जमीन का गबन किया गया। यदि मुंह पोछ कर बिल्ली कहे कि उसने मछली नहीं खाई है तो सच नहीं छुप जाता। इससे क्या इतिहास छुप जाता है? उन्होंने कहा कि अशोक बाबू की उम्र हो गई है। उन्हें झूठ नहीं बोलना चाहिए। आज तृणमूल काग्रेस के शासनकाल में भी यदि कहीं जमीन पर अतिक्रमण का मामला नजर आता है तो उसमें माकपा के लोग ही शामिल दिखते हैं। इस अवसर पर दाíजलिंग जिला (समतल) तृणमूल काग्रेस अध्यक्ष रंजन सरकार ने भी कहा कि अशोक बाबू को राज्य सरकार की भर्त्सना बंद कर अपने कार्यो व दायित्वों पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने खुद आवेदन कर राज्य सरकार से मागा था कि उन्हें व उनकी टीम को नगर निगम के दायित्व में बरकरार रखा जाए। राज्य सरकार ने उनके आवेदन को स्वीकार करते हुए उन्हें बरकरार रखा। इसके बावजूद वह दिन-रात राज्य सरकार को ही कोसने में लगे हैं। राज्य सरकार की ही दया पर वह नगर निगम के संचालन के दायित्व में हैं। राज्य सरकार का ही खा रहे हैं और राज्य सरकार को ही कोस रहे हैं। यह कैसी बात है। यदि उन्हें इतनी ही आपत्ति है तो वह पद छोड़ क्यों नहीं देते? चुनाव क्यों नहीं करवाते? उन्हें राजधर्म निभाना चाहिए और अपने दायित्वों व कर्तव्यों का पूरा-पूरा पालन करना चाहिए।