पीड़ितों को न्याय दिलाना ही जीवन का मकसद बना लिया है इस अधिवक्ता ने, वह भी मुफ्त में
क्या किसी अधिवक्ता को मुफ्त में पीड़ित को न्याय दिलाते देखा या सुना है। बहुत जोर देने पर एकाध ही ध्यान में आ पाएंगे। ऐसे ही एकाध में सिलीगुड़ी के सतदल गुप्ता हैं।
-
>
- सन 1988 से पांच हजार से अधिक पीडि़तों को दिला चुके हैं न्याय
- मानवाधिकार उल्लंघन पर पीड़ितों के पास होता है यह अधिवक्ता
सिलीगुड़ी [अशोक झा]। पूरा परिवार चिकित्सा के क्षेत्र में। पिता सिलीगुड़ी शहर के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. हिमांशु कुमार गुप्ता। उसके बाद भी स्कूली शिक्षा के समय से ही मानवाधिकार हनन और पुलिस के सताए लोगों को न्याय दिलाने के लिए चिकित्सा का क्षेत्र नहीं चुनकर बीएससी के साथ एलएलबी की पढ़ाई कर अधिवक्ता बने। ये हैं सिलीगुड़ी बार एसोसिएशन के सतदल गुप्ता।
सत्ता और पुलिस के सताए परिवारों को न्याय दिलाने के लिए सदैव आगे रहते हैं। उन्हें अधिवक्ता कम आम लोगों के बीच काम करने वाले जनसेवक के रूप में ज्यादा जाना जाता है। सतदल गुप्ता का जन्म देशबंधुपाड़ा में दो जनवरी 1958 में हुआ। उस समय परिवारवालों ने इन्हें भी चिकित्सक बनाने के उद्देश्य से पढ़ाना प्रारंभ किया। स्कूल की पढ़ाई सिलीगुड़ी में पूरा करने के बाद कोलकाता के हाजरा से बीएससी कराया। उसके बाद उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र के बदले कानूनी पढ़ाई को चुना।
1988 में सिलीगुड़ी कोर्ट में प्रैक्टिस में आ गए। गुप्ता बताते हैं कि उन्होंने कई ऐसे मामलों में आगे बढ़कर उन परिवारों को न्याय दिलाया, जिनमें कुछ हमेशा याद रहने योग्य हैं। 1989-90 में माटीगाड़ा थाना की पुलिस ने यहां की हरि विश्वकर्मा नामक महिला को सड़क से जीप में बैठाकर उसके साथ दुराचार करने का प्रयास किया। पति के विरोध करने के बाद उसे भी गिरफ्तार कर लिया। इसको लेकर मामला दर्ज कराया गया और इस परिवार को न्याय दिलाने के लिए आगे आए। इसमें पुलिस वाहन का चालक मोहित चटर्जी और पुलिसकर्मी मोहम्मद नईम के खिलाफ पुलिस को आरोपपत्र देना पड़ा है।
1995-96 में नक्सलबाड़ी के दुधुभीठा गांव की जमीन दखल करने के लिए पूरे गांव को जला दिया गया। इसकी लड़ाई भी लड़ रहे हैं। इसी प्रकार चांदमुनी चाय बागान के जबरन अधिग्रहण के विरोध में पुलिस द्वारा की गई फायरिंग में मारे गए श्रमिकों को न्याय दिलाने के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है। वर्ष 1999-2000 में प्रधाननगर थाने में 12 वर्षीय पीटर यादव की थाना के हाजत में मौत हो गई। उसके शव को लापता कर दिया गया। इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में कानूनी लड़ाई लड़ी गई और सीबीआई जांच कराई। दो पुलिस पदाधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की गई और आज भी यह मामला चल रहा है।
वर्ष 2000 में भारत-पाकिस्तान मैच के दौरान जुलूस को लेकर सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश की गई। इसका विरोध करने गए एपीडीआर के असीम चक्रवर्ती और विवेक सरकार के साथ मारपीट कर गिरफ्तार करने की कोशिश की गई। इसके बाद मामला दर्ज कर न्याय दिलाने की पहल की। दो पुलिस अधिकारी पिनाकी मजुमदार और मालिक लाल के खिलाफ विभागीय कार्रवाई कराते हुए आज भी मामला कोर्ट में लंबित है। सिलीगुड़ी वेलफेयर के देवाशीष चक्रवर्ती को माओवादी साबित करने की साजिश की गई। इसके खिलाफ भी पुलिस के खिलाफ कानूनी लड़ाई चल रही है। ग्रामीण इलाके में घरेलू हिंसा के हजारों मामलों को न्यायालय द्वारा सुलझाने में सफल हुए हैं। पीड़ित परिवार से पैसे नहीं लेते हैं, परंतु उनके चेहरे पर खुशी देख उन्हें सुकून मिलता है।
न्याय प्रक्रिया से ज्यादातर लोग अनजान
इन दिनों न्याय प्रक्रिया में लगातार सुधार हो रहे हैं। अभी भी इसमें और सुधार की जरूरत है। विलंब होने के कारण मामले के गवाह बदल जाते हैं या कहीं दूसरी जगह चले जाते हैं। भारत सरकार ने राष्ट्रीय कानून प्राधिकरण के तहत पीड़ितों को मुफ्त में कानूनी सहायता मुहैया कराने की व्यवस्था की है। इसकी जानकारी आम लोगों को नहीं है। चिंता इस बात की हो रही है कि आज इस प्रकार के काम में युवा नहीं जुड़ रहे हैं।