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इस देश में आजादी के 71 साल बाद भी नहीं समाप्त हो सका है भेदभाव

देश को आजाद हुए 71 साल हो गये। 15 अगस्त को आजादी का 72 वीं सालगिरह मनाई जाएगी। कहने को तो, देश आजाद हो गया, लेकिन हकीकत कुछ और है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 10 Aug 2018 03:24 PM (IST)Updated: Fri, 10 Aug 2018 03:28 PM (IST)
इस देश में आजादी के 71 साल बाद भी नहीं समाप्त हो सका है भेदभाव
इस देश में आजादी के 71 साल बाद भी नहीं समाप्त हो सका है भेदभाव

सिलीगुड़ी, शिवानंद पांडेय। देश को आजाद हुए 71 साल हो गये। 15 अगस्त को आजादी का 72 वीं सालगिरह मनाई जाएगी। कहने को तो, देश आजाद हो गया, लेकिन हकीकत कुछ और है। लोग आज भी रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी अपनी मूलभुत सुविधाओं से वंचित हैं।

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अमीर खूब अमीर होते जा रहे हैं, तथा गरीब खूब गरीब होते चले जा रहे हैं। अमीरी और गरीबी के बीच की खाई चौड़ी हो रही है। चाय बगानों में आज भी लोग खाना-बदोस जीवन व्यतीत कर रहे हैं, तो सिलीगुड़ी शहर में इससे कम भयावह स्थिति नहीं हैं। ऐसे लोगों को न्याय दिलाने व उनके अधिकारों के बारे में उन्हें जागरूक करने का बीड़ा ऑल प्रोटेक्शन डेमोक्रेटिक राइट (एपीडीआर) ने उठाया है।

दार्जिलिंग जिला एपीडीआर के सचिव अभिरंजन भादुरी ने पिछले 28 सालों से शोषित व दबे कुचले लोगों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने काम करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि सिलीगुड़ी में वर्ष 1991 में एपीडीआर की कमेटी बनी। तभी से वह इससे जुड़े हुए हैं।

खुद वर्ष 1988 से सिलीगुड़ी के देशबंधु पाड़ा स्थित तराई हाईस्कूल में शिक्षक के पद पर कार्यरत रहते हुए भी समय मिलता लोगों के अधिकारों के बारे में जानकारी देने तथा उन्हें न्याय दिलाने में लग जाते। पूरे मनोयोग से अपने शिक्षण कार्य का दायित्व पूरा करते हुए समाज सेवा में लगे हुए हैं। अब तक एपीडीआर के बैनर तले दार्जिलिंग जिले के सैकड़ों लोगों को उनके अधिकारों को दिला चुके हैं।

उन्होंने कहा कि वर्ष 1947 में जब देश आजाद हुआ तथा आम जनता को जो अपेक्षा, थी, वह अपेक्षा आज तक पूरी नहीं हो सकी। मनुष्य को आज भी देश में ‘राइट-टू-लाइफ’ (जीवन के अधिकार) को पूर्ण रूप से लागू नहीं हो पाया है। इसके पूर्ण रूप से पालन करने की मांग एपीडीआर लड़ाई कर रही है। करोड़ों लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। देश की आम जनता आज भी इसका लाभ पाने से वंचित है।

शिक्षा, स्वास्थ्य व भोजन लोगों की आवश्यक आवश्यकता है। जबकि इन तीनों चीजों का पूरी तरह से व्यवसायीकरण करण हो गया है। इससे गरीब व सामान्य वर्ग पाने से वंचित हो रहा है। पुरुष व महिला के बीच आज भी भेद-भाव हो रहा है। देश में दलितों पर जिस तरह से अत्याचार हो रहा है। कौन क्या खाएगा, क्या नहीं खाएगा इन सब को केंद्रित कर जिस तरह से आये दिन घटनाएं घट रही हैं, यह दर्शाती है कि आज भी लोगों के मन में कितनी असमानता है।

भारतीय समाज की एकता को भंग करने की चेष्टा की जा रही है। भादुरी ने बताया कि कहा कि जरूरतमंद लोगों के मदद के लिए दिल चश्पी नहीं दिखाती है। इसका ज्वलंत उदाहरण है कि वर्ष 2004 में सिलीगुड़ी जिला अस्पताल से एक दिन की बच्चे की चोरी हो गई। पीड़ित महिला को न्याय दिलाने का बीड़ा एपीडीआर ने उठाया, तथा 11 वर्ष लंबी लड़ाई के बाद इस वर्ष अप्रैल में कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा सरकार से उक्त महिला को एक लाख रुपये सहायता राशि देने का आदेश दिया। जबकि आज तक उस महिला को सहायता राशि नहीं मिली। इस मामले को लेकर फिर से कोर्ट में अपील की जायेगी। वहीं उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में दो वर्ष पहले एक कैदी द्वारा दूसरे कैदी की हत्या किये जाने के मामले में भी उसके हक लड़ाई एपीडीआर लड़ रहा है।

एनआरसी के नाम पर समाज को बांटने की कोशिश :

ने कहा कि असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एनआरसी) का ड्राफ्ट जारी होने के मामले में कहा कि असम पश्चिम बंगाल का पड़ोसी राज्य है, जो उत्तर बंगाल से सटा है। वहां के नागरिकों की चिंता हम सब की है। उन्होंने कहा कि एनआरसी में 40 लाख लोगों का नाम शामिल नहीं करके, एक खास समुदाय के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। उनके प्रति सरकार रवैया ठीक नहीं है। ड्राफ्ट में जिनका नाम शामिल नहीं किया गया है, उनके आवेदन करने के लिए जो 30 दिन समय दिया गया है, वह भी काफी कम है। एक दिन एक लाख से ज्यादा लोग कैसे आवेदन कर सकेंगे। यह मानवाधिकार का उल्लंघन है। एपीडीआर इसका जोरदार विरोध कर रहा है।


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