West Bengal Assembly Election 2021: चुनाव की आन, बान और शान, घुसपैठिए बन गए हैं भाई जान
घुसपैठियों के राजनीतिक का ही नतीजा है कि यहां मंत्री से संत्री तक स्वयं को असुरक्षित महसूस करते हैं।असम की तरह बंगाल में घुसपैठ के खिलाफ आंदोलन क्यों नहीं खड़ा हुआ? बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर मार्क्सवादी कम्युनिस्टभारतीय कांग्रेस तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के नेताओं कि लगातार बयानबाजी हो रही है।
सिलीगुड़ी, अशोक झा। 2021 का बंगाल और असम विधानसभा चुनाव का पहिया बांग्लादेशी घुसपैठियों के इर्द-गिर्द घूम रहा है। असम में 3 चरणों में तो बंगाल में 8 चरणों में चुनाव संपन्न होना है। दोनों ही राज्यों में पहले चरण का चुनाव 48 घंटे बाद यानी 27 मार्च को होगा। चिंता इस बात की है कि जिस घुसपैठिया के आन बान शान में वोट बैंक के लिए घुसपैठिए अब भाई जान बन गए हैं। इतना ही नहीं राजनीतिक मौन सहमति और संरक्षण के कारण बंगाल असम के सीमावर्ती क्षेत्र उग्रवादियों का नर्सरी गार्डन बनता जा रहा है। इसका उदाहरण चुनावी और राजनीतिक हिंसा है। घुसपैठियों के राजनीतिक का ही नतीजा है कि यहां मंत्री से संत्री तक स्वयं को असुरक्षित महसूस करते हैं। इस बात की पुष्टि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री व वर्तमान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर ने की है।
उनका कहना है कि असम 27 जिलों में से नौ जिले मुस्लिम बहुल हो चुके हैं। उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण वहां राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) तो गया, पर अभी भी वह आधा अधूरा है। चूंकि असम जाग गया है इसलिए कोई न कोई रास्ता तो निकलेगा ही। असम में जब घुसपैठियों के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ तो घुसपैठियों ने अपने लिए सबसे सुरक्षित बंगाल को अपनी शरणस्थली बनाया। 1961-71 और 1971-81 में बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर 30 प्रतिशत से नीचे थी, जो 1981-91 में अचानक बढ़कर लगभग 37 प्रतिशत हो गई। सवाल यह है कि असम की तरह बंगाल में घुसपैठ के खिलाफ आंदोलन क्यों नहीं खड़ा हुआ? बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं कि लगातार बयानबाजी हो रही है।
बांग्लादेशी घुसपैठिए इस चुनाव में इसलिए सुर्खियां बटोर रहा है क्योंकि यह वोट बैंक का हिस्सा ही नहीं बल्कि सुरक्षा सांस्कृतिक सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र के लिए संकट पैदा करने वाला है। घुसपैठियों के कारण पश्चिम बंगाल सीमावर्ती कई जिलों में पूरा का पूरा क्षेत्र मुस्लिम बाहुल्य बन गया है।बांग्लादेश से घुसपैठ को रोकने के लिए गृह मंत्री और रक्षा मंत्री ने असम और बंगाल के चुनावी सभाओं में आह्वान किया है कि असम में भाजपा सत्ता में आते ही समूची भारत-बांग्लादेश सीमा पर इलेक्ट्रॉनिक निगरानी प्रणाली स्थापित कर दी है।
बंगाल में भी भाजपा आती है तो हम अवैध घुसपैठ पर राजनीति नहीं होने देंगे। असमी -बंगाली सांस्कृतिक पहचान की रक्षा की जाएगी। यहां सीएए और एनआरसी लागू कर बंगाल को बांग्लादेशी घुसपैठिए मुक्त बनाया जाएगा। ठीक इसके विपरीत कांग्रेस के सांसद गौरव गोगोई, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से सूर्यकांत मिश्रा मोहम्मद सलीम, तृणमूल कांग्रेस की ओर से ममता बनर्जी अभिषेक बनर्जी तथा फिरहद हकीम वोट बैंक के समर्थन में एनआरसी और सीएए को जीते जी बंगाल में और असम में लागू नहीं होने देने की बात कही है।बंगाल की अराजक और हिंसक राजनीति ने राज्य के विकास को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है। असुरक्षा और रोजगार के अभाव में भी लोग पलायन को बाध्य हुए हैं। चूंकि असम के साथ बंगाल के भी विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए विदेशी घुसपैठ और एनआरसी के चुनावी मुद्दा बन गया है। एक तरफ कम्युनिस्ट दल, कांग्रेस और ममता की पार्टी घुसपैठ को नकार रही है तो दूसरी तरफ भाजपा घुसपैठियों को राज्य से बाहर निकालने की बात कर रही है। चुनाव पूर्व ही तृणमूल और भाजपा के बीच हिंसक संघर्ष शुरू हो गए हैं। असम और बंगाल के चुनाव साथ-साथ होने के चलते दोनों राज्यों के चुनावी मुद्दे घुसपैठ तो होने ही चाहिए। इसके साथ ही इसका भी ध्यान रखा जाए कि हिंदू पलायन का मुद्दा छूटे नहीं।
क्या है बांग्लादेशी घुसपैठियों की साजिश
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो ने अपनी पुस्तक 'मिथ ऑफ इंडिपेंडेंस' में लिखा था, 'भारत और पाकिस्तान के बीच केवल कश्मीर को लेकर मतभेद है, ऐसा सोचना ठीक नहीं है, बल्कि पूर्वी पाकिस्तान से सटे असम और बंगाल बिहार अन्य क्षेत्रों पर भी हमारा दावा बनता है।' पाकिस्तान और उसके शासकों की मंशा को भारत के शासक वोट बैंक के लालच में अनदेखी करते रहे। इसके परिणामस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान यानी तत्कालीन बांग्लादेश से एक दीर्घकालिक योजना के तहत भारत में घुसपैठ होती रही। विगत पांच दशकों में देश में मुस्लिम जनसंख्या 3.5 प्रतिशत बढ़ी, लेकिन असम में यह 11 प्रतिशत तो पश्चिम बंगाल में सात प्रतिशत बढ़ी। जो लोग मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि का बचाव इस रूप में करते हैं कि चूंकि मुस्लिम आम तौर पर परिवार नियोजन नहीं अपनाते अत: उनकी संख्या थोड़ी ज्यादा बढ़ी हुई दिखती है, वे गलत हैं, क्योंकि अगर मुस्लिम परिवार नियोजन नहीं अपनाते तो देश के दूसरे राज्यों में भी समान रूप से मुस्लिम जनसंख्या बढ़नी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बांग्लादेश से सटे असम-बंगाल और बिहार के सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम आबादी ज्यादा बढ़ती गई। ये भारतीय मुसलमानों की संख्या नहीं, बल्कि बांग्लादेश से आने वाले घुसपैठिये हैं और वे एक साजिश के तहत भारत आ रहे हैं।इससे वहां जनसंख्या का संतुलन बिगड़ रहा है।
क्या है वोट बैंक पॉलिटिक्स का महत्वपूर्ण क्षेत्र
पश्चिम बंगाल में इस साल विधानसभा चुनाव बीजेपी और टीएमसी के बीच जारी है जंग। पिछले 10 वर्षों से सत्ता में हैं मां माटी मानुष की सरकार यानी ममता बनर्जी। पश्चिम बंगाल के 294 विधानसभा क्षेत्रों में 98 विधानसभा क्षेत्रों में 30 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। मुर्शिदाबाद में 66 फीसदी, यहां 22 विधानसभा सीट हैं। मालदा में 12 विधानसभा सीट हैं और यहां मुस्लिम आबादी 51 फीसदी से ज़्यादा है। उत्तरी दिनाजपुर में मुस्लिम आबादी क़रीब 50 फीसद है, यहां 9 विधानसभा सीट हैं। बीरभूम में मुस्लिम आबादी 37 फीसद है, यहां 11 विधानसभा सीट हैं। दक्षिण 24 परगना ज़िले में 35 फ़ीसद से ज़्यादा वोटर मुस्लिम हैं, यहां 31 विधानसभा सीट हैं।
विभाजन का दंश झेल चुके बंगाल में घुसपैठिए साजिश
विभाजन का दंश झेल चुका बंगाल घुसपैठ की साजिश की कैसी अनदेखी कर रहा है, इसका प्रमाण है इस राज्य का मालदा जिला। विभाजन के बाद 1951 में मालदा में मुस्लिम 36.97 प्रतिशत थे, पर 1961 में वे बढ़कर 46.18 प्रतिशत हो गए। यानी मात्र 10 वर्ष में नौ प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई। आज यह मुस्लिम बहुल जिला है। मालदा की तरह मुर्शिदाबाद भी मुस्लिम बहुल है। पिछली जनगणना में उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर भी मुस्लिम बहुल हो गया। बंगाल में मुर्शिदाबाद के अलावा कुचबिहार, जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग, बांकुड़ा 24 परगना, नदिया, हुगली , पुरलिया, वर्धमान कोलकाता, हावड़ा और वीरभूम जिले में भी विगत पांच दशकों में मुस्लिम जनसंख्या आठ से 10 -15प्रतिशत बढ़ी है
341 सबडिवीजन में से 66 मुस्लिम बहुल हैं
बंगाल के 341 सबडिवीजन में से 66 मुस्लिम बहुल हैं। 2001 में यह संख्या 59 थी। यानी एक दशक में सात मुस्लिम बहुल सबडिवीजन बढ़े। विगत जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि एक दशक में प्रदेश के 341 सबडिवीजन में से 148 में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर हिंदुओं की तुलना में दो से पांच गुना है। विगत जनगणना में राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम एक प्रतिशत के करीब बढ़े, पर बंगाल के 24 सबडिवीजन में ये तीन से पांच प्रतिशत तक बढ़े। इन 24 में से 11 सबडिवीजन केवल दक्षिण 24 परगना जिले के हैं। राज्य में हिंदुओं की तुलना में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर दो गुना थी। अगर ऐसा ही चलता रहा तो बंगाल को पुन: विभाजन झेलना पड़ सकता है। कश्मीर घाटी की तरह बंगाल से भी हिंदुओं का पलायन हो रहा है।
बंगाल में 35 लाख से अधिक हिंदुओं का पलायन
शहरीकरण के इस दौर में विगत जनगणना में हिंदू जनसंख्या बढ़ने के बदले एक लाख 12 हजार घटी। राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू जनसंख्या वृद्धि दर भले 17 प्रतिशत से ऊपर रही हो, पर बंगाल में यह 10 प्रतिशत के करीब थी। राज्य के 27 सबडिवीजन में तो यह सात प्रतिशत से भी कम थी। अगर राष्ट्रीय स्तर पर हुए हिंदू जनसंख्या वृद्धि दर को आधार माना जाए तो राज्य में 35 लाख से अधिक हिंदुओं का पलायन हुआ है। इसको लेकर विश्व हिंदू परिषद लगातार बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में हिंदू जागरण अभियान को बल दे रहे हैं।