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याद किये गए तेनजिंग नोर्गे,भारत रत्‍‌न देने की फिर उठी मांग

-मंत्री ने कहा कि दाíजलिंग के सासद को संसद में उठाना चाहिए मुद्दा -सासद ने कहा कि उठा चुके

By JagranEdited By: Published: Fri, 29 May 2020 09:03 PM (IST)Updated: Fri, 29 May 2020 09:03 PM (IST)
याद किये गए तेनजिंग नोर्गे,भारत रत्‍‌न देने की फिर उठी मांग
याद किये गए तेनजिंग नोर्गे,भारत रत्‍‌न देने की फिर उठी मांग

-मंत्री ने कहा कि दाíजलिंग के सासद को संसद में उठाना चाहिए मुद्दा

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-सासद ने कहा कि उठा चुके हैं मुद्दा, कागजात मुहैया कराए राज्य सरकार जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : एवरेस्ट दिवस (29 मई) पर देश भर के साथ-साथ शुक्रवार को यहा भी प्रथम एवरेस्ट विजेता तेनजिंग नॉर्गे को नमन किया गया। इसी दिन उनकी जयंती भी थी। हिमालयन नेचर एंड एडवेंचर फाउंडेशन (नैफ) व सिलीगुड़ी जलपाईगुड़ी विकास प्राधिकरण (एसजेडीए) के संयुक्त तत्वावधान में दाíजलिंग मोड़ स्थित तेनजिंग नॉर्गे की प्रतिमा पर माल्यार्पण व पुष्पाजलि अíपत कर लोगों ने उन्हें श्रद्धाजलि दी।

इस अवसर पर पश्चिम बंगाल के पर्यटन मंत्री गौतम देव व अन्य कई सम्मिलित रहे। मंत्री गौतम देव ने कहा कि तेनजिंग नॉर्गे को भारत रत्न मिलना चाहिए। दाíजलिंग के सासद हर मुद्दे पर सरकार को पत्र लिखते रहते हैं। इस मुद्दे पर क्यों नहीं लिखते? पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से इस बाबत केंद्र सरकार को प्रस्ताव भी भेजा गया था लेकिन अब तक उस पर कोई सुनवाई नहीं हुई है। वहीं, नैफ के संयोजक अनिमेष बोस ने भी तेनजिंग नॉर्गे को भारत रत्न दिए जाने की वकालत करते हुए कहा कि उनकी उपलब्धि अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। जब दुनिया एवरेस्ट की चोटी के बारे में अच्छी तरह जानती भी नहीं थी तब एडमंड हिलेरी के साथ उन्होंने 29 मई 1953 को एवरेस्ट फतह किया था। उन्हें हर हाल में मरणोपरात भारत रत्न सम्मान से सम्मानित किया जाना चाहिए।

दूसरी ओर, दाíजलिंग के सासद राजू बिष्ट ने भी कहा है कि वह इस मुद्दे को पहले भी संसद में उठा चुके हैं और आगे भी इस दिशा में सरगर्म रहेंगे। उन्होंने कहा कि पर्यटन मंत्री गौतम देव से मेरा आग्रह रहेगा कि इस बाबत पश्चिम बंगाल राज्य सरकार की ओर से केंद्र सरकार को भेजे गए कागजातों की प्रतिलिपि वह मुझे मुहैया

इस मौके पर पर्यटन मंत्री गौतम देव के अलावा नगर निगम के शकर घोष, डॉ अमल बसाक, नैफ के संयोजक अनिमेष बसु, सचिव शकर मजूमदार व अन्य सदस्य मौजूद थे। प्रतिवर्ष की भाति इस वर्ष भी रक्तदान में 20 यूनिट रक्त संग्रह कर जिला अस्पताल को दिया गया। नैफ के संयोजक अनिमेष बसु ने बताया कि 29 मई का दिन एवरेस्ट के लिए यादगार दिन है। 1953 में इसी दिन तेनजिंग नोर्गे और एडमंड हिलेरी एवरेस्ट पर पहली बार चढ़े थे। इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। महान पर्वतारोही हिलेरी का वर्ष 2008 में निधन हो गया था। इसके बाद 29 मई को नेपाल ने अंतरराष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस के रूप में मनाने की अपील की थी, जिसे मान लिया गया। एवरेस्ट पर चढ़ना तो आज भी आसान नहीं है जबकि कई तरह की तकनीक आ चुकी है। पर्वतारोही कहीं ज्यादा सुरक्षा उपकरणों से लैस होने लगे हैं। सोचिए 67 साल पहले जब हिलेरी और नोर्गे ने ये काम किया होगा तो ये कितना कठिन रहा होगा। यह यहा के लोगों को हमेशा पर्वतारोहण के लिए प्रेरित करेगा।

उन्होंने आगे कहा कि एवरेस्ट की चोटिया हमेशा ही दुर्गम रही हैं और बर्फ से ढंकी रहती हैं। एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नॉर्गे ने तमाम मुश्किलों के बाद एवरेस्ट की चोटी को फतह किया। तब ये असंभव माना जाता था। उन्होंने इसे संभव कर दिखाया। बाद में हिलेरी को ब्रिटेन की महारानी ने नाइट की उपाधि भी दी।

कैसे हुआ था सपना साकार

सन 1953 में सर जॉन हंट के नेतृत्व में दुनिया के 20 बेहतरीन पर्वतारोही एवरेस्ट पर चढ़ने चल दिये थे। इसमें न्यूजीलैंड के हिलेरी और दाíजलिंग के तेनजिंग नोर्गे भी शामिल थे।

इससे पहले 63 देशों के 1200 पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट पर चढ़ने की कोशिश की थी लेकिन कोई भी सफल नहीं हो पाए थे। एडमंड हिलेरी खुद इससे पहले दो बार कोशिश कर चुके थे और नाकाम रहे थे।

तब हिलेरी ने हिमालय की तरफ देखकर कहा था मैं फिर आऊंगा। तुम उस वक्त भी इतने ही ऊंचे रहोगे पर मेरा हौसला पहले से कुछ ज्यादा ऊंचा हो जाएगा। हिलेरी का साथ तेनजिंग ने दिया। वो उस टीम में पर्वतारोहण के काम में सबसे माहिर शख्स थे।

जब पहली टीम नाकाम होकर लौटी थी

मार्च 1953 में 25,900 फीट की ऊंचाई पर बेस कैंप तैयार कर दिया गया। 26 मई को जॉन हंट ने मे बाउड्रीलन और इवन्स को पहले दल के रूप में चढ़ाई के लिए भेजा लेकिन इवन्स का ऑक्सीजन सिस्टम रास्ते में ही फेल हो गया, जिस कारण दोनों वापस लौट आए।

फिर गोरखा पुत्र तेनजिंग नोर्गे और हिलेरी ने इतिहास रच दिया था। दूसरी टीम के रूप में हिलेरी और दाíजलिंग के तेनजिंग को भेजा गया। उस समय ठंडी बर्फीली हवाएं चल रही थीं। उन दोनों को दक्षिण हिस्से तक पहुंचने में दो दिन लग गए। जब वो वहा पहुंचे तो उन्होंने इतिहास रच दिया। आज यहा के लोगों के लिए यह यादगार क्षण है।


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