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देशी मांगुर मछली के कल्टीवेशन में किसानों को मिली सफलता

सिलीगुड़ी : उत्तर बंगाल विश्व विद्यालय के बॉयो टेक्नोलॉजी विभाग के अधीनस्थ सेंटर फॉर फ्लोरिकल्चर एंड एग्री विजनेस मैनेजमेंट के सहयोग से जिले के पतिराम जोत गांव में देशी मछली मांगुर के सफल कल्टीवेशन का काम दो किसानों ने किया है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 07 Apr 2018 11:46 PM (IST)Updated: Sat, 07 Apr 2018 11:46 PM (IST)
देशी मांगुर मछली के कल्टीवेशन में किसानों को मिली सफलता
देशी मांगुर मछली के कल्टीवेशन में किसानों को मिली सफलता

फोटो-संजय- 01

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-कृत्रिम तालाब तैयार कर छह महीने पहले किया गया था कल्टीवेशन

-शरीर में खून की कमी दूर हो जाती है इसको खाने से

शिवानंद पांडेय,

सिलीगुड़ी : उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय (एनबीयू) के बायो टेक्नोलॉजी विभाग अधीनस्थ सेंटर फॉर फ्लोरिकल्चर एंड एग्री-बिजनेस मैनेजमेंट (कोफाम) के सहयोग से माटीगाड़ा प्रखंड के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र पतिराम जोत में देशी मंागुर मछली का सफल कल्टीवेशन किया गया है।

सिमेंटेड कृत्रिम तालाब तैयार छह महीने पहले इसका कल्टीवेशन किया गया था। उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय (एनबीयू) के बायो टेक्नोलॉजी विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर शिल्पी घोष के निर्देशन में तकनीकी अधिकारी अमरेंद्र पांडेय की देखरेख में जरूरी सामग्री मुहैया कराई गई। इसके परिणाम स्वरूप मांगुर मछली अब जाकर पूरी तरह से हुई है। सिर्फ तैयार ही नहीं हुई है, बल्कि सिलीगुड़ी के बाजार में जल्द ही उपलब्ध भी होने वाली है। एनबीयू कोफाम से मिली जानकारी के अनुसार वाणिज्यक तौर पर भी उत्तर बंगाल में पहली बार देशी मागुर मछली की कल्टीवेशन हुई है।

तकनीकी अधिकारी अमरेंद्र पांडेय ने बताया कि पतिराम जोत के दो उद्यमी चंदन व्यापारी व विद्यासागर व्यापारी ने 12 फीट चौड़ा व 50 फीट लंबा तथा चार फीट गहरा सिमेंटेड कृत्रिम तालाब तैयार कराए। पिछले वर्ष उसमें कोफाम कीदेख-रेख में लगभग 30 हजार रुपये की लागत से देशी मांगुर के पांच हजार बीज (बच्चे) डाले गए। उन्होंने बताया कि बीज डालने के समय प्रत्येक मांगुर मछली की लंबाई लगभग एक इंच से डेढ़ इंच थी। उन्होंने बताया कि तालाब में मछली का उचित आहार व आक्सीजन मिलता रहे, इसका पूरा ध्यान रखा गया। तालाब से गंदे पानी बाहर निकलने की जहां व्यवस्था की गई थी, वहीं कृत्रिम झरने के माध्यम से तालाब में पानी का फब्बारा का दिया जाता था। फब्बारे से मछली को उचित आक्सीजन प्राप्त होता है। पांडेय ने बताया कि वर्तमान में मांगुर का काफी अच्छा विकास हुआ है तथा इसका वजन 100 से 150 ग्राम तक हो गया है। सिलीगुड़ी बाजार में फुटकर दर 700 से 800 रुपये प्रति किलोग्राम है। जबकि थोक दर में इसकी कीमत 500 रुपये प्रति किलोग्राम है। देशी मांगुर के सेवन से खून की कमी दूर होती है। खून की कमी यानी एनिमिया से पीड़ित मरीजों को देशी मांगुर खाने की सलाह डाक्टर भी देते हैं।


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