Move to Jagran APP

आजादी की पहली रात बहुत बेचैन रहा था सिलीगुड़ी, हिंदुस्‍तान में खुलेगी आंख कि पाकिस्तान में !

Independence dayआजादी के समय जलपाईगुड़ी व दार्जिलिंग के लोग इसी असमंजस में थे कि यह क्षेत्र किसके हिस्से में जाएगा? आजादी की सुबह हम पाकिस्तान में देखेंगे या हिंदुस्‍तान में।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 12 Aug 2019 03:48 PM (IST)Updated: Mon, 12 Aug 2019 03:48 PM (IST)
आजादी की पहली रात बहुत बेचैन रहा था सिलीगुड़ी, हिंदुस्‍तान में खुलेगी आंख कि पाकिस्तान में !
आजादी की पहली रात बहुत बेचैन रहा था सिलीगुड़ी, हिंदुस्‍तान में खुलेगी आंख कि पाकिस्तान में !

सिलीगुड़ी, इरफान-ए-आजम। सन् 1947, 14 अगस्त का दिन गुरुवार बीत गया था। शाम ढलते ही लोग अपने-अपने घरों में जा चुके थे। खा-पी कर सोने की बारी थी। मगर, आंखों में नींद नहीं, जी को करार नहीं। देश की आजादी की बेकरारी दिलों में हलचल मचाए हुए थी। उस रात सिलीगुड़ी बहुत-बहुत बेचैन था।

loksabha election banner

खैर, आधी रात होते ही सरगोशी तेज हुई। खबर आई कि देश आजाद हो चुका है। बस क्या था। आजादी के मतवालों का जत्था आधी रात में ही घरों से निकल पड़ा। कोई लालटेन लिए। कोई लाठी तो कोई मशाल। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तब के यहां के दिग्गज नेता शिवमंगल सिंह के नेतृत्व में लोग महानंदा नदी किनारे जमा हुए।

वंदे मात्रम..वंदे मात्रम.. इन्किलाब जिंदाबाद.. इन्किलाब जिंदाबाद.. जय हिंदू.. जय भारत.. के नारों से माहौल गूंज उठा। लोगों ने जम कर पटाखे छोड़े। शिवमंगल सिंह ने लोगों को संबोधित किया। देशभक्ति से ओत-प्रोत भाषण दिया। हर किसी में मानो एक नया जोश भर गया। आजादी की सुबह यानी शुक्रवार के दिन हर किसी को पंडित जवाहर लाल नेहरू के भाषण का रेडियो पर बेसब्री से इंतजार था। जब भाषण प्रसारित हुआ तो जगह-जगह सामूहिक रूप में सुना गया।

‘सिलीगुड़ी का इतिहास’ के लेखक वयोवृद्ध वरिष्ठ नागरिक शिवप्रसाद चट्टोपाध्याय (गत वर्ष वह उम्र के 100वें पड़ाव पर पहुंचे हैं) बताते हैं कि सन् 1947 में अगस्त महीना शुरू होते ही आजादी का माहौल बनने लगा था। हम लोग यहां अमृत बाजार पत्रिका व आनंद बाजार पत्रिका और जुगांतर आदि अखबारों के माध्यम से आजादी से संबंधित हर हलचल से अवगत होते रहते थे। तब दो पैसे में अखबार आता था। उस पर भी यहां एक दिन पुराना अखबार ही मिल पाता था। वह बताते हैं कि आजादी का ऐसा माहौल था कि हर जगह उसी की चर्चा थी। तब, सिलीगुड़ी की आबादी बमुश्किल 10-12 हजार ही रही होगी। सिलीगुड़ी एक छोटे से गांव जैसा था।

स्वतंत्रता संग्राम के दिनों को याद करते हुए वह बताते हैं कि सिलीगुड़ी में आज जहां मायेर इच्छा कालीबाड़ी है वहां उस समय घना जंगल हुआ करता था। आजादी के मतवालों में गरम दल के लोग उसी जंगल में अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण लिया करते थे। बताया यह भी जाता है कि यहां का ‘फांसीदेवा’ अंग्रेजों के जमाने में बड़ा ही खतरनाक माना जाता था। स्वतंत्रता के पैरोकारों को अंग्रेज वहीं ले जा कर फांसी दिया करते थे। इसीलिए वह क्षेत्र फांसीदेवा के नाम से ही जाना जाने लगा।

भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महानायक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में सिलीगुड़ी आए थे। वह समय, वर्ष 1925 का मई महीना था। तब, स्वतंत्रता सेनानी देशबंधु चित्त रंजन दास यहां बहुत बीमार थे। उन्हें देखने ही महात्मा गांधी यहां आए थे।

सियालदह से दार्जिलिंग मेल के जरिये वह सिलीगुड़ी जंक्शन (अब सिलीगुड़ी टाउन स्टेशन, थोड़े से बदलाव के साथ आज भी उसी रूप में मौजूद) पहुंचे। यहां से दार्जिलिंग गए। उस सफर में यहां के तत्कालीन दिग्गज कांग्रेसी नेता शिवमंगल सिंह भी उनके साथ रहे थे।

दार्जिलिंग के माल स्थित चित्तरंजन दास के मकान पर जा कर गांधी जी ने उनका हालचाल लिया और वहां एक रात ठहरे भी। दार्जिलिंग से वापसी के क्रम में महात्मा गांधी सिलीगुड़ी में शिवमंगल सिंह के मकान पर भी ठहरे। वहीं, गांधी जी ने कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं संग बैठक भी की थी।

शहर के हाशमी चौक के निकट हिलकार्ट रोड पर आज उस मकान की जगह शहर की सबसे पहली 10 मंजिली निलाद्री शिखर बिल्डिंग कायम है। शिवमंगल सिंह के पौत्र, शहर के जाने-माने उद्यमी व समाजसेवी नंदू सिंह अपने पूर्वजों से विरासत में मिली यादों को ताजा करते हुए बताते हैं कि उस समय एक विवाद बापू के पल्ले पड़ गया था। हुआ यह था कि उनके दादा (शिवमंगल सिंह) ने यहां की पहाड़ी संस्कृति व परंपरा के तहत बापू को जहां खादा पहनाया वहीं ‘खुकुरी’ भी भेंट की। तब, देश भर में यह चर्चा का विषय बन गया कि अहिंसा के पुजारी ने आखिर कैसे हिंसा के हथियार का तोहफा कबूल कर लिया? गांधी जी के विरोधियों ने इसे बड़ा तूल दिया। खैर, समय के साथ मामला ठंडा पड़ गया।

ऐसी ही यादों को ताजा करते हुए नंदू सिंह कहते हैं कि आजादी के समय जलपाईगुड़ी व दार्जिलिंग जिला के लोग इसी असमंजस में थे कि यह क्षेत्र किसके हिस्से में जाएगा ? आजादी की सुबह हम पाकिस्तान में देखेंगे या हिंदुस्‍तान में? तब, जगह-जगह यही बहस का सबसे बड़ा असमंजस भरा मुद्दा था। खैर, आजादी मिली। इधर का रंगपुर डिविजन व उससे आगे का क्षेत्र पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) हो गया। सिलीगुड़ी-जलपाईगुड़ी समेत पूरा उत्तर बंगाल अपने प्यारे हिंदुस्‍तान में ही रहा।

अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.