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लेखक वही है जो अन्याय के खिलाफ लिखे : शिवमूर्ति

कथा साहित्य में जीवित किंवंदती बन चुके शिवमूर्ति जी को सिलीगुड़ी में अमरावती सृजन पुरस्कार से नवाजा गया। इस अवसर पर उन्होंने क्या कहा, आप भी पढ़िए...।

By Rajesh PatelEdited By: Published: Mon, 18 Feb 2019 10:09 AM (IST)Updated: Mon, 18 Feb 2019 10:09 AM (IST)
लेखक वही है जो अन्याय के खिलाफ लिखे : शिवमूर्ति
लेखक वही है जो अन्याय के खिलाफ लिखे : शिवमूर्ति
सिलीगुड़ी [जागरण संवाददाता]। 'आपका तिस्ता-हिमालय' पत्रिका की ओर से रविवार को ऋषि भवन (बर्दवान रोड) में साहित्य-संस्कृति सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इसमें हिंदी के वर्तमान सर्वाधिक लोकप्रिय कथाकार शिवमूर्ति को 'अमरावती सृजन पुरस्कार-2018' से पुरस्कृत किया गया। शिवमूर्ति ने कहा कि जो अन्याय के खिलाफ लिखे, वही लेखक हैं। इसके साथ ही सिलीगुड़ी के कवि करण सिंह जैन को सामाजिक-सांस्कृतिक योगदान के लिए 'अमरावती-रघुवीर सामाजिक-सांस्कृतिक उन्नयन सम्मान-2018' से सम्मानित किया गया। कवि करण सिंह जैन ने कहा कि सम्मान से वह अभिभूत हैं। इससे उनमें आगे और बेहतर कर दिखाने का उत्साह बढ़ा है।
    सम्मान समारोह के दौरान शिवमूर्ति पर आधारित उक्त पत्रिका के विशेषांक का भी विमोचन हुआ। इसके स्वागत समारोह में 'आपका तिस्ता-हिमालय' पत्रिका के संपादक डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह ने शिवमूर्ति को आधुनिक काल का प्रेमचंद करार देते हुए कहा कि वह जन सरोकारों के सच्चे कथाकार हैं। आयोजक पत्रिका की विद्वत परिषद के अध्यक्ष देवेन्द्रनाथ शुक्ल ने पत्रिका की एक दशक की यात्रा पर प्रकाश डाला। समारोह के मुख्य वक्ता आसनसोल गर्ल्स, कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि शिवमूर्ति का साहित्य इंडिया के विरुद्ध भारत के पक्ष में खड़ा है। आयोजक पत्रिका के संरक्षक समाज की पूर्णतया बाजार पर निर्भरता को अत्यंत चिंतनीय बताया।
   इस उपलक्ष्य में शिवमूर्ति की अध्यक्षता में 'चुनौतियों का समकाल और साहित्य' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी भी हुई। समारोह संचालक सिलीगुड़ी कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अजय कुमार साव ने बीज वक्तव्य रखते हुए कहा कि एक ओर तमाम विमर्श हैं, तो दूसरी ओर राजनीतिक एवं वैधानिक परिणति, जिसके प्रति हमारे आचरण का युक्तिसंगत बने रहना दुर्लभ होता जा रहा है। इसके साथ ही अनंत विवशता के समक्ष परास्त होने की मानसिकता भी विविध आयामों में घनीभूत होती जा रही है। ऐसे में साहित्य के प्रति साहित्यकार की भूमिका अतिरिक्त सजगता की मांग करती है।
   बागडोगरा कॉलेज की सहायक प्राध्यापिका पूनम सिंह ने विमर्श को नन्हे एवं वृद्ध पीढ़ी के अलावा प्रवासी और अप्रवासी संदर्भ में चुनौतीपूर्ण बताया। गवर्नमेंट कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर रहीम मियां ने शिवमूर्ति की रचना त्रिशूल के हवाले से कहा कि धर्म का सांप्रदायिककरण इस कदर चुनौतीपूर्ण सरकार को रच गया है कि मनुष्यता और नागरिकता के ऊपर और बहुत दूर मनुष्य धर्म का पर्याय बन कर प्रतिद्वंद्वी की नियति भुगत रहा है। डॉ. मुन्ना लाल प्रसाद ने कहा कि आज राजनेता और साहित्यकार के मंच में कोई अंतर नहीं रह गया है, तो साथ ही पाठक साहित्य से ही दूर नहीं हो गए बल्कि बाजार की गिरफ्त में अपने दायित्व से भी बेखबर हो गए हैं।
   पुरस्कार एवं सम्मान सत्र के अध्यक्ष सेना के खुफिया विभाग के पूर्व अधिकारी भागीरथ दे ने सबसे बड़ी चुनौती यह बताया कि आज युवा पीढ़ी के पास स्वयं के लिए कोई भावी योजना नहीं है। ऐसे में समाज और राष्ट्र की संरचना स्वयं में एक अनुत्तरित प्रश्न है। इस अवसर पर साहित्यकार डॉ. भीखी प्रसाद 'वीरेंद्र', डॉ. ओमप्रकाश पांडेय, सीवी कार्की, समाजसेवी आरके गोयल, शशिभूषण द्विवेदी, रंजना श्रीवास्तव, डॉ. वंदना गुप्ता, अर्चना शर्मा, मंटू कुमार, गौतम लामा, सुनीता प्रधान, संतोष कुमार क्रांति, बबीता अग्रवाल एवं अन्य कवि साहित्यकार तथा बुद्धिजीवी उपस्थित रहे। संगोष्ठी का संचालन शिक्षक दीपू शर्मा ने सफलतापूर्वक किया। सिलीगुड़ी महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक सहभागिता निभाई।

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