जो पर पीर न जानै, सो काफिर बेपीर
-वर्तमान कोरोना महामारी के भीषण संकट काल से उबरने के लिए सबसे जरूरी समानुभूति -दैनिक जागरण
-वर्तमान कोरोना महामारी के भीषण संकट काल से उबरने के लिए सबसे जरूरी समानुभूति
-दैनिक जागरण ने आयोजित की ऑनलाईन संस्कारशाला, शिक्षिका सुतपा नंदी ने व्यक्त किए विचार
जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : मानव की महानता मानव होने में नहीं, मानवीय होने में है। यह तभी संभव है जब संस्कारों को अंतरह्रदय से सजाया जाए, संवारा जाए। ओलिविया इनलाइटेंड इंग्लिश स्कूल (बिधाननगर-सिलीगुड़ी) की निदेशक प्राचार्य सुतपा नंदी ने यह विचार व्यक्त किए। वह दैनिक जागरण के राष्ट्रव्यापी अभियान संस्कारशाला की कड़ी में शुक्रवार को दैनिक जागरण (सिलीगुड़ी) की ओर से आयोजित ऑनलाईन संस्कारशाला में बतौर अतिथि वक्ता अपने विचार व्यक्त कर रही थीं। विषय था समानुभूति। इस पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि समानुभूति मन की वह इच्छा, वह संवेदना है जिससे हम दूसरों की आखों से देखें, दूसरों के कानों से सुनें और दूसरों के हृदय से महसूस करें। इस को परिभाषित कर पाना असंभव है। यह एक मनोभाव है। इसलिए इसे शब्दों में व्यक्त कर पाना संभव नहीं है। समानुभूति एक गहरी मानवीय संवेदनशीलता है। केवल यह कह देना कि मैं आपके साथ हूं काफी नहीं है बल्कि साथ होना और यह कहना कि मैं आप में हूं यह समानुभूति है। वर्तमान कोरोना महामारी के भीषण संकट काल में समस्त भावनाओं में सबसे बेहतर भावना जो है वह समानुभूति ही है। इसकी अभी विश्व को बहुत आवश्यकता है। समानुभूति से ही हम आज की इस कोविड-19 महामारी की विकट परिस्थिति से उबरने में सक्षम हो सकते हैं। इसके लिए उन्होंने पाच मंत्र भी दिए कि किसी भी परिस्थिति में देखो, याद रखो, सोचो, पूछो और सहारा बनो। उन्होंने कहा कि जरूरतमंद लोगों को दया और करुणा नहीं बल्कि साथ व सहारा चाहिए। यही समानुभूति है।
हजारों लोगों ने फेसबुक लाइव पर देखा सीधा प्रसारण
दैनिक जागरण की इस पहल की भूरी भूरी प्रशसा करते हुए उन्होंने कहा कि दैनिक जागरण अपने राष्ट्रव्यापी अभियान संस्कारशाला के तहत देशभर में विद्यालय-विद्यालय जाकर बच्चों में संस्कारों का बीजारोपण करता आ रहा है और आज वर्तमान कोरोना महामारी के भीषण संकट काल में भी अपने दायित्व से किनारा नहीं किया व ऑनलाईन माध्यम से भी संस्कारशाला को जारी रखा है। इसकी जितनी प्रशसा की जाए कम है। उन्होंने यह भी कहा कि दैनिक जागरण के अलावा उन्होंने ऐसा कोई अखबार न देखा है, न सुना है जो मानवता के इस अहम हिस्से की गहनता को समझते हुए ऐसा कोई प्रयास किया हो, या कर रहा हो। समानुभूति को व्याख्यायित करने में उन्होंने कबीर की एक पंक्ति भी उद्धृत की कि कबीरा सोई पीर है, जो जानै पर पीर.. जो पर पीर न जानै सो काफिर बेपीर..। अर्थात पीर यानी सज्जन वही है जो दूसरों की पीर यानी पीड़ा को समझ सके। जो दूसरों की पीड़ा को नहीं समझ सकता वो दुर्जन के समान है। दैनिक जागरण (सिलीगुड़ी) की ओर से इसका अपने फेसबुक पेज पर इस ऑनलाईन संस्कारशाला का सीधा प्रसारण भी किया गया जिसे हजारों लोगों ने देखा। इस अवसर पर अतिथि वक्ताओं ने विभिन्न दर्शकों द्वारा विषय संबंधित पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दे कर उनकी जिज्ञासाओं का समाधान भी किया।