चाय श्रमिकों की स्थिति अभी भी वर्ष 1955 जैसी- समन पाठक
-विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलन करना मजबूरी -इतने साल भी अभी तक न्यूनतम वेतन तय नहीं ---
-विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलन करना मजबूरी
-इतने साल भी अभी तक न्यूनतम वेतन तय नहीं
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जून 1955 में चाय श्रमिकों पर चली थी गोलिया
- गर्भवती महिला सहित 14 लोगों की गई थी जान
-विरोध मे पचास हजार से अधिक श्रमिक उतरे थे सड़क पर
जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी: चाय श्रमिकों की जो स्थिति 1955 में थी वही स्थिति आज 2020 में भी है। उस समय भी उन्हें अपने वेतन और बोनस के लिए आदोलन करना पड़ा था और आज भी अपने न्यूनतम वेतन के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ रहा है। यह कहना है माकपा के पूर्व राज्यसभा सासद व सीटू के दाíजलिंग जिला अध्यक्ष समन पाठक का। उन्होंने 25 जून को चाय श्रमिकों के लिए ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि अपने हक के लिए पहली बार उन्हें दाíजलिंग के माग्र्रेट चाय बागान में गोली खानी पड़ी थी। आज उन्हें लाल सलाम कहे बिना रहा नहीं जा सकता। पाठक ने बताया कि 1943 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का गठन दाíजलिंग हिल्स में हुआ उसके बाद माकपा नेता रतनलाल ब्राह्मण के नेतृत्व में चाय बागान में भी 1950 में संगठन शुरू किया गया। उसी वर्ष मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का गठन हुआ। उसी साल गोरखाली का भी गठन हुआ। चाय श्रमिकों के मुद्दे पर रतनलाल ब्राह्मण ने सभी संगठनों को एकजुट करते हुए 14 सूत्री मागों के समर्थन में 22 जून 1955 को संयुक्त आदोलन प्रारंभ किया। अपनी मागों के समर्थन में 25 जून को जब डुवार्स के चाय बागान के श्रमिकों को बराबर मजदूरी के लिए माग्र्रेट होप चाय बागान में जमा हुए तो पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी। इस फायरिंग में गर्भवती महिला समेत 14 लोगों की जान चली गई थी। इसके विरुद्ध 27 जून को दाíजलिंग में 50,000 से अधिक लोगों की भीड़ सड़क पर उतरी। बाध्य होकर सरकार और चाय बागान मालिकों ने दाíजलिंग हिल्स के चाय बागान के श्रमिकों की सभी मागे मानकर 28 जून को एक समझौते पर हस्ताक्षर किया। पाठक का कहना है कि चाय बागान श्रमिक इतने वर्षो बाद भी आज भी न्यूनतम वेतन के लिए आए दिन सरकार और प्रशासन के सामने आदोलन करने पर बाध्य हैं।