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अचानक आई आफत,भूख से बिलबिलाने लगे बच्चे तो चल दिए पैदल

-करीब 15 सौ किलोमीटर तय कर सिलीगुड़ी पहुंचे प्रवासी मजदूर -ग्रुप में छोटे-छोटे बच्चे आ

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 May 2020 06:35 PM (IST)Updated: Sat, 16 May 2020 06:35 PM (IST)
अचानक आई आफत,भूख से बिलबिलाने लगे बच्चे तो चल दिए पैदल
अचानक आई आफत,भूख से बिलबिलाने लगे बच्चे तो चल दिए पैदल

-करीब 15 सौ किलोमीटर तय कर सिलीगुड़ी पहुंचे प्रवासी मजदूर

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-ग्रुप में छोटे-छोटे बच्चे और महिलाएं भी शामिल

-एनबीयू का फैक्ल्टी क्लब बना सबका ठिकाना

-स्वास्थ्य जांच कर दीनहाटा भेजने की हुई तैयारी

-आठ महीने पहले राज मिस्त्री का काम करने गए थे विपिन राय,सिलीगुड़ी: कोरोना संकट के इस दौर में पूरे देश में प्रवासी मजदूरों पर पहाड़ टूट पड़ा है। पिछले पचास दिन से भी अधिक समय से लॉकडाउन के कारण कामकाज बंद है और इनके सामने रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है। इसी वजह से जो मजदूर कभी अपना घर बार छोड़ कर अपनी जिंदगी संवारने का सपना लेकर दूसरे राज्यों में रहे थे,अब वही मजदूर सपना टूटने के बाद अपने-अपने घर वापस लौट रहे हैं। उनके सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है। लॉकडाउन के कारण ट्रेन एवं बस सेवाएं बंद हैं। ऐसे में चाह कर भी मजदूर घर नहीं लौट पा रहे हैं। हांलाकि अभी सरकार ने प्रवासी मजदूरों के लिए विशेष ट्रेनों की व्यवस्था की है,लेकिन इसमें काफी देरी हो गई है। लाखों मजदूर जो पैदल अपने घरों की ओर निकले हैं,वो लगातार चल रहे हैं या कहीं फंस गए हैं। सिलीगुड़ी में भी प्रवासी मजदूर दूसरे राज्यों से पहुंचने लगे हैं। इनको विभिन्न स्थानों पर राज्य सरकार ने शेल्टर होम बनाकर रखा है। कुछ मजदूर खोरीबाड़ी में रूके हैं तो कुछ उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के फैक्ल्टी क्लब में हैं। छोटे-छोटे बच्चें और महिलाएं भी इनमें शमिल हैं। इन सभी की दर्द ऐसी कि कोई भी रो पड़े। आप यहां खाने का एक पैकेट लेकर चले जाएं फिर देखें बच्चे कैसे आप पर टूट पड़ते हैं। इनकी भी मजबूरी है। प्रवासी मजदूरों का कहना है कि क्या करते। पहले जहां थे,वहीं रहे। आने का इरादा नहीं था। लेकिन जब बच्चे भूख से बिलबिलाने लगे तो बर्दाश्त नहीं हुआ और पैदल ही घर की ओर चल पड़े। ऐसे ही प्रवासी मजदूर हरियाणा से पहुंचे हैं। इन लोगों ने उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के फैकल्टी क्लब में आश्रय लिया है। इनकी संख्या 28 है। इनमें महिलाएं एवं छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल हैं। यह सभी कूचबिहार जिले के दिनहाटा के रहने वाले हैं। 8 महीने पहले अधिक पैसा कमाने एवं अपने परिवार तथा बच्चों की जिंदगी संवारने के लिए हरियाणा गए। इनमें से अधिकाश लोग राजमिस्त्री का काम करते हैं। कोराना वायरस का चेन तोड़ने के लिए अचानक लॉकडाउन हो गया और यह सभी बेसहारा हो गए। पिछले 2 महीने से इनका कामकाज पूरी तरह से ठप हो गया। इस दौरान कुछ दिनों तक तो किसी तरह इनका खाना-पीना चला। बाद में सरकार के साथ ही मालिकों ने भी हाथ खड़ा कर दिया। भूखे रहने की नौबत आ पड़ी। मजदूरों ने बताया कि घर छोड़कर गए थे ज्यादा कमाने,लेकिन यहां तो भूखों मरने की नौबत आ गई। ऐसे में सभी मजदूरों ने वापस लौटने का फैसला किया। कहते हैं कि पैदल ही यह सभी लोग हरियाणा के गुड़गाव से निकल पड़े। बीच-बीच में कहीं ट्रक या फिर कोई अन्य गाड़ी मिली तो उसकी सवारी भी की। लेकिन अधिकाश रास्ता इन लोगों ने पैदल ही तय है किया है। फिलहाल फैकल्टी क्लब का शेल्टर होम इन सबका सहारा बना है। यहीं इन सभी के खाने पीने की व्यवस्था की गई है। इनके स्वास्थ्य की भी जाच की जा रही है। आने वाले दिनों में इन सभी को परिवार के साथ दीनहाटा भेज दिया जाएगा। अनवर अली नामक एक प्रवासी मजदूर ने बताया कि अचानक लॉकडाउन एवं कोरोना वायरस ने उसकी पूरी जिंदगी तबाह कर दी। राजमिस्त्री का काम करने वाले हाथ ने जीवन बसर के लिए धान तथा गेहूं के फसल भी काटे। लेकिन बात नहीं बनी। कई दिनों तक तो एक समय का भोजन कर रह लेते थे। लेकिन नौबत दोनों समय भोजन नहीं मिलने की हो गई। बच्चों को भूखा नहीं देख सकते थे। इसके अलावा दीनहाटा में उनके मां-बाप और परिवार के अन्य लोग भी परेशान थे। बाध्य होकर हरियाणा छोड़कर अपने गाव निकलना बड़ा। रुपये-पैसे कुछ भी नहीं है। यह सभी मजदूर 8 महीने पहले हरियाणा गए थे। छह माह ही काम कर सके। करीब 2 महीने से तो लॉकडाउन ही है। 6 महीने में जो पैसा कमाया वह 2 महीने के लॉकडाउन के दौरान खत्म हो गया। कुछ पैसे बचे भी थे तो रास्ते में मिलने वाली गाड़ियों के किराए मैं खत्म हो गए। किसी गाड़ी में पचास किलोमीटर का सफर तय किया तो किसी में सौ किलोमीटर का। गाड़ी नहीं मिली तो पैदल ही चलते रहे।

एक अन्य प्रवासी मजदूर अशरफ अली का कहना है कि राजमिस्त्री का काम कूचबिहार जिले में भी मिल जाता है। लेकिन नियमित रूप से काम नहीं मिलता। एक दिन काम मिलता है तो तीन-चार दिन बैठकर रहना पड़ता है। इसीलिए हरियाणा जाकर काम करने का निर्णय लिया। हरियाणा में नियमित काम तो मिलता ही है साथ ही पैसे भी अधिक मिल जाते हैं। यही सोचकर वह काम करने गया था। अब ऐसी आफत आएगी सोचा तक नहीं था। इस बीच इन मजदूरों का हाल-चाल लेने के लिए अठारोखाई ग्राम पंचायत के प्रधान अभिजीत पाल भी पहुंच। इन सभी लोगों के खाने-पीने की व्यवस्था की गई है। उन्होंने बताया कि प्रवासी मजदूरों को दीनहाटा वापस भेजने की तैयारी की जा रही है।


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