प्राकृतिक चिकित्सा की ओर बढ़ रहा है लोगों का रूझान
-कई प्रकार की बीमारी का इलाज संभव -कोई साइड इफेक्ट नहीं होने से बढ़ा भरोसा स्नेहलता शर्मा, सिलीगुड़
-कई प्रकार की बीमारी का इलाज संभव
-कोई साइड इफेक्ट नहीं होने से बढ़ा भरोसा स्नेहलता शर्मा, सिलीगुड़ी : सबकी यही कामना होती है कि किसी प्रकार की कोई बीमारी ना हो। इस दौर में हर कोई दवा लेने से परहेज करता है। अगर दवा लेनी भी पड़े तो ऐसा इलाज चाहता है,जिसका कोई साइड इफेक्ट नहीं हो। ऐसे में अधिकतर लोग प्राकृतिक तरीके से इलाज करवाने की ओर मुड़ने लगे है। स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा का सहारा ले रहे है। यह चिकित्सा पद्धति धीरे-धीरे काफी लोकप्रिय हो चुका है।
प्राकृतिक चिकित्सा से जुड़ी डा. नीलम वर्मा (डिपार्टमेंट, आयुष, गर्वमेंट ऑफ इंडिया) कहती हैं कि हमारा शरीर पांच तत्वों मिट्टी, जल, हवा,आकाश,धूप से बना है। इन्हीं पांच तत्वों से ब्रह्मांड भी बना है। ऐसे में शरीर की किसी बीमारी के इलाज के लिए इन्हीं तत्वों का सहारा लिया जाता है। इस चिकित्सा के तहत शरीर में जिस तत्व की कमी से बीमारी होती है उसी तत्व से उस बीमारी का इलाज किया जाता है। इलाज के लिए मिट्टी,जल,धूप सहित अन्य तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है। जिसमें प्रमुख रूप से मिट्टी का लेप शामिल है। ठंडे और गर्म पानी की पट्टियां दी जाती है। प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से हर रोग का इलाज संभव है। बस इसके लिए धैर्य रखने की आवश्यकता है। कभी-कभी रोगी को गैस अधिक बनती है तो उसे उपवास कराया जाता है। एक डाइट चार्ट दिया जाता है। इलाज के दौरान इसको फॉलो करना जरूरी है। तभी सही इलाज संभव है। अगर रोगी मधुमेह, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारी से पीड़ित है तो उसकी जो दवा चल रही है,उसे छोड़ने के लिए कतई नहीं कहा जाता है। कई बार इसी भय से रोगी प्राकृतिक चिकित्सा करवाने से डरता है। लेकिन ऐसा नहीं है। प्राकृतिक चिकित्सा के दौरान जब रोगी ठीक होने लगता है तो धीरे-धीरे दवाइयां छुड़वा दी जाती है। एक साथ किसी भी दवाई को छोड़ने के लिए नहीं कहा जाता है। इसी कड़ी के तहत प्राकृतिक चिकित्सा के साथ योग भी जरूरी है। ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। सही मायने में शरीर को स्वस्थ रखना है तो प्राकृतिक चिकित्सा और योग से किसी भी बीमारी का इलाज संभव है। प्रतिदिन योग भी करवाया जाता है। उन्होंने आगे कहा कि कई जगह पर हमारी ओर से योग शिविर भी आयोजित किए जाते हैं। गांधीजी ने जब विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया था तब उन्होंने खेती, पशुपालन और प्राकृतिक चिकित्सा पर जोर दिया था। वर्ष 1946 में उर्लीकांचन में एक आश्रम खोला गया था। जहां पर इसकी सुविधा उपलब्ध कराई गई थी। आज अधिकत्तर लोग इस चिकित्सा की तरफ मुड़ रहे हैं।
वहीं डा. सरजू मंडाला कहते हैं कि प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से इलाज करवाने में रोगी को किसी प्रकार का साइड इफेक्ट नहंी होता है। यह इलाज पूर्णयता सुरक्षित है। शुरू से ही प्राकृतिक चिकित्सा से लगाव था। इसके लिए उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद से डिग्री हासिल की है। वहीं वैदिक विचार मंच, सिलीगुड़ी की ओर से पुतीमारी, फूलबाड़ी में वैदिक सेवाश्रम खोला जा रहा है। जहां पर प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से रोगों का इलाज किया जाएगा। फिलहाल आश्रम का निर्माण कार्य जोरों पर है।