पितृपक्ष में आत्मा की शांति के लिए 15 दिनों तक किया जाता है तर्पण
भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक 15 दिनों की विशेष अवधि में श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। इस साल यह 24 सितंबर से 8 अक्टूबर तक रहेगा।
सिलीगुड़ी,जागरण संवाददाता। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक 15 दिनों की विशेष अवधि में श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। श्राद्ध को पितृपक्ष और महालया के नाम भी जाना जाता है। इस साल यह 24 सितंबर से 8 अक्टूबर तक रहेगा।
इस संबंध में आचार्य पंडित यशोधर झा ने बताया कि साल के किसी भी पक्ष में जिस तिथि को परिजन का देहांत हुआ हो तो उनका श्राद्ध कर्म उसी तिथि को करना चाहिए। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दिन में हमारे पूर्वज जिनका देहांत हो चुका है वे सभी पृथ्वी पर सूक्ष्म रूप में आते हैं। पृथ्वी लोक पर जीवित रहने वाले अपने परिजनों के तर्पण को स्वीकार करते हैं।
उन्होंने बताया कि श्रद्ध का अर्थ क्या है। जिस कर्म के माध्यम से अपने पितरों को प्रसन्न किया जाए या जिसके परिजन देह त्याग कर चले गए है उनकी शांति और उन्नति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है उसे ही श्राद्ध कहा जाता है।
ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। यह भी जानना आवश्यक है कि कौन कहलाते हैं पितर। जिस किसी के परिजन चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित।
बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो पुरूष उनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें ही पितर कहा जाता है। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति से वे प्रसन्न होकर घर पर सुख शांति की बरसात करते हैं। कई बार ऐसा प्रश्न लोग पूछते हैं कि जिन्हें श्राद्ध की तिथि याद नहीं हो वे क्या करें?
पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण उनकी पूजा करने भी उनकी आत्मा को शांति मिलती है। किसी को जब तिथि याद नहीं हो उसका भी निवारण शास्त्रों मे है। ऐसे लोगों को आश्विन अमावस्या यानी महालया के दिन तर्पण करना चाहिए। इसे सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। जिसकी अकाल मृत्यु हुई है उसे चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। ऐसे ही पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी तिथि को करने की मान्यता है।