एचआइवी पॉजिटिव बच्चे की चोट का इलाज करने से इन्कार पर नर्सिंग होम के खिलाफ जांच के आदेश
पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़़ी में एचआइवी पीड़ित बच्चे की चोट के इलाज से इन्कार पर स्वास्थ्य विभाग ने एक नर्सिंग होम के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं। पढ़िए क्या है पूरा मामला।
सिलीगुड़ी [जागरण संवाददाता]। एचआइवी पॉजिटिव बच्चे की चोट के इलाज के लिए सिलीगुड़ी स्थित निजी नर्सिंग होम द्वारा कथित तौर पर इनकार के मामले की जांच के आदेश स्वास्थ्य विभाग ने दिए हैं।दार्जिलिंग जिला के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओएच) डॉ. प्रलय आचार्य ने कहा कि जांच की रिपोर्ट मिलने के बाद आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।
उन्होंने बताया कि बच्चे का इलाज उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में चल रहा है। उल्लेखनीय है कि जलपाईगुड़ी जिले के एक गांव का 10 वर्षीय बच्चा गत नौ नवंबर को अपने घर के पास खेल रहा था, तभी बाइक की टक्कर से घायल हो गया। इस घटना में उसका दाहिना पैर टूट गया। उसको जलपाईगुड़ी अस्पताल ले जाया गया था, जहां से परिजन उसे सिलीगुड़ी के निजी नर्सिंगहोम में ले आए। परिजन ने आरोप लगया था कि नर्सिंग होम के डॉक्टरों ने ऑपरेशन थिएटर (ओटी) में बच्चे को ले जाने के बाद इलाज करने से इन्कार कर दिया, क्योंकि वह एचआइवी पॉजिटिव है। बाद में, उसे उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (एनबीएमसीएच) में भर्ती कराया गया।
एनबीएमसीएच अधीक्षक डॉ. कौशिक समद्दार ने कहा कि लड़के का एक पैर टूटा है। यहां इलाज चल रहा है, डॉक्टरों ने प्लास्टर किया है। इलाज के लिए सभी आवश्यक उपाय किए गए हैं। यदि आवश्यक होगा तो सर्जरी भी होगी।
इस बीच बहु अनुशासनात्मक विशेषज्ञ समूह (एमडीईजी) और एनबीएमसीएच रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष डॉ. रुद्रनाथ भट्टाचार्य ने भी गत दिवस मंगलवार को एनबीएमसीएच में बच्चे से मुलाकात की। इस मौके पर उन्होंने कहा कि यह एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। एमडीईजी के सदस्य के रूप में सीएमओएच से जांच के लिए तत्काल आदेश जारी करने के लिए अनुरोध किया हूं। उन्होंने कहा कि निजी अस्पताल प्रबंधन को उनकी सामाजिक जिम्मेदारियों से बचना नहीं चाहिए।
उन्होंने बच्चे की मां के इलाज के बारे में भी डॉक्टरों पूछताछ की, जो खुद ही एचआइवी पीड़ित है तथा समझा जा रहा है कि बच्चा भी मां से पीड़ित हुआ होगा।
दूसरी ओर नर्सिंग होम के अधिकारियों ने इन आरोपों का खंडन किया है। उनका कहना था कि बच्चे के घावों की ड्रेसिंग के लिए नार्मल ओटी में ले जाया गया था। परिस्थितियों की जांच करने के बाद डॉक्टरों ने उन्हें सूचित किया कि पैर के इलाज के लिए कम से कम तीन बार आना होगा। चूंकि प्रक्रिया महंगी है, इसलिए उन्होंने बच्चे को यहां से निकाल लिया।