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स्वाद और सुगंध खो रहा है दार्जिलिंग का संतरा, किसान मायूस

चाय के अलावा संतरे की खेती के लिए भी दार्जीलिंग विख्यात है, लेकिन इस समय संतरे की खेती से किसान मुंह मोड़ रहे हैं। अब यह लाभकारी न होने से दूसरी खेती की ओर झुकाव बढ़ रहा है।

By Rajesh PatelEdited By: Published: Sat, 05 Jan 2019 11:34 AM (IST)Updated: Sat, 05 Jan 2019 11:34 AM (IST)
स्वाद और सुगंध खो रहा है दार्जिलिंग का संतरा, किसान मायूस
स्वाद और सुगंध खो रहा है दार्जिलिंग का संतरा, किसान मायूस
सिलीगुड़ी [मनोज कुमार ठाकुर]। कभी पूरे विश्व में विख्यात दार्जिलिंग में संतरे की खेती इस समय संकट के दौर से गुजर रही है। कुछ वर्षों से इसकी महत्ता लगातार कम होती जा रही है। इसका स्वाद तो फीका हो ही रहा है, खुशबू भी धीरे-धीरे गायब हो रही है। उत्पादन में कमी और रेट कम मिलने से किसान काफी मायूस हैं और धीरे-धीरे इसकी खेती बंद कर रहे हैं।  
जानकारों का कहना है कि वायरस, ग्लोबल वार्मिंग एवं किसानों को समय पर नहीं मिलने वाली सुविधा इसका कारण है। वर्तमान में इसका उत्पादन पहले की अपेक्षा कम है। यही कारण है कि किसानों का इससे मोहभंग होता जा रहा है। कहते हैं कि स्वाद व सुंगध के मामले में दार्जिलिंग का संतरा नागपुर व भूटान की तुलना में काफी आगे है। बाजार में दार्जिलिंग के संतरे की मांग अधिक है। टी, टिम्बर एवं टूरिज्म, इस थ्री टी के साथ ही दार्जिलिंग शहर अपने संतरे के लिए पूरे विश्व में विख्यात है। यहां तक दार्जिलिंग के संतरे विदेशों में भी आयात किए जाते हैं।
इस साल संतरे का उत्पादन अच्छा नहीं हुआ है। इसलिए इसके किसान लाभ तो दूर की बात, अपनी खेती के खर्चें ठीक से नहीं निकाल पा रहे हैं। व्यापारी धीराज छेत्री ने बताया कि कर्सियांग, सिटोंग, रोलक अम्बुटिया में इस साल संतरा का उत्पादन काफी कम हुआ है। एक तो संतरा का उत्पादन कम हुआ है और दूसरी तरफ स्वाद भी काफी फीका है। इसलिए हमलोगों को बहुत कम दामों में संतरा बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा रहा है। जो बागान एक लाख रुपये में लीज पर लिया गया है, वहां से 80-90 हजार से अधिक रुपये के संतरे नहीं निकल रहे है।
कर्सियांग ब्लाक के दिलीप गुरूंग, रुपेंद्र राई, बीबी राई सहित अन्य किसानों ने बताया कि फल का उत्पादन कम होने से बहुत से किसानों ने इसकी खेती छोड़ दी है। अब इलाइची की ओर झुकाव हुआ है। इस बारे में कर्सियांग महकमा के सहकारी अधिकारी आरपी सान्याल ने बताया कि वैज्ञानिक पद्धति से संतरा का उत्पादन करने से इस प्रकार की समस्या से बचा जा सकता है। इसके लिए किसानों को जागरूक होने की जरूरत है। हमलोग इसके लिए प्रयास कर रहे है।
हिल्स में 104 दिनों के बंद से संतरा उत्पादन करने वालों किसानों को हुआ था काफी नुकसान
हिल्स में गोरखालैंड आंदोलन को लेकर पहाड़ क्षेत्र में कई बार बंद हो चुकी है, लेकिन 2017 में 104 दिनों के बंद से संतरा उत्पादन करने वाले किसानों को काफी नुकसान हुआ था। उस बंद ने प्रशासन को वायरस से बचाने के लिए प्रभावित बगीचों में एक योजना का लाभ देने से रोका गया था।
यहां तक बागान मालिकों ने आरोप लगाया था कि संतरा उद्योग को वायरस के हमले, वैज्ञानिक प्रबंधन और प्रशासनिक उदासीनता की कमी से बर्बादी के कगार पर ले जाया गया। दार्जिलिंग के संतरे अपने पतले छिलके और मिठास के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन मिरिक, कर्सियांग और दार्जिलिंग के किसान वर्तमान में काफी कठिन समस्या से गुजर रहे हैं।
कर्सियांग के एक किसान मधुकर मल्ल ने बताया कि मुझे अपने बगीचे के 500 पेड़ों में से आधे से अधिक पौधों को नष्ट करना था, क्योंकि वे या तो मर गए थे या फलों को पैदा नहीं कर सकते थे। इन सब के बीच ग्लोबल वार्मिंग भी सबसे बड़ा कारण है।  

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