हिरन की सबसे पुरानी प्रजाति का बच्चा चाय बागान में मिला
जलपाईगुड़ी जिले के नागराकाटा के एक चाय बागान में हिरन की सबसे पुरानी प्रजाति बार्किंग डीयर का एक बच्चा मिला है।
By Rajesh PatelEdited By: Published: Thu, 31 Jan 2019 09:07 PM (IST)Updated: Thu, 31 Jan 2019 09:07 PM (IST)
नागराकाटा [संवादसूत्र]। जलपाईगुड़ी जिला के नागराकाटा के पास स्थित बामनडांगा चाय बागान के टुंडू डिवीजन में सबसे पुरानी प्रजाति के हिरण बार्किंग डीयर का बच्चा उछलकूद करते मिला। चाय श्रमिकों ने पुचकार कर उसे पकड़कर वन विभाग के हवाले कर दिया।
सूचना मिलने पर वन विभाग खुनिया रेंज के वनकर्मी घटनास्थल पर पहुंचे और बच्चे को अपने साथ ले गए। बाद में उसकी जांच के बाद उसे लाटागुड़ी के प्रकृति पर्यवेक्षण में छोड़ दिया गया। रेंजर राजकुमार नायक ने कहा कि यह बच्चा बार्किंग डीयर प्रजाति का है। वह स्वस्थ है। अनुमान लगाया जा रहा है कि चाय बागान से सटे डायना जंगल से वह चला आया होगा। उन्होंने चाय श्रमिकों के इस नेक काम की सराहना की।
बता दें कि इसे काकड़ या कांकड़ भी कहा जाता है। इसकी कद-काठी काफी छोटी होती है। यह हिरनों में शायद सबसे पुरानाहै, जो इस धरती करीब दो लाख वर्ष पहले देखा गया। इसके जीवाश्म फ्रांस, जर्मनी और पोलैंड में भी पाए गए हैं।
आज के समय इसकी जीवित प्रजाति दक्षिणी एशिया की मूल निवासी है। भारत से लेकर श्रीलंका, चीन दक्षिण पूर्व एशिया (इंडो चाइना और मलय प्रायद्वीप के उत्तरी इलाके में यह प्रजाति मिलती है। यह कम आबादी में पूर्वी हिमालय और म्यांमार में भी पाया जाता है। उष्णकटिबंधीय इलाके में रहने के कारण इसका कोई समागम मौसम नहीं होता। वर्ष में कभी भी समागम कर लेते हैं।
सूचना मिलने पर वन विभाग खुनिया रेंज के वनकर्मी घटनास्थल पर पहुंचे और बच्चे को अपने साथ ले गए। बाद में उसकी जांच के बाद उसे लाटागुड़ी के प्रकृति पर्यवेक्षण में छोड़ दिया गया। रेंजर राजकुमार नायक ने कहा कि यह बच्चा बार्किंग डीयर प्रजाति का है। वह स्वस्थ है। अनुमान लगाया जा रहा है कि चाय बागान से सटे डायना जंगल से वह चला आया होगा। उन्होंने चाय श्रमिकों के इस नेक काम की सराहना की।
बता दें कि इसे काकड़ या कांकड़ भी कहा जाता है। इसकी कद-काठी काफी छोटी होती है। यह हिरनों में शायद सबसे पुरानाहै, जो इस धरती करीब दो लाख वर्ष पहले देखा गया। इसके जीवाश्म फ्रांस, जर्मनी और पोलैंड में भी पाए गए हैं।
आज के समय इसकी जीवित प्रजाति दक्षिणी एशिया की मूल निवासी है। भारत से लेकर श्रीलंका, चीन दक्षिण पूर्व एशिया (इंडो चाइना और मलय प्रायद्वीप के उत्तरी इलाके में यह प्रजाति मिलती है। यह कम आबादी में पूर्वी हिमालय और म्यांमार में भी पाया जाता है। उष्णकटिबंधीय इलाके में रहने के कारण इसका कोई समागम मौसम नहीं होता। वर्ष में कभी भी समागम कर लेते हैं।
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