Move to Jagran APP

चार महीने के अंडरग्राउंड हैं शहर के अधिकांश डॉक्टर

-कई नर्सिग होम और निजी चेंबरों पर लटके हैं ताले - हर गुहार बेअसर आखिर जरूरतमंद जाएं तो क

By JagranEdited By: Published: Sat, 25 Jul 2020 09:06 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jul 2020 09:06 PM (IST)
चार महीने के अंडरग्राउंड हैं शहर के अधिकांश डॉक्टर
चार महीने के अंडरग्राउंड हैं शहर के अधिकांश डॉक्टर

-कई नर्सिग होम और निजी चेंबरों पर लटके हैं ताले

loksabha election banner

- हर गुहार बेअसर, आखिर जरूरतमंद जाएं तो कहा

-मंत्री सहित तमाम लोगों की अपील बेअसर इरफ़ान-ए-आज़म, सिलीगुड़ी : कोई दो-चार दिन या दो-चार हफ्ते नहीं बल्कि चार महीने हो गए हैं। उनके दर्शन नहीं हो रहे। वे न जाने कहा चले गए हैं। वैसे, हैं तो कहीं आसपास ही, पर नजर ही नहीं आते। कोई लाख तलाश ले, पर, नतीजा, भूसे के ढेर में सुई तलाशने सरीखा। यह सिलीगुड़ी शहर के ज्यादातर प्राइवेट डॉक्टरों का हाल होकर रह गया है।

कहते हैं कि धरती पर कोई भगवान का रूप है तो वह डॉक्टर ही है लेकिन यहा कुछ अपवादों को छोड़ दें तो एक न दिख सकने वाले कोरोना ने लोगों को डॉक्टरों का अलग ही रूप दिखाया है। कल तक जो डॉक्टर सब कुछ छोड़-छाड़ कर मरीजों की जान बचाने को जी-जान लगा कर दौड़ पड़ते थे आज वे ही मरीज नाम से ही कन्नी काटने लगे हैं। यह सही है कि, कोरोना बड़ा खतरनाक है। उससे बड़ा खतरा है। जानलेवा खतरा। वह भी सबको। डॉक्टर भी उससे महफूज नहीं। मगर, इसका यह मतलब भी नहीं कि डॉक्टर मैदान ही छोड़ दें। हर मरीज को कोरोना मरीज ही समझने लगें। फिर, आम लोगों और डॉक्टरों में फर्क ही क्या रह जाएगा?

डॉक्टरों के इस अजीब-व-गरीब रवैये पर राज्य के पर्यटन मंत्री गौतम देव भी सवाल उठा चुके हैं। वह भी कह चुके हैं कि, युद्ध के समय क्या सैनिक मोर्चा छोड़ देता है?! नहीं, कदापि नहीं। तो फिर आज कोरोना से युद्ध की परिस्थिति में डॉक्टर जैसे सैनिक क्यों मोर्चे से गायब हैं!।उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। वे डॉक्टर हैं, जानकार हैं। सारे सुरक्षा उपायों को अपनाते हुए वे आम मरीजों की चिकित्सा कर ही सकते हैं। उन्हें इस विकट परिस्थिति में आगे आना चाहिए और जन-जन की भलाई करनी चाहिए। मगर, डॉक्टरों के कान पर जूं तक नहीं रेंगा, और वे टस्स से मस्स न हुए।

इस बारे में खुद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की सिलीगुड़ी इकाई के सचिव डॉ. शेखर चक्रवर्ती का कहना है कि हम लोग अनुरोध कर-कर के थक चुके हैं। हमारे आईएमए की ओर से, दाíजलिंग के डीएम की ओर से, सिलीगुड़ी के विधायक अशोक भट्टाचार्य की ओर से, यहा तक कि, मंत्री गौतम देव की ओर से भी इस बाबत बार-बार अनुरोध किया गया है। मगर, डॉक्टर अपनी क्लीनिक खोलने को तैयार ही नहीं हैं। प्राइवेट प्रैक्टिस करने को राजी ही नहीं हैं। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? कानूनन हम सिर्फ अनुरोध ही कर सकते हैं। कोई कार्रवाई नहीं कर सकते। वर्तमान विकट परिस्थिति को डॉक्टरों को खुद समझना चाहिए और आगे आना चाहिए व समाज की भलाई करनी चाहिए। इन सब के बावजूद, आलम यह है कि, सारी दुहाई एक तरफ है और डॉक्टर एक तरफ हैं। कैसे परेशान हो रहे हैं मरीज

शहर के भक्ति नगर इलाके के एक व्यक्ति ने बताया कि उनकी पत्नी गर्भवती थीं। उनके प्रसव की तिथि भी निकट थी। उन्हें प्रसव पीड़ा हुई तब वे लोग आनन-फानन में उन्हें लेकर कई नìसग होम गए लेकिन हर नìसग होम ने दूसरे ही नìसग होम का रास्ता दिखाया। अंतत: थक हार कर वे लोग वापस अपने घर आ गए। ऐन मजबूरी के आलम में इलाके के ही एक कंपाउंडर की निगरानी में चिकित्सा व्यवस्था की गई और अपने घर पर ही उन्हें नॉर्मल डिलीवरी हुई। वह तो शुक्र है कि जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ ही रहे। मगर, होने को कुछ भी हो सकता था। ऐसे कई परिवार होंगे जिनके साथ न जाने कैसी अनहोनी हुई होगी। इन सब के बावजूद डॉक्टरों का दिल पिघलता क्यों नहीं है? वे प्रैक्टिस क्यों बंद रखे हुए हैं? उनकी क्लिनिक के दरवाजों पर ताला क्यों है? नìसग होम वालों ने भी हाथ क्यों खड़े कर रखे हैं? डॉक्टर आगे क्यों नहीं आते? वे हर मरीज को कोरोना मरीज ही क्यों समझते हैं? वे तो बड़े जानकार हैं, खुद भी बच सकते हैं, औरों को भी बचा सकते हैं, पर, वे ऐसा क्यों नहीं करते? कोरोना से डर गए हैं बड़े उम्र के डॉक्टर

इस बाबत अपना नाम न छापने की शर्त पर एक डॉक्टर ने कहा कि, देखिए हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाने की स्थिति में हैं। क्योंकि, हम भी इंसान ही हैं। हड्डी और मास के बने हुए। कोरोना का खतरा हम पर भी उतना ही है जितना कि औरों पर। ऊपर से हमारी उम्र भी 60 से ऊपर हो चुकी है। इस उम्र में इम्यूनिटी स्वत: कम हो जाती है। ऐसे में, हम पर भी खतरा कुछ कम नहीं है। इसी वजह से हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। वैसे, इस दिशा में नौजवान डॉक्टरों को आगे आना चाहिए। कुछ डॉक्टर हैं जो मैदान में डटे हैं

खैर, सिक्के का एक पहलू यह भी है कि आज कोरोना वायरस संक्रमण (कोविड-19) के इस जानलेवा संकट काल में कुछ डॉक्टर ऐसे भी हैं जिन्हें अपनी जान की परवाह ही नहीं। वे अपने घर-परिवार सब से अलग रह कर दिन-रात लोगों की जान बचाने में जुटे हुए हैं। मगर, ऐसे डॉक्टरों की गिनती कम है। ज्यादातर डॉक्टर वही हैं जो अजीब-व-गरीब रवैया अपनाए हुए हैं। भगवान, है कहा रे तू.. भगवान, है कहा रे तू..!

इस माजरे पर, बरबस ही लोगों की जुबान पर यही आ जाता है। तुझे ढूंढे थके मेरे नैन, तेरे नाम कई, तेरे चेहरे कई, तुझे पाने की राहें कई, हर राह चला पर तू न मिला, तू क्या चाहे मैं समझा नहीं.. भगवान, है कहा रे तू! भगवान, है कहा रे तू!


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.