होशियार, कहीं 'निपाह' न बना ले शिकार!
केरल के कोझीकोड़ जिले के चंगारोठ में फैले घातक व दुर्लभ 'निपाह' वायरस के इंफेक्शन से अब तक 10 लोगों की मौत को लेकर देश भर में खौफ व दहशत का माहौल है।
सिलीगुड़ी, इरफान-ए-आजम। केरल के कोझीकोड़ जिले के चंगारोठ में फैले घातक व दुर्लभ 'निपाह' वायरस के इंफेक्शन से अब तक 10 लोगों की मौत को लेकर देश भर में खौफ व दहशत का माहौल है। सिलीगुड़ी में इसे लेकर चिंता कुछ ज्यादा ही है। क्योंकि, देश में सर्वप्रथम सिलीगुड़ी में ही जानलेवा 'निपाह' वायरस का प्रकोप फैला था।
यह वर्ष 2001 की बात है। तब, सिलीगुड़ी में आधिकारिक रूप में 66 लोग 'निपाह' वायरस से संक्रमित हुए थे। उनमें 45 लोगों की मौत हुई थी। उस समय अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो गया था। अनेक लोग शहर छोड़ कर बाहर चले गए थे। तब, यहां आम लोगों से लेकर एम्बुलेंस चालक, अस्पताल में स्ट्रेचर ब्वॉय से लेकर नर्स व डॉक्टर तक 'निपाह' वायरस की चपेट में मारे गए। उसके बाद वर्ष 2007 में पश्चिम बंगाल के नदिया में भी 'निपाह' वायरस का प्रकोप हुआ। तब, पांच व्यक्ति पीड़ित हुए और पांचों ही मारे गए।
'निपाह' वायरस का संक्रमण लाइलाज है। इसलिए इससे होशियार रहना बहुत-बहुत जरूरी है। क्या है 'निपाह'? 'निपाह' एक बहुत ही घातक वायरस है। यह पशुओं से पशुओं में, पशुओं से इंसानों में एवं इंसानों से इंसानों में फैलता है। विश्व में सर्वप्रथम, वर्ष 1998 में मलेशिया में सुअर पालक इंसानों में संक्रमण से इस वायरस की पहचान हुई। उसके बाद भारत में सर्वप्रथम वर्ष 2001 में सिलीगुड़ी में इसका संक्रमण फैला।
फिर, वर्ष 2007 में पश्चिम बंगाल के ही नदिया में 'निपाह' का संक्रमण फैला। अब, केरल के कोझीकोड़ जिले के चंगारोठ में इसका संक्रमण फैला है। इसमें अब तक 10 लोगों की मौत हो चुकी है। केरल समेत देश भर में इसे लेकर चिंता का माहौल है।
कैसे फैलता है 'निपाह'?
यह पशुओं से पशुओं में, पशुओं से इंसानों में एवं इंसानों से इंसानों में फैलता है। संक्रमित पशुओं विशेष कर चमगादड़ों, सुअरों और 'निपाह' वायरस से संक्रमित लोगों के साथ सीधे तौर पर संपर्क में आने पर इसका एक से दूसरे में फैलाव होता है।
क्या हैं 'निपाह' के लक्षण?
बुखार, सिर दर्द, चक्कर, दिमाग में जलन, सांस लेने में तकलीफ, धुंधला दिखना आदि इसके लक्षण हैं। इसका संक्रमण व्यक्ति को 48 घंटे के भीतर कोमा में ले जा सकता है। वहीं, 21 से 22 दिनों में व्यक्ति की जान ले ले सकता है।
क्या 'निपाह' का इलाज है?
नहीं, निपाह का संक्रमण अभी तक लाइलाज है। वैसे, संक्रमित लोगों में कुछेक लोग अपनी उत्तम रोग प्रतिरोधक क्षमता के चलते इसकी चपेट से उबर भी जाते हैं। सतर्कता ही है बचाव का उपाय? नॉर्थ बंगाल मेडिकल कॉलेज के पैथोलोजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कल्याण खान कहते हैं कि 'निपाह' वायरस के संक्रमण का अभी तक इलाज विकसित नहीं हो पाया है। यह बहुत ही घातक होता है। इसकी चपेट में आने वाले ज्यादातर लोग मारे जाते हैं। वैसे कुछ लोग अपनी सशक्त रोग प्रतिरोधक क्षमता के चलते इसके संक्रमण से उबर भी जाते हैं।
मगर, 'निपाह' वायरस के संक्रमण से बचने के लिए सतर्कता ही सबसे बेहतर उपाय है। संक्रमित पशुओं व इंसानों के सीधे संपर्क में न आएं। चमगादड़ों व सुअरों से सावधान रहें। कहीं भी गिरे-पड़े हुए फल व सब्जियों का सेवन न करें। जानवरों, पक्षियों के खाए हुए निशान वाले यानी खुदे हुए फल सब्जी का सेवन न करें। जहां चमगादड़ अधिक हो वहां आम, लीची व खजूर खाने से बचें। आम, लीची व खजूर खाने में एहतियात बरतें। आम, लीची व खजूर के पेड़ पर चमगादड़ फलों को संक्रमित कर सकते हैं। उस संक्रमित फल के सेवन से व्यक्ति संक्रमित हो सकता है। फलों व सब्जियों को खूब अच्छी तरह से धो कर ही खाएं। ताड़ या खजूर का रस यानी ताड़ी कदापि न पिएं।
ताड़ व खजूर के पेड़ पर चमगादड़ उसके रस को संक्रमित कर सकते हैं। उस संक्रमित रस के सेवन से व्यक्ति भी संक्रमित हो सकता है। सुअर पालन व सेवन में विशेष एहतियात बरतें। खान-पान में जितनी ज्यादा हो उतनी सफाई बरतें स्वयं, घर व आसपास सफाई का पूरा-पूरा ख्याल रखें।
दहशत न पालें पर सजग रहें
केरल में 'निपाह' वायरस के संक्रमण के फैलने की खबर है। पर, यह जरूरी नहीं कि सिलीगुड़ी या उत्तर बंगाल में भी 'निपाह' वायरस का प्रकोप फैले ही। मगर, नहीं फैले इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। वैसे, शुक्र है कि सिलीगुड़ी-आसपास या उत्तर बंगाल से 'अब तक' इसके संक्रमण का एक भी मामला सामने नहीं आया है। खास यह कि, सिलीगुड़ी में 'निपाह' वायरस के संक्रमण का इतिहास है। इसलिए यहां विशेष रूप से स्वास्थ्य कर्मियों एवं आम लोगों की सतर्कता आवश्यक है। डॉ. अर्णव सरकार अध्यक्ष-माइक्रो बायोलोजी विभाग नॉर्थ बंगाल मेडिकल कॉलेज