घमंड इंसान को ले डूबता है
-दार्जिलिंग पब्लिक स्कूल की प्राचार्या श्रेया मित्रा विश्वास ने व्यक्त किए विचार -दैनिक जागरण ने घमंड
-दार्जिलिंग पब्लिक स्कूल की प्राचार्या श्रेया मित्रा विश्वास ने व्यक्त किए विचार
-दैनिक जागरण ने 'घमंड का चक्रव्यूह' विषय पर आयोजित की ऑनलाईन 'संस्कारशाला' जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : हम सब में कहीं न कहीं घमंड विद्यमान है। घमंड को अहंकार कहते हैं। यह अहंकार शब्द संस्कृत के शब्द अहं से आया है। इसका अर्थ 'मैं' होता है। यह 'मैं' और केवल 'मैं' की भावना ही अहंकार वह घमंड कहलाती है। जब व्यक्ति के अक्ल पर अहंकार का पर्दा पड़ जाता है तब उससे केवल 'मैं' ही 'मैं' दिखता है और कुछ नहीं दिखता है। वह औरों को अपने आगे तुच्छ व नगण्य समझने लगता है। वहीं से सारी समस्याओं की उत्पत्ति होती है और वे समस्याएं धीरे-धीरे चक्रव्यू का रूप ले लेती है। घमंड का चक्रव्यूह बहुत ही बहुत घातक और विनाशक होता है।
दार्जिलिंग पब्लिक स्कूल की प्राचार्या श्रेया मित्रा विश्वास ने ये विचार व्यक्त किए। वह शुक्रवार को दैनिक जागरण (सिलीगुड़ी) की ओर से अपने राष्ट्र व्यापी अभियान के तहत आयोजित ऑनलाईन 'संस्कारशाला' को बतौर अतिथि वक्ता संबोधित कर रही थीं। इसका विषय 'घमंड का चक्रव्यूह' था। इस पर आगे उन्होंने कहा कि हम अपने घर, दफ्तर, अपने आसपास व हर कहीं भी घमंड से रू-ब-रू हो सकते हैं। घमंड का चक्रव्यू हमें नकारात्मकता की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि अहंकार को तीन भागों में बाटा गया है। इदं, अहम्, व पराहम्। घमंड की पराकाष्ठा पराहम है। यह व्यक्ति के व्यक्तित्व का ग्रास कर लेता है। हमारे पुराणों में ऐसे अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं। रावण बड़ा ज्ञानी था लेकिन अहंकारी था। उसे उसका अहंकार ले डूबा। भीम को भी अपने बलशाली होने का बड़ा घमंड था। हनुमान जी ने एक बूढ़े ब्राह्मण का वेश धर कर उनके घमंड को तोड़ा। हमारे बड़े-बुजुर्ग, दादा-दादी, नाना-नानी, हमें बचपन में अक्सर तरह-तरह की कहानिया सुनाया करते थे। उसके द्वारा वे सीख देते थे कि घमंड न किया करो, सबके साथ मधुर भाव रखो, स्नेह भाव रखो। कुल मिला कर उनका संदेश यही होता था कि हम सब घमंड से दूर रहें। पंचतंत्र की कहानियों में भी यही संदेश निहित है। घमंड हमें हमारे मूल भाव और मूल मानवीय विचारों से दूर कर देता है। यही हमारे डूबने का कारण हो जाता। उन्होंने एक नाविक व एक शिक्षक की कहानी के हवाले से भी बताया कि शिक्षक को अपनी शिक्षा पर बड़ा घमंड था और उस नाते वह नाविक को हर बात पर तुच्छ करार दे रहा था। मगर, अचानक तूफान व बारिश से नाव डगमग-डगमग होने लगी। तब, नाविक तो नाव से कूद कर व तैर कर नदी पार कर गया। पर, शिक्षक को तैरना आता ही नहीं था। बड़ी मुश्किल से उसकी नैया पार लगी। इसीलिए कभी भी किसी को भी तुच्छ नहीं समझना चाहिए। कोई किसी एक मामले में विशेषज्ञ हो सकता है तो कोई दूसरे मामले में विशेषज्ञ हो सकता है। यह जरूरी नहीं है कि हम जो जानते हैं वही और भी जानें या और जो जानते हैं वही हम भी जानें। सब, अपने आप में बेमिसाल है। हर किसी की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। कोई इसलिए भारी नहीं है कि वह शिक्षित है और कोई इसलिए हल्का नहीं है कि वह अशिक्षित है। ऐसा भी हो सकता है कि एक अशिक्षित व्यक्ति जीवन की उन कलाओं को जानता है जो एक शिक्षित नहीं भी जान सकता है। इसलिए किसी को भी कमतर नहीं समझना चाहिए। हर किसी का आदर व सम्मान करना चाहिए। इसी में इंसान व इंसानियत की भलाई है। इस दिन ऑनलाईन संस्कारशाला का दैनिक जागरण (सिलीगुड़ी) के फेसबुक पेज से सीधा प्रसारण किया गया जिसे हजारों लोगों ने देखा व सुना। इस अवसर पर अतिथि वक्ता ने लोगों के विषय संबंधी कई जिज्ञासाओं का समाधान भी किया।