काजल की कोठरी में बेदाग होने की अनोखी लड़ाई !
-एक 84 साल के बुजुर्ग फौजी पर 14 वर्ष की किशोरी को गर्भवती कर देने का गंभीर आरोप -व्यवस्था प
-एक 84 साल के बुजुर्ग फौजी पर 14 वर्ष की किशोरी को गर्भवती कर देने का गंभीर आरोप
-व्यवस्था पर उठे सवाल, सर्वोच्च न्यायालय से मिली राहत, जमानत पर जेल से रिहा
-पोक्सो एक्ट का दुरुपयोग, पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में, अभी पूरे इंसाफ की लड़ाई जारी
-आखिर पुरुष क्यों हो जाते हैं इतना आसान निशाना, सामाजिक मंथन जरूरी जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : यह मामला अजीब-व-गरीब है। वह एक रिटायर्ड फौजी हैं। उम्र 84 साल। जिंदगी के इस पड़ाव पर उन्हें वैसे संगीन हालात का सामना करना पड़ा जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। इस नाजुक उम्र में भी उन्हें संगीन इल्जाम रूपी काजल की काली कोठरी से बेदाग निकलने के लिए बड़ी जद्दोजेहद करनी पड़ी। उन पर एक 14 साल की किशोरी को गर्भवती कर देने का संगीन आरोप लगा। उस किशोरी को बाद में एक संतान का भी जन्म हुआ। उससे पहले ही सिलीगुड़ी के माटीगाड़ा थाने में मुकदमा दर्ज हुआ और आरोपित बुजुर्ग फौजी को कैद कर जेल भेज दिया गया। यह बीते मई महीने की बात है। मगर, कहते हैं न कि सच्चाई प्रताड़ित हो सकती है, पराजित नहीं। वही हुआ। मगर फिर भी, उन्हें डीएनए टेस्ट से गुजरना पड़ा। उसके लिए भी उनके पुत्र को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा। खैर, आखिरकार सुप्रीम कोर्ट से उन्हें गत 24 अगस्त को इंसाफ मिल गया। अब वह जमानत पर जेल से रिहा हैं। मगर, इस दौरान उन्होंने और उनके परिवार ने जो झेला, समाज में उनके मान और सम्मान की जो हानि हुई, अब उसकी भरपाई का सवाल है।
जयंत चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य इस मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि डीएनए रिपोर्ट यह नहीं दिखाती कि आरोपित नवजात का पिता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि आरोपित के अधिवक्ता का दावा है कि यह मामला मकान मालिक और किरायेदार के विवाद का मामला था जिसके मद्देनजर एक झूठा मुकदमा दर्ज किया गया और इसीलिए आरोपित को पर्याप्त क्षतिपूíत दी जानी चाहिए। यदि ऐसा है तो आरोपित को कानून का सहारा लेकर आवश्यक कदम उठाना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि इस मामले में कपिल सिब्बल, अंकुर चावला, राजदीप मजूमदार व मयूख मुखर्जी सरीखे दिग्गज वकीलों ने आरोपित की पैरवी की और उन्हें इंसाफ दिलाया।
इस बारे में पीड़ित बुजुर्ग फौजी के पुत्र डॉ विश्वजीत चटर्जी, जो कि खुद भी कानून के विशेषज्ञ हैं, कहते हैं कि, अभी पूरे इंसाफ के लिए यह लड़ाई जारी रहेगी। हम आगे भी लड़ेंगे। मगर, उन्होंने व्यवस्था पर भी सवाल उठाया कि आखिर पुरुष इतना आसान निशाना क्यों हो जाते हैं? कानून के रखवाले पूरी जाच पड़ताल के बाद कोई कार्रवाई क्यों नहीं करते हैं? केवल आरोप पर ही किसी को दोषी क्यों मान लिया जाता है? झूठे मुकदमों से निजात कब मिलेगी? समाज में किसी के मान सम्मान को हानि पहुंचाना कब बंद होगा? इस पर समाज को मंथन करना चाहिए। कई सवालों का देना होगा जवाब
इस मुकदमे में यह सवाल भी उठे कि आखिर इतने संगीन आरोप को गंभीरता से क्यों नहीं लिया गया? इस पर विश्वास करने से पहले पूरी पड़ताल क्यों नहीं की गई? यह क्यों नहीं पता लगाया गया कि एक 84 वर्षीय वृद्ध भी क्या इतना सक्षम हो सकता है कि वह एक किशोरी को गर्भवती कर दे? फिर, इस मामले में प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस (पोक्सो) एक्ट के दुरुपयोग का भी पहलू उठा है। कानून की रखवाली पुलिस की भूमिका भी सवालों के घेरे में है? यह भी सवाल उठा है कि इस मुकदमे को सिर्फ और सिर्फ यौन अपराध के पहलुओं के तहत ही क्यों देखा गया? किरायेदार व मकान मालिक के विवाद के पहलू पर भी क्यों नहीं गौर किया गया? इसके साथ ही यह भी सवाल रह ही जाता है कि आखिर एक नन्ही किशोरी किस तरह गर्भवती हो गई? इतनी कम उम्र में उसे क्यों संतान को जन्म देना पड़ा? यह सिक्के का दूसरा पहलू है। सवाल कई हैं। मगर, सबसे अहम यह कि ऐसे संगीन मामलों पर सामाजिक मंथन कब होगा?