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विरोध प्रदर्शन,श्रम कानून में बदलाव मंजूर नहीं

-असंगठित क्षेत्र को कामगारों को होगी परेशानी - सीटू नेता समन पाठक सहित कई गिरफ्तार -

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 May 2020 07:13 PM (IST)Updated: Fri, 22 May 2020 07:13 PM (IST)
विरोध प्रदर्शन,श्रम कानून में बदलाव मंजूर नहीं
विरोध प्रदर्शन,श्रम कानून में बदलाव मंजूर नहीं

-असंगठित क्षेत्र को कामगारों को होगी परेशानी

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- सीटू नेता समन पाठक सहित कई गिरफ्तार

-थाने लेकर आई पुलिस और बाद में छोड़ा

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी: केंद्र सरकार के नए श्रम कानून के खिलाफ शुक्रवार को वामपंथी और कांग्रेस के ट्रेड यूनियन नेताओं ने विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान पुलिस ने ट्रेड यूनियन नेताओं समन पाठक, जय लोध,श्याम सुंदर यादव, राणा दास समेत 10 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस इनलोगों पकड़कर प्रधाननगर थाना ले गयी। हांलाकि बाद में सभी को थाने से ही रिहा कर दिया गया। कांग्रेस ट्रेड यूनियन इंटक के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष आलोक चक्रवर्ती ने कहा कि मौजूदा सरकारों ने श्रम कानूनों में परिवर्तन शुरू कर दिया है। जहा मालिकों को मनमाने ढंग से वेतन तय करने, ओवरटाइम काम लेने, छुट्टी देने, मुआवजा निर्धारित करने आदि की खुली छूट होगी। असंगठित क्षेत्र में बेहद ही कम वेतन पर मजदूर-वर्ग के बहुसंख्यक पुरुष और महिलाएं कमरतोड़ मेहनत करती हैं। इस क्षेत्र में राज्य की सार्वजनिक शक्ति की गैर-मौजूदगी मालिकों की निरंकुश सत्ता का कारण बनी हुई है। इसके खिलाफ श्रमिक भवन से प्रतिनिधियों का दल विरोध करते हुए एसडीओ के माध्यम से प्रधानमंत्री को मागपत्र सौंपा गया है। उन्होंने कहा कि श्रम कानूनों को व्यापक तौर पर शिथिल करने की घोषणा की। कुछ अन्य सरकारों ने भी श्रम कानूनों में कुछ बदलाव किए हैं। यह हमें सौ साल पीछे ले जाने वाला कदम है। यह संवैधानिक ढाचे पर भी आघात है। कैसे कोई राज्य, केंद्र द्वारा बनाए गए कानून को स्थगित कर सकता है? भारत जैसे देश में ये और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जहा 93 फीसदी लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। हमें यह समझना चाहिए कि भारत में मजदूरों की दुर्दशा का बड़ा कारण मौजूदा श्रम या अन्य कानूनों का ठीक से पालन न होना भी है। आज अगर अंतरराज्यीय प्रवासी कामगार कानून का ठीक से पालन हो रहा होता, तो हर सरकार के पास यह आकड़ा होता कि उनके राज्य में किस जगह से कितने प्रवासी मजदूर हैं। भाकपा माले के केंद्रीय कमेटी सदस्य व नक्सली नेता चारु मजूमदार के पुत्र अभिजीत मजूमदार ने कहा कि न्यूनतम मजदूरी की लड़ाई नई नहीं है। इस कानून को खत्म करने का मतलब, बंधुआ मजदूरी है। क्योंकि अब काम का अभाव और भुखमरी का फायदा उठाकर कोई भी न्यूनतम मजदूरी से कम में काम करा सकता है। उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के अनुसार भी, कानूनन न्यूनतम मजदूरी से कम देना बंधुआ मजदूरी है। अगर कोई मजदूर उससे कम में काम करता है तो उसको मजबूरी या बेगार माना जाएगा। उद्योग विवाद अधिनियम पर आघात ठेकेदारी को बढ़ावा देगा और पक्की नौकरी के बजाय दिहाड़ी मजदूरों को लगाने का चलन बढ़ेगा। इससे किसी को भी काम पर लगाने और निकालने में पूंजीपतियों की मर्जी चलेगी। सीटू नेता समन पाठक ने कहा कि कारखाना अधिनियम को स्थगित करने का मतलब है कार्यस्थल पर श्रमिकों को मिलने वाली मूलभूत सुविधाएं जैसे, पीने का पानी, बिजली, शौचालय, खाने की व्यवस्था आदि में कटौती होना या न होना। अब इन सुविधाओं की कोई गारंटी नहीं रहेगी। धरातल पर महिला और पुरुष को समान मजदूरी तो हम आज तक नहीं दिला पाए हैं, लेकिन समान पारिश्रमिक अधिनियम को स्थगित करना महिला श्रमिकों के शोषण को और बढ़ाएगा। जब कार्य-अनुबंध के संबंध में मालिकों की बढ़ी हुई निजी ताकत और निरंकुश सत्ता औपचारिक क्षेत्र में भी प्रतिमान के रूप में स्थापित हो जाएगी, तब राज्य की भूमिका केवल मजदूरों के प्रतिरोधों को दंड-विधानों से रोकने तक सीमित रह जाएगी। संगठित क्षेत्र से निकाले गए श्रमिक असंगठित क्षेत्र में काम ढूंढने को मजबूर होंगे। श्रम कानूनों में हालिया छेड़छाड़ मालिक और मजदूर के बीच कार्य-अनुबंध को एक निजी और वैयक्तिक मामले के तौर पर संस्थागत करने का काम करेगी। उभरती हुई यह परिघटना 20 वीं शताब्दी के श्रम कानूनों का दौर खत्म होने का द्योतक है। निजी पूंजी को प्रोत्साहन देने की यह प्रक्रिया समाज के एक बड़े हिस्से में अनिश्चितता का वातावरण बनाएगी, और पहले से ही अति-शोषित असंगठित मजदूरों की असुरक्षित स्थिति में भारी बढ़ोतरी करेगी।


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