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30 को गंगा स्नान के साथ किया जाएगा दीप दान

-हजारों दीपक से सजाया जाएगा मंदिर कार्तिक पूर्णिमा को लेकर उत्साह हिंदू संस्कृति में का

By JagranEdited By: Published: Sat, 28 Nov 2020 12:14 PM (IST)Updated: Sat, 28 Nov 2020 12:14 PM (IST)
30 को गंगा स्नान के साथ किया जाएगा दीप दान
30 को गंगा स्नान के साथ किया जाएगा दीप दान

-हजारों दीपक से सजाया जाएगा मंदिर, कार्तिक पूर्णिमा को लेकर उत्साह

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हिंदू संस्कृति में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी :

देव दीपावली का त्योहार काíतक मास के शुक्ल पक्ष की पूíणमा के दिन यानि 30 नवंबर को मनाई जाएगी। मान्यता है की जिस प्रकार मनुष्य दीपक जलाकर दीपावली का पर्व मनाते हैं। उसी प्रकार देवतागण भी दीप जलाकर दीपावली का पर्व मनाते हैं। सिलीगुड़ी और आसपास के क्षेत्रों में देव दीपावली के मौके पर मंदिरों में दीप दान किया जाएगा। दीपों से मंदिरों को जगमगाया जाएगा। देव दीपावली दिवाली के 15 दिन बाद मनाई जाती है। यह दिवाली का पर्व काíतक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है और देव दीपावली का पर्व काíतक मास की पूíणमा के दिन मनाया जाता है। आचार्य पंडित यशोधर झा के अनुसार हिंदू मान्यताओं के कई ऐसी घटनाएं है जिसके कारण कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है।

भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार : विष्णु पुराण के मुताबिक,भगवान विष्णु ने अपने दस अवतारों में पहला अवतार मत्स्य अवतार का रूप धारण किया था. मत्स्य अवतार में उन्होंने प्रलय काल के दौरान वेदों की रक्षा की थी. भगवान का यह अवतार काíतक पूíणमा के दिन होने से वैष्णव मत में इस पूíणमा का विशेष महत्त्व है।

भगवान शिव बने त्रिपुरारी : शैव मत के अनुसार काíतक पूíणमा के दिन भगवान शिव को त्रिपुरारी का नाम मिला था. ऐसी मान्यता है कि इस दिन महादेव ने रथ पर बैठकर अजेय असुर त्रिपुरासुर का वध किया था। इस राक्षस के मारे जाने से तीनों लोकों में फिर से धर्म की स्थापित हुआ। काíतक पूíणमा को त्रिपुरारी पूíणमा भी कहते हैं।

पाडवों का दु:ख हुआ समाप्त : महाभारत युद्ध में पाडवों के सगे संबंधियों की असमय ही मृत्यु हुई थी इनकी आत्मा को शाति कैसे मिले? इसे लेकर पाडव बहुत दुखी थे। पाडवों के दु:ख को देखकर कृष्ण भगवान ने पितरों की शाति का उपाय बताया। यह उपाय काíतक मास के शुक्ल पक्ष के कृष्ण अष्टमी से लेकर पूíणमा तक की विधि शामिल थी। आत्मा की शाति के लिए गढ़ मुक्तेश्वर में पिंडदान और दीपदान किया था।

बैकुंठ धाम गई देवी तुलसी : मान्यताओं के अनुसार तुलसी का विवाह देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप के साथ हुआ. पूíणमा के दिन तुलसी बैकुंठधाम गई। इतना ही नहीं आज के ही दिन

सिख धर्म की स्थापना हुई: सिख धर्म में काíतक पूíणमा का विशेष महत्त्व है। मान्यता है कि इस दिन सिख धर्म की स्थापना हुई थी और इस धर्म में प्रथम गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। सिख धर्म के अनुयायी इस दिन को प्रकाश उत्सव के रूप में मानते हैं।

इन बातों को रखें ध्यान

- इस दिन सुबह-सुबह गंगा स्नान किया जाता है.

-भगवान शिव और विष्णु जी की पूजा की जाती है.

-पूजा के बाद सुबह और शाम को मिट्टी के दीपक में घी या तिल का तेल डालकर जलाया जाता है.

- जो लोग गंगा स्नान ना कर पाएं को घर पर ही गंगाजल का छिड़काव कर स्नान करें।

- स्नान करते समय ॐ नम: शिवाय का जप करते जाएं। या फिर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।

-काíतक पूíणमा के दिन विष्णु जी की भी पूजा की जाती है।

-भगवान विष्णु जी की पूजा करते वक्त श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें या फिर भगवान विष्णु के इस मंत्र को पढ़ें।


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