शंख के ध्वनि से जागेंगे भगवान लक्ष्मीपति
जागरण संवाददाता सिलीगुड़ी काíतक शुक्ल पक्ष की एकादशी इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। बड
जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : काíतक शुक्ल पक्ष की एकादशी, इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जा रहा है।अषाढ़ माह की देवशयानी ग्यारस को क्षीर सागर में सोए पालनहार भगवान विष्णु अब आज के दिन जागेंगे। बुधवार की शाम के समय पूजा करके शख की तेज ध्वनि और विधि मंत्रों के अनुसार भगवान हरि को जगाया जाएगा। साथ ही उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाएंगे। इस प्रकार श्री हरि के जागने से चतुर्मास का अंत हो जाता है। आचार्य पंडित यशोधर झा के अनुसार शास्त्रों में एकादशी को पुण्य व फलदाई बताया गया है। इस से गन्ने की कटाई शुरू हो जाती है, इसलिए इस पूजा में गन्ने को भी भगवान को अíपत किया जाता है।एकादशी व्रत का पारण गुरुवार 26 नवंबर को तुलसी-पत्र से किया जाएगा। काíतक शुक्ल के इस पावन पर्व पर तुलसी जी की भी पूजा की जाती है और उनका विवाह किया जाता है। कहा जाता है कि इस एकादशी व्रत से अश्वमेध यज्ञ और सैकड़ों राजसूय यज्ञ के फलों की प्राप्ति होती है। इसी दिन से विवाह आदि शुभमुहर्त शुरू हो जाते हैं। इस दिन भक्तों द्वारा व्रत रखा जाता है और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। पावन पर्व पर विष्णु जी की पूजा नए गुड़, शकरकंद, गन्ने आदि से भोग लगाकर की जाती है। आस्थावान इस दिन निर्जल व्रत भी रखते हैं।पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता तुलसी ने भगवान विष्णु को नाराज होकर श्राप दे दिया था कि तुम काला पत्थर बन जाओ। इसी श्राप की मुक्ति के लिए भगवान ने शालीग्राम पत्थर के रूप में अवतार लिया और तुलसी से विवाह किया। तुलसी को माता लक्ष्मी का अवतार माना जाता है।
तभी से ही तुलसी विवाह किया जाने लगा। तुलसी की पूजा में तुलसी को सुहागिन महिलाएं सुहाग की चीजें और लाल चुनरी अíपत करती हैं।
एकादशी के दिन कार्यो को करने से बचें
-इसी कारण बताया गया कि एकादशी के दिन किसी भी पेड़-पौधों की पत्तियों को नहीं तोड़ना चाहिए। इस दिन बाल व नाखून भी नहीं काटना चाहिए।
-भोजन में इस दिन चावल का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
-इस दिन गोभी, पालक, बैगन आदि का सेवन करना वíजत माना गया है।