नागरिक संशोधन बिल को लेकर भाजपा व विरोधी आमने-सामने
-भाजपा इसे बता रहा देश के हित में विरोधी कह रहे संविधान विरोधी जागरण संवाददाता ि
-भाजपा इसे बता रहा देश के हित में, विरोधी कह रहे संविधान विरोधी
जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी :
एनसीआर के बाद अब नागरिक संशोधन बिल को लेकर पूर्वोत्तर समेत उत्तर बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्र में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गयी है। भाजपा सोमवार से शुरु हो रहे शीतकालीन सत्र में केंद्र सरकार नागरिकता संशोधन बिल पेश करने की तैयारी में है। भाजपा के प्रदेश महासचिव राजीव बनर्जी इसे राष्ट्र के हित में बता रहे है वहीं विरोधी कांग्रेस, माकपा, भाजपा और तृणमूल कांग्रेस की ओर से इसे सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाला बिल बताया जा रहा है। मुख्यमंत्री के कूचबिहार दौरे में भी एनआरसी व नागरिक संशोधन बिल की बात सामने आना तय माना जा रहा है। पूर्वोत्तर के लोग इस बिल को राज्यों की सास्कृतिक, भाषाई और पारंपरिक विरासत से खिलवाड़ के साथ मुस्लिम विरोधी भी बताया जा रहा है।ाष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का फाइनल ड्राफ्ट आने के बाद असम में विरोध-प्रदर्शन भी हुए थे। हालाकि इसमें जिन लोगों के नाम नहीं हैं,उन्हें सरकार ने शिकायत का मौका भी दिया। सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी से बाहर हुए लोगों के साथ सख्ती बरतने पर रोक लगा दी थी।
क्या है नागरिकता संशोधन बिल
नागरिकता संशोधन बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया जा रहा है, जिससे नागरिकता प्रदान करने से संबंधित नियमों में बदलाव होगा। नागरिकता बिल में इस संशोधन से बाग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा।
कम हो जाएगी निवास अवधि
भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए देश में 11 साल निवास करने वाले लोग योग्य होते हैं। नागरिकता संशोधन बिल में बाग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शरणार्थियों के लिए निवास अवधि की बाध्यता को 11 साल से घटाकर 6 साल करने का प्रावधान है।
इसे सरकार की ओर से अवैध प्रवासियों की परिभाषा बदलने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। गैर मुस्लिम 6 धर्म के लोगों को नागरिकता प्रदान करने के प्रावधान को आधार बना काग्रेस, टीएमसी, माकपा और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट धार्मिक आधार पर नागरिकता प्रदान किए जाने का विरोध कर रहे हैं। इसके बाद लोकसभा भंग होने के साथ ही यह बिल रद्द हो गया। अब एक बार फिर मोदी सरकार इस बिल को ला रही है, लेकिन जिस तरह विपक्षी दल इस बिल पर सवाल उठाते रहे हैं और पूर्वोत्तर के राज्यों में इसका पुरजोर विरोध किया जा रहा है, ऐसे में मोदी सरकार के सामने इस बिल को दोबारा दोनों सदनों से पास कराना चुनौतीपूर्ण होगा।