मुरलीगंज हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक शम्शुल आलम ने की अनूठी पहल, बच्चों के साथ अभिभावकों को भी बना रहे आत्मनिर्भर
सिलीगुड़ी के फांसीदेवा प्रखंड अंतर्गत बिधान नगर के मुरलीगंज गांव स्थितमुरलीगंज हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक शम्शुल आलम ने स्वनिर्भर बनने-बनाने की दिशा में अपने विद्यार्थियों व उनके अभिभावकों के लिए अनूठी पहल की है। जानिए इस पहल के बारे में विस्तार से।
सिलीगुड़ी, जागरण संवाददाता। शहर के फांसीदेवा प्रखंड अंतर्गत बिधान नगर के मुरलीगंज गांव स्थित मुरलीगंज हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक शम्शुल आलम ने स्वनिर्भर बनने-बनाने की दिशा में अपने विद्यार्थियों व उनके अभिभावकों के लिए एक अनोखी पहल की है। इसके तहत स्कूल में मिड डे मील का संचालन करने वाली महिलाओं के स्वयं सहायता समूह, कुछ विद्यार्थियों एवं उनके अभिभावकों को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके तहत कूचबिहार के दिनहाटा से आए मशरूम उत्पादन विशेषज्ञ सैकत सरकार ने उन सभी को मशरूम उत्पादन का आवश्यक प्रशिक्षण दिया।
सभी ने मिट्टी, पुआल, जैविक खाद आदि की पोटलियां बनाकर मशरूम का बीज बोया है। यह ट्रायल सफल रहा तो फिर वृहद स्तर पर भी इसे ले जाने की योजना है। प्रधानाध्यापक शम्शुल आलम ने बताया कि अभी फिलहाल पायलट प्रोजेक्ट के रूप में 60 पोटलियों से शुरुआत की गई है। इसमें प्रति पोटली लागत 20 रुपये आई है। अब 30 दिनों बाद हरेक पोटली से कम से कम एक-एक किलो मशरूम प्राप्त होगा, जिसकी कीमत 75 से 100 रुपये होगी। एक पोटली से एक बार ही नहीं बल्कि तीन-चार बार मशरूम उत्पादन होगा। इन मशरूमों का स्कूल के ही मिड डे मील में उपयोग किया जाएगा। इससे जहां एक ओर बच्चों को अतिरिक्त पोषण मिलेगा वहीं मिड डे मील के लागत खर्च में भी कमी आएगी। फिर, बच्चे व उनके अभिभावक अपने-अपने घर पर भी इस तरह का उत्पादन कर सकते हैं। उनके द्वारा यदि मशरूम उत्पादन उच्च स्तर पर होता है तो फिर उसके बाजार में विपणन की नई राह भी निकाली जा सकती है। इन सब में बच्चों का पठन-पाठन प्रभावित न हो इसलिए यह अनिवार्य नहीं बल्कि ऐच्छिक है। उसमें भी सप्ताह में केवल एक दिन बस घंटे भर ही इस तरह की बागवानी का काम करना है।
बता दें कि प्रधानाध्यापक शम्शुल आलम ने अपने सरकारी स्कूल मुरलीगंज हाईस्कूल को प्राइवेट स्कूलों की टक्कर में ला खड़ा करने की नजीर कायम किया है। यह सरकारी स्कूल तीन मंजिला है। अंदर, बाहर व चारों ओर चकाचक सफाई रहती। सुंदर सा एक्वेरियम, जगह-जगह कूड़ेदान, स्वच्छ शौचालय , रंग-बिरंगे फूलों की बागवानी से सजा परिसर, 32 सीसीटीवी कैमरों से निगरानी, कंप्यूटरीकृत काम की व्यवस्था, विज्ञान शिक्षा की प्रयोगशाला, खेल के लिए मिनी इंडोर स्टेडियम इस स्कूल की खासियत है। यहां का स्कूल बस भी जीपीएस सिस्टम से लैस है। पश्चिम बंगाल सरकार ने इस स्कूल पर डॉक्यूमेंटरी बनाई ताकि दूसरे सरकारी स्कूल भी प्रेरित हों। इसे 'मॉडल स्कूल' भी घोषित किया गया है। प्रधानाध्यापक शम्शुल आलम को 'शिक्षा रत्न' से नवाजा गया है। इतना ही नहीं, जर्मनी, कनाडा, फिलीपींस, किर्गिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश व नेपाल सरीखे देशों से शिक्षा जगत के विशेषज्ञ व सरकारों के प्रतिनिधि शम्शुल आलम की कार्य पद्धति सीखने उनके पास आए और उनके काम को खूब सराहा।