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मुर्दाघर के बाहर भी पैसे नोंचने वाले ‘चील कौओं’ की भरमार, पोस्टमार्टम रूम के बाहर प्लास्टिक व कफन बेचने वाले लखपति

बंगाल मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के पोस्टमार्टम विभाग में लाशों को बंधक बनाकर काली कमाई करने वाले मात्र आठ से दस लोग ही शामिल नहीं हैं। इसके पीछे एक बड़ा नेटवर्क है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 19 Dec 2019 02:38 PM (IST)Updated: Thu, 19 Dec 2019 02:38 PM (IST)
मुर्दाघर के बाहर भी पैसे नोंचने वाले ‘चील कौओं’ की भरमार, पोस्टमार्टम रूम के बाहर प्लास्टिक व कफन बेचने वाले लखपति
मुर्दाघर के बाहर भी पैसे नोंचने वाले ‘चील कौओं’ की भरमार, पोस्टमार्टम रूम के बाहर प्लास्टिक व कफन बेचने वाले लखपति

सिलीगुड़ी, मोहन झा। उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के पोस्टमार्टम विभाग में लाशों को बंधक बनाकर काली कमाई करने वाले मात्र आठ से दस लोग ही शामिल नहीं हैं। इसके पीछे एक बड़ा नेटवर्क है। यह लोग चील कौओं की तरह लाश से मांस तो नहीं नोच पाते हां मृतक के गमगीन रिश्तेदारों से रुपये की उगाही में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते।

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दैनिक जागरण के 18 दिसंबर के अंक में आपने पढ़ा कि उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के पोस्टमार्टम विभाग या कहें मुर्दाघर के कर्मचारी किसी तरह से लाशों का सौदा करते हैं। अब पढ़िए लाशों से कैश कमाने का यह घिनौना नेटवर्क कितना बड़ा है। लाशों से कैश कमाने वाले एक नहीं वरन अनेक हैं।

मुर्दाघर से बंधक बनाए लाश को यदि वहां से निकाल लें तो पैसे देने का सिलसिला यहीं खत्म नहीं जाता। कफन व प्लास्टिक बेचने वाले से लेकर एंबुलेंस वाले तक मृतक के परिजनों को जोंक की तरह चूस लेते हैं। आमलोगों की बात तो छोड़ दिजिए,यह नेटवर्क इतना मजबूत है कि इनके सामने पुलिस वालों की भी चलती। मौका लगने पर तो यह लोग पुलिस वालों तक को नहीं छोड़ते हैं।

मानव के रूप में इन राक्षसों के खिलाफ कार्यवाई तो दूर लिखित शिकायत तक नहीं होती है। यहां तो पैसा फेंको और तमाशा देखो वाली बात ही कारगर है। स्वाभाविक मौत में शव का पोस्टमार्टम अमूमन नहीं कराया जाता है। किसी हादसे, आत्महत्या, हत्या आदि मामलों में मरने वाले के शव का पोस्टमार्टम आवश्‍यक है। इससे मामले की तफ्तीश को दिशा मिलती है।

वैसे तो हर मौत दुखदायी होता है, लेकिन अकाल मृत्यु परिवार को झकझोर देता है। परिवार के लोग उस स्थिति में ही नहीं रहते हैं कि लाशों से कैश कमाने वालों से मोल-भाव कर सकें। पोस्टमार्टम के लिए शव की चीर-फाड़ व सिलाई करने वाले कर्मचारी के हाथों बंधक पड़े निर्जीव शरीर को छुड़ाने के बाद का दृश्य मानवता को शर्मसार करने वाला होता है।

पोस्टमार्टम हुए निर्जीव शरीर की सिलाई कुशलता के साथ नहीं बल्कि श्मशान या कब्रगाह तक ले जाने भर के लिए टांका मार दिया जाता है। शव के चीर-फाड़ वाले हिस्से को देखना भी विभत्स लगता है। इसलिए पोस्टमार्टम हुए शव को प्लास्टिक में लपेटते हैं, ताकि मक्खी-मच्छर व अन्य जीवाणु-विषाणु का प्रकोप न फैले।

उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज व अस्पताल स्थित फॉरेंसकि विभाग के पोस्टमार्टम रुम के बाहर प्लास्टिक व कफन बेचने वाले लखपति है। पोस्टमार्टम रूम या कहें मुर्दाघर के बाहर चाय-पान की दो गुमटी है। एक गुमटी एक व्यक्ति चलाता है तो दूसरे गुमटी की मालकिन एक वद्ध महिला है। इनकी ठाठ बाट देखकर आप हैरान हो जाएंगे। प्लास्टिक और कफन तक बेचने वाले मालामाल, गुमटी चलाने वालों का जलवा देख होगी हैरानी, पांच रूपये की अगरबत्ती पचास में लेने की मजबूरी है।

पुलिस वाले भी सौ-पचास देकर छुड़ाते हैं जान

जब हमने इस पूरे मामले की छानबीन की तो कई तथ्यों का खुलासा हुआ है। पोस्टमार्टम प्रक्रिया में शव की चीर-फाड़ व सिलाई करने वाले कर्मचारी पुलिस कर्मचारियों तक को नहीं छोड़ते है। अस्वाभाविक मौत वाले और अज्ञात शव के लिए पुलिस वालों को भी सौ-पचास रुपया देना ही पड़ता है। इससे बचने के लिए पुलिस कभी-कभी एंबुलेंस से शव को फॉरेंसकि विभाग तक पहुंचा देती है। और बाद में मुर्दाघर से लेती है। सिर्फ इतना ही नहीं एंबुलेंस व शव ढोने वाले गाड़ी चालक भी मनमाना किराया वसूलते हैं।

 बाप रे बाप, इतनी कीमत

चाय-पान के इन दोनों दुकानों पर शव लपेटने के लिए गज भर प्लास्टिक, कफन, अगरबत्ती वगैरह की भी बिक्री होती है। बल्कि ये दुकानदार मांगने पर फूलमाला आदि भी उपलब्ध कराते है। शव लपेटने के गज भर का प्लास्टिक, यहां 250 से 400 रुपए में मिलता है। जबकि इस प्लास्टिक की बाजार कीमत 50 रुपए से भी कम होती है। कफन की कीमत पांच सौ रुपए से शुरू ही होती है। 5 रुपए की अगरबत्ती भी 50 रुपए के नीचे नहीं मिलती है। इसी का फल है कि ये दुकान चलाने वाले मालामाल हैं।

गुमटी वाले का जलवा गजब

जो जानकारी मिली है उसके अनुसार यहां कफन और प्लास्टिक की बिक्री करने वाला एक दुकानदार तो तरह-तरह की मोटर साइकिल का शौकीन है। वह एक से एक महंगी बाइक से अपनी गुमटी खोलने आता है। उसकी काली कमाई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस दुकानार के दसों अंगुली में सोने की अंगूठी है। गले में सोने की मोटी-मोटी चेन को देखकर भी उसकी हैसियत का अंदाजा लगाया जा सकता है। जबकि आम पान-बीड़ी चलाने वाले गुमटी के मालिक अपने परिवार का पेट भी मुश्किल से भर पाते हैं।

मुफ्त फर्मेलीन की भी कीमत

प्राप्त जानकारी के मुताबिक पोस्टमार्टम के बाद शव को सड़ने-गलने से बचाने के लिए फर्मेलीन राज्य स्वास्थ विभाग की ओर से मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के पोस्टमार्टम विभाग को उपलब्ध कराई जाती है। इसके बाद भी उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज व अस्पताल के पोस्टमार्टम विभाग के कर्मचारी मुफ्त में फर्मेलीन तक शव पर नहीं छिड़कते हैं। पोस्टमार्टम के बाद शव को दूर ले जाने वाले परिवार वालों को फर्मेलीन तक खरीदना पड़ता है, या फिर पोस्टमार्टम कर्मचारी रुपया लेकर सरकारी फर्मेलीन मुहैया कराते हैं।

कार्रवाई की प्रक्रिया नहीं बढ़ रही आगे

दूसरी ओर,किसी सड़क व ट्रेन हादसा, आत्महत्या या फिर हत्या में मारे गए मानव के शव को बंधक बनाकर वसूली के खिलाफ कार्रवाई की सुगबुगाहट तक नहीं है। उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज व अस्पताल के रोगी कल्याण समिति के चेयरमैन डॉ. रूद्रनाथ भट्टाचार्य ने कहा कि यह मानवता के खिलाफ है। ऐसा काम सरकारी नियम के भी खिलाफ है। कई बार पोस्टमार्टम विभाग के कर्मचारियों को चेतावनी दी गई है। लिखित शिकायत के अभाव में कार्रवाई की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ती है। 


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