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अधूरी रह गइ मिल्खा की अंतिम इच्छा

-दिसंबर 2014 में सिलीगुड़ी आए थे उड़न सिख -दौड़ में ओलंपिक पदक नहीं मिलने से थे दुखी

By JagranEdited By: Published: Sat, 19 Jun 2021 07:59 PM (IST)Updated: Sat, 19 Jun 2021 07:59 PM (IST)
अधूरी रह गइ मिल्खा की अंतिम इच्छा
अधूरी रह गइ मिल्खा की अंतिम इच्छा

-दिसंबर 2014 में सिलीगुड़ी आए थे उड़न सिख

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-दौड़ में ओलंपिक पदक नहीं मिलने से थे दुखी 86

साल की उम्र में सिलीगुड़ी आए थे मिल्खा

80

स्पर्धाओं में शामिल हुए थे उड़न सिख मिल्खा

77

पदक जीतने में मिली मिल्खा को कामयाबी जागरण विशेष शिवानंद पांडेय, सिलीगुड़ी : उड़न सिख के नाम से जाने जाने वाले विश्व विख्यात मशहूर तेज धावक व ओलंपियन मिल्खा सिंह के निधन की खबर से पूरे देश की तरह सिलीगुड़ी में भी लोगों में शोक की लहर दौड़ गई। पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका शनिवार को पंजाब में अंतिम संस्कार भी हो गया। हालांकि दुनिया को अलविदा करने से ओलपिंक में दौड़ स्पर्धा में भारत को मेडल मिलते देखने की उनकी इच्छा अधुरी ही रह गई। दरअसल मिल्खा सिंह दिसंबर 2014 में सिलीगुड़ी कार्निवल में शामिल होने इस शहर में आए थे। उस वक्त वह 86 वर्ष के थे। उनके अंदर उस समय इतनी उम्र के बाद भी चुस्ती व जज्बे में कमी नहीं थी। अपने सिलीगुड़ी दौरे के दौरान संवाददाताओं से बातचीत में उन्होंने कहा था कि उनकी दिली इच्छा है कि उनके मरने से पहले कोई दूसरा मिल्खा सिंह पैदा हो तथा दौड़ की स्पर्धा में देश के लिए ओलंपिक पदक जीते। उन्होंने उस दौरान दुख व्यक्त करते हुए कहा था कि सवा सौ करोड़ आबादी वाले इस देश में 60 वर्ष बाद भी कोई दूसरा मिल्खा सिंह नहीं निकल सका,यह बड़ी दुख की बात है। उन्होंने वर्ष 1960 के रोम ओलंपिक को याद करते हुए कहा था कि उन्हें पूर्ण विश्वास था कि चार सौ मीटर की दौड़ में वे ही जीतेंगे। लेकिन 0.1 सेकेंड के अंतर पदक जीतने से चूक गये। चौथे स्थान पर ही संतोष करना पड़ा। जबकि उससे पहले चार सौ मीटर के दौड़ में उन्हीं का विश्व रिकार्ड था। मिल्खा सिंह ने तब कहा था कि वह अपने जीवन में 80 स्पर्धाओं में शामिल हुए जिसमें 77 बार पदक जीतने में कामयाब हुए थे। तब जूते तक नहीं थे

एक प्रश्न के जवाब मे उन्होंने कहा था कि जिस समय उन्होंने दौड़ने की शुरूआत की थी उस समय पैर में जूते तक नहीं हुआ करते थे। हाकी के जादूगर कहे जाने वाले महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद भी नंगे पांव हाकी खेलते थे। आज सब सुविधा है। सिर्फ कमी है तो अनुशासन व कड़ी मेहनत की। उन्होंने कहा कि वह अपने समय में छह घंटे प्रत्येक दिन दौड़ते थे। आज के समय में कोई भी बच्चा उतना मेहनत नहीं कर रहा है, जितनी जरूरत है।

पाकिस्तान जाने से कर दिया था मना

उन्होंने अपने समय के दौर को याद करते हुए कहा था कि देश की आजादी के तुरंत बाद वर्ष 1947 में हुई हिसा से व्यथित तथा पाकिस्तान के रवैये को देखते हुए वर्ष 1960 में पाकिस्तान खेलने जाने से मना कर दिया था। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरू के कहने पर दोस्ती का पैगाम लेकर वह पाकिस्तान खेलने गए थे


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