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सिलीगुड़ी आए बापू, मिली खुकुरी, हो गया विवाद!

स्लग गांधी जयंती विशेष -मई-जून 1925 में महात्मा गांधी ने किया था सि

By JagranEdited By: Published: Tue, 01 Oct 2019 08:20 PM (IST)Updated: Tue, 01 Oct 2019 08:20 PM (IST)
सिलीगुड़ी आए बापू, मिली खुकुरी, हो गया विवाद!
सिलीगुड़ी आए बापू, मिली खुकुरी, हो गया विवाद!

फोटो : संजय 01 स्लग : गांधी जयंती विशेष -मई-जून 1925 में महात्मा गांधी ने किया था सिलीगुड़ी-दार्जिलिंग सफर

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इरफान-ए-आजम, सिलीगुड़ी :

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी वर्ष 1925 के मई महीने में सिलीगुड़ी आए थे। तब, यहां से एक अनचाहा विवाद उनके पल्ले पड़ गया था। देश भर में उसकी ही चर्चा छिड़ गई थी। विरोधियों ने मामले को तूल देने की बड़ी कोशिश की लेकिन धीरे-धीरे मामला ठंडा पड़ गया।

यह माजरा यूं है कि 16 जून 1925 को निधन से पहले कई महीने तक स्वाधीनता सेनानी 'देशबंधु' चित्तरंजन दास गंभीर रूप से बीमार हो गए थे। उन्हें देखने के लिए ही बापू यहां आए थे। सियालदह से दार्जिलिंग मेल के जरिये वह सिलीगुड़ी जंक्शन (अब सिलीगुड़ी टाउन स्टेशन, थोड़े से बदलाव के साथ आज भी उसी रूप में मौजूद) पहुंचे। यहां से दार्जिलिंग गए। उस सफर में यहां के तत्कालीन दिग्गज कांग्रेसी नेता शिवमंगल सिंह भी उनके साथ थे। दार्जिलिंग के माल स्थित चित्तरंजन दास के मकान पर जा कर गांधी जी ने उनका हालचाल लिया और वहां एक रात्रि विश्राम भी किया।

अगले दिन दार्जिलिंग से वापसी के क्रम में महात्मा गांधी सिलीगुड़ी में शिवमंगल सिंह के मकान पर भी ठहरे। वहीं, उन्होंने कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं संग बैठक भी की थी। शहर के हाशमी चौक के निकट हिलकार्ट रोड पर आज उस मकान की जगह शहर की सबसे पहली 10 मंजिली इमारत 'निलाद्री शिखर' कायम है। बापू जिस मकान में ठहरे थे वह अब तस्वीरों में सिमटी याद है। आज भी कई कद्रदानों ने अपने घर में उस तस्वीर को संजो कर रखा हुआ है। शहर के वे कुछ लोग गर्व से कहते हैं कि उनके पास उस घर की तस्वीर है जिसमें कभी बापू ने एक दिन व एक रात गुजारी थी।

शहर के जाने-माने उद्यमी व समाजसेवी नंदू सिंह अपने पूर्वजों से विरासत में मिली यादों को ताजा करते हुए बताते हैं कि उस समय एक विवाद बापू के पल्ले पड़ गया था। यह हुआ था कि उनके दादा (शिवमंगल सिंह) ने यहां की पहाड़ी संस्कृति व परंपरा के तहत बापू को जहां खादा पहनाया वहीं 'खुकुरी' भी भेंट की थी। तब, देश भर में यह चर्चा का विषय बन गया कि अहिसा के पुजारी ने आखिर कैसे हिसा के हथियार का तोहफा कबूल कर लिया? गांधी जी के विरोधियों ने इसे मानो बड़ा मुद्दा बना दिया। खूब तूल देने की कोशिश की। पर, समय के साथ मामला ठंडा पड़ गया।


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