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महालया पर आज होगा चक्षु दान, प्रतिमाओं को अंतिम रूप देने में जुटे कारीगार

महालया के मद्देनजर कारीगर मां प्रतिमाओं को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। सोमवार को चक्षुदान करना है। महालया के दिन ही मां की आंखों में रंग भरने का काम शुरू किया जाता है।

By Rajesh PatelEdited By: Published: Sun, 07 Oct 2018 08:29 PM (IST)Updated: Mon, 08 Oct 2018 09:35 AM (IST)
महालया पर आज होगा चक्षु दान, प्रतिमाओं को अंतिम रूप देने में जुटे कारीगार
महालया पर आज होगा चक्षु दान, प्रतिमाओं को अंतिम रूप देने में जुटे कारीगार

सिलीगुड़ी [जागरण संवाददाता ]। पश्चिम बंगाल की सबसे बड़ी पूजा व उत्सव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। सोमवार को महालया के अवसर पर देवी दुर्गा की प्रतिमाओं में चक्षुदान के साथ बंगाल के इस महापर्व की औपचारिक शुरुआत हो जाएगी। इसके लिए प्रतिमा बनाने वाले कारीगर रातदिन एक किए हुए हैं। उनको हर हाल में महालया के दिन ¸मां की प्रतिमा की आंखों में रंग भरने की प्रक्रिया शुरू कर ही देनी होती है। 

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वैसे तो दुर्गा पूजा की तैयारियां पश्चिम बंगाल में करीब दो माह पहले से ही शुरू हो जाती हैं, लेकिन पितृ पक्ष के आगमन के समय इसमें तेजी आ जाती है। महालया आते-आते यह चरम पर पहुंच जाता है। बाजार दुल्हन की तरह सज जाते हैं। हर कोई उमंग से भर जाता है। पूरा शहर पूजा के रंग में रंग जाता है। कई खास तरीकों से पूजा पंडाल बनाए जा रहे हैं। प्रथमा के दिन मां को रंग चढ़ाया जाता है और फिर हर दिन खास होता है। ये सिलसिला नवमी तक चलता रहता है। लेकिन नवरात्रि शुरू होने से एक हफ्ते पहले दुर्गा मां की प्रतिमा तैयार हो जाती है, लेकिन उनकी आंखें रह जाती हैं। महालया के दिन देवी की आंखें तैयार की जाती हैं। इसे चक्षुदान कहते हैं। आंखें दान। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन देवी धरती पर आती हैं।


असली रूप दुर्गा पूजा के समय ही दिखाई पड़ता है। सिलीगुड़ी को पूर्वोत्तर का प्रवेश द्वार माना जाता है। वैसे तो इस इलाके में पूरे वर्ष भर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन यहां की खास दुर्गा पूजा देखने के लिए इस समय लोगों की संख्या काफी बढ़ जाती है। रेलवे विभाग भी इसके लिए विशेष ट्रेनों का संचालन करता है। बागडोगरा आने-जाने वाली हर फ्लाइट फुल होती है। सही मायने में यह शहर त्योहारों का, आनंद का शहर है। दुर्गा पूजा के दौरान हर कोई जात-पात भूलकर, उम्र की सीमा को पार कर लोग बस पंडालों में इस पूजा का लुत्फ उठाता नजर आता है। बड़े, बूढ़े, युवा और महिलाएं हर कोई पंडालों की सैर करता नजर आता है। सारे काम-काज भूल कर वे बस मां की आराधना में जुट जाते हैं।
दरअसल, बंगाल में पूजा का मतलब केवल पूजा, आराधना या मां को याद करना नहीं है, बल्कि पूरे साल के सारे दुख-दर्द और गम भूलाकर मस्ती करने का वक्त होता है। इस त्योहार में परिवार के सभी लोग एक साथ मां की पूजा करते हैं। उनका आदर-सम्मान करके घर में ही उनकी स्थापना भी करते हैं।
यहां की सेंट्रल कॉलोनी सार्वजनिन दुर्गापूजा कमेटी, दादा भाई स्पोर्टिंग क्लब, रथखोला स्पोर्टिंग क्लब, शक्तिगढ़ सार्वजनिन दुर्गापूजा कमेटी, विनर्स क्लब, जीटीएस क्लब के पंडाल देखने लायक होते हैं। सभी को अंतिम रूप देने में कारीगर जुटे हैं। 
बता दें कि अक्टूबर से लेकर नवंबर का महीना हिन्दू धर्म में त्यौहारों से भरपूर होता है। नवरात्रि, दशहरा, दिवाली, आदि त्यौहार ढेरों खुशियां लाते हैं। लेकिन अश्विन मास की नवरात्रि (शारदीय नवरात्रि) प्रारंभ होने से ठीक पहले आती है श्राद्ध पक्ष की अमावस्या। इसी दिन बंगाली समुदाय द्वारा महालया पर्व भी मनाया जाता है। इस साल यह पर्व आठ अक्टूबर सोमवार को है।
ऐसे मनाते हैं महालया
महालया बंगालियों का एक ऐसा पर्व है जो नवरात्रि की शुरुआत को दर्शाता है। इसमें अश्विन मास की अमावस्या की काली रात को सभी तैयार होकर मंदिर जाते हैं और मां दुर्गा की पूजा करते हैं। मान्यता है कि इसी रात को मां दुर्गा से पृथ्वी पर आने के लिए पार्थना की जाती है। देवी पृथ्वी पर आए और दैत्यों (दुख या संकट) का विनाश कर अपने भक्तों की रक्षा करे, इसकी कामना की जाती है। महालया के माध्यम से भक्त देवी दुर्गा से आशीर्वाद पाते हैं।
महालया की कथा
आमजन में प्रचलित एक कथा के अनुसार अश्विन मास की अमावस की रात सभी बंगाली एकत्रित होकर देवी दुर्गा की उपासना करते हैं। मंत्रों का उच्चारण करते हुए कैलाश में बैठी देवी दुर्गा को पृथिवी लोक आने के लिए आमंत्रित करते हैं। कहा यह भी जाता है कि कैलाश में विराजित दुर्गा अपने भक्तों को वहीं से आशीर्वाद देती हैं। उनका निमत्रण स्वीकार करती हैं और अमावस गुजर जाने के बाद अपनी सवारी पर सवार होकर पृथ्वी लोग के लिए रवाना हो जाती हैं। महालया की काली रात को महिषासुर से रक्षा हेतु देवी को पृथ्वी पर आने के लिए विनती करते हैं। मंत्रों और कुछ गीतों के माध्यम से, जैसे कि 'जागो तुमी जागो और बाजलो तोमर एलोर बेनू', ऐसे ही गीतों को गाते हुए देवी को निमंत्रण देते हैं।
सजते हैं पंडाल
महालया के लिए विशेष रूप से बंगाली पंडाल सजाए जाते हैं। स्त्रियां नई एवं लाल साड़ियां पहनकर तैयार हो जाती हैं। देवी के आगमन दिवस की तैयारियां करती हैं और सभी ओर खुशियों का माहौल होता है। 


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