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Lok Sabha Election 2019: इतिहास के आईने में पहली लोकसभा में नहीं थी दार्जिलिंग सीट!

आम चुनाव के दूसरे चरण में यहां 18 अप्रैल को मतदान होगा। अब सबको इसी का इंतजार है कि इस बार दार्जीलिंग का जनादेश किसके पक्ष में जाता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 10:05 AM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2019 02:46 PM (IST)
Lok Sabha  Election 2019: इतिहास के आईने में पहली लोकसभा में नहीं थी दार्जिलिंग सीट!
Lok Sabha Election 2019: इतिहास के आईने में पहली लोकसभा में नहीं थी दार्जिलिंग सीट!

सिलीगुड़ी, इरफान-ए-आजम। 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश राज्‍य से भारत आजाद हुआ। उसके बाद संविधान सभा एवं अंतरिम सरकार द्वारा इसका शासन चला। भारत का पहला आम चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक हुआ। तदोपरांत, 17 अप्रैल 1952 को पहली लोकसभा गठित हुई। उस समय लोकसभा में कुल 489 सीट थी, जो कि आज 543 है। पहली लोकसभा में दार्जिलिंग सीट नहीं थी। वर्ष 1957 में दूसरी लोकसभा से यह अस्तित्व में आई। कांग्रेस के थ्योडोर मेनन यहां के पहले निर्वाचित सांसद हुए। 1957 से 1962 और 1962 से 1967 तक लगातार दो बार थ्योडोर मेनन ही यहां के सांसद थे।

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दार्जीलिंग की पहली निर्दलीय व पहली महिला सांसद हुईं मैत्रेयी बोस। वह 1967 से 1971 तक सांसद रहीं। इससे पूर्व वह पश्चिम बंगाल विधानसभा में कांग्रेसी सदस्या थीं। पहली बार, वर्ष 1971 में स्थानीय व कम्युनिस्ट नेता रतन लाल यहां के सांसद बने। वह कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माकपा) के टिकट पर 1977 तक सांसद रहे। उस काल में यहां अलग हुआ। 1975 की इमरजेंसी से देश भर में उत्पन्न इंदिरा गांधी विरोधी लहर का यहां असर नहीं पड़ा। वर्ष 1977 में इंदिरा विरोधी लहर में भी कांग्रेस के कृष्ण बहादुर छेत्री यहां से सांसद विजयी हुए। मगर, 1980 में जब देश में पुन: इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार आई तब यहां फिर उलटा हुआ। तब, इस सीट पर माकपा की ओर से स्थानीय आनंद पाठक सांसद निर्वाचित हुए। वह लगातार दो बार, 1980 से 84 और 1984 से 89 तक यहां के सांसद रहे।

वर्ष 1986 में हुए चरम गोरखालैंड आंदोलन के बाद से दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र में राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दलों का प्रभाव कम होने लगा। तब, स्थानीय गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) और उसके मुखिया व पहाड़ के शासक रहे सुभाष घीसिंग का यहां दबदबा छा गया। दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल (डीजीएचसी) के शासक के रूप में उनका दबदबा दो दशक तक रहा। उस दौरान 1989 से 91 और 1991 से 96 तक जीएनएलएफ की मदद से यहां के सांसद रहे कांग्रेस के इंद्रजीत खुल्लर।

वर्ष 1996 में देश में खंडित जनादेश आया। देश ने दो साल में तीन-तीन प्रधानमंत्री देखा। अटल बिहारी वाजपेयी, एच. डी. देवेगौड़ा व इंद्र कुमार गुजराल। उस समय सुभाष घीसिंग भी कांग्रेस से दूर और राज्य की सत्तारूढ़ माकपा के करीब आ गए। तब, उनके जीएनएलएफ की मदद से 1996 से 98 तक आर. बी. राई, 1998 से 99 तक पुन: आनंद पाठक और 1999 से 2004 तक एस. पी. लेप्चा तीनों ही स्थानीय माकपा के सांसद हुए।

2004 में कांग्रेस ने फिर सुभाष घीसिंग से नजदीकी बढ़ाई और उनके जीएनएलएफ की मदद से कांग्रेस की ओर से स्थानीय दावा नबरुला दार्जिलिंग के सांसद हुए। इधर, 2007 में पहाड़ के हालात बदल गए। सुभाष घीसिंग के दायां हाथ रहे विमल गुरुंग उनसे अलग हो कर नई शक्ति के रूप में उभरे। अपना नया गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) बनाया। उन्होंने सुभाष घीसिंग को पहाड़ से निर्वासित होने को बाध्य कर दिया। पहाड़ पर विमल गुरुंग और उनके गोजमुमो का दबदबा छा गया। शुरू से ही उनका झुकाव छोटे राज्यों की हिमायती भाजपा की ओर ही रहा। उसी के चलते विमल गुरुंग व उनके गोजमुमो की मदद से वर्ष 2009 से अब तब यहां भाजपा के ही सांसद विजयी हुए। 2009 में भाजपा के दिग्गज जसवंत सिंह और 2014 में एस. एस. अहलूवालिया।

इधर, अब फिर पहाड़ की परिस्थिति बदली हुई है। राज्य की ममता बनर्जी सरकार के कोपभाजन हुए विमल गुरुंग भूमिगत हैं। मगर, उनके गुट का गोजमुमो पहाड़ पर सरगर्म है। विमल गुरुंग के ही कभी विश्वास पात्र रहे विनय तामांग अब राज्य की तृणमूल कांग्रेस सरकार के विश्वास पात्र हैं। वह गोरखालैंड टेरिटोरिअल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) संभाल रहे हैं। इसके साथ ही एक धड़े के सहयोग से गोजमुमो (विनय तामांग गुट) भी चल रहा है।

इस बार दार्जीलिंग लोकसभा सीट से केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने सांसद एस. एस. अहलूवालिया का पत्ता काट दिया है। उनकी जगह मणिपुर के युवा उद्यमी राजू सिंह बिष्ट को उम्मीदवार बनाया है। इस उम्मीदवारी को गोजमुमो (विमल गुरुंग गुट) व सुभाष घीसिंग के पुत्र मन घीसिंग के जीएनएलएफ का संयुक्त रूप से समर्थन है। वहीं, गोजमुमो (विनय तामांग गुट) का समर्थन राज्य के सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार स्थानीय अमर सिंह राई को है। कांग्रेस की ओर से सिलीगुड़ी के शंकर मालाकार उम्मीदवार हैं। माकपा ने अपने पूर्व राज्यसभा सांसद दार्जीलिंग के ही समन पाठक को मैदान में उतारा है। अन्य दलों की ओर से भी कुछ और उम्मीदवार मैदान में हैं। दार्जीलिंग लोकसभा क्षेत्र दार्जीलिंग जिले में दो भौगोलिक भागों में बंटा हुआ है।

पहाड़ व समतल। पहाड़ पर दार्जीलिंग और कर्सियांग दो विधानसभा क्षेत्र हैं। समतल पर फांसीदेवा-खोरीबाड़ी, माटीगाड़ा-नक्सलबाड़ी और सिलीगुड़ी तीन विधानसभा क्षेत्र हैं। एक और, नया पहाड़ी जिला कालिम्पोंग का एकमात्र कालिम्पोंग विधानसभा क्षेत्र और पड़ोसी उत्तर दिनाजपुर जिला का चोपड़ा विधानसभा क्षेत्र भी दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र में ही सम्मिलित है। यहां कुल 1437126 मतदाता हैं। आम चुनाव के दूसरे चरण में यहां 18 अप्रैल को मतदान होगा। अब सबको इसी का इंतजार है कि इस बार दार्जीलिंग का जनादेश किसके पक्ष में जाता है।


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