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Janmashtami 2020: मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण 119 वर्ष की आयु तक जीवित रहे व युवा हीं दिखते रहे क्योंकि...

कोरोना काल मे भी हर घर मे दिख रहे नन्हें कन्हैया घरों में लड्डू गोपाल की पूजा तो मंदिरों में ऑन लाइन दर्शन

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 11 Aug 2020 02:27 PM (IST)Updated: Tue, 11 Aug 2020 02:32 PM (IST)
Janmashtami 2020: मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण 119 वर्ष की आयु तक जीवित रहे व युवा हीं दिखते रहे क्योंकि...
Janmashtami 2020: मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण 119 वर्ष की आयु तक जीवित रहे व युवा हीं दिखते रहे क्योंकि...

सिलीगुड़ी, अशोक झा। पूर्वोत्तर के प्रवेशद्वार सिलीगुड़ी। इसे धर्मनगरी की यूं ही उपाधि नहीं दी गयी है। कोरोना के महामारी में  श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर ज्यादातर  घरों में  बच्चे श्री कृष्ण व बच्चियां राधा सजी नजर आ रही है। परिवार इस बालरूपी राधे कृष्ण से अपनी हर मुराद पूरी करने में लगे है। परिवार के बीच इस प्रकार श्रीकृष्ण जंयती धूम मची है। शहर में दो दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में किस परिवार में कितना अच्छा श्रीकृष्ण सजा है। इसे वे सोसल मीडिया व परिजनों को भेज वाहवाही लेते है। 

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पौराणिक ग्रंथों के मतानुसार श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि के समय हुआ था। अत: भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग हो तो वह और भी भाग्यशाली माना जाता है। इसे जन्माष्टमी के साथ साथ जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।जन्माष्टमी के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके व्रत को 'व्रतराज' कहा जाता है। मान्यता है कि इस एक दिन व्रत रखने से कई व्रतों का फल मिल जाता है। अगर भक्त पालने में भगवान को झुला दें, तो उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। संतान, आयु और समृद्धि की प्राप्ति होती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन जो भी व्रत रखता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह मोह-माया के जाल के मुक्त हो जाता है। यदि यह व्रत किसी विशेष कामना के लिए किया जाए तो वह कामना भी शीघ्र ही पूरी हो जाती है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आपका आत्मिक सुख जगाने का, आध्यात्मिक बल जगाने का पर्व है।

सर्वगुण सम्पन्न थे श्री कृष्ण 

आचार्य पंडित यशोधर झा के अनुसार श्रीकृष्ण अवतार भगवान विष्णु का पूर्णावतार है। ये रूप धर्म और न्याय का सूचक है वहीं इसमें अपार प्रेम भी है। वे भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने अर्जुन को कायरता से वीरता, विषाद से प्रसाद की ओर जाने का दिव्य संदेश श्रीमदभगवदगीता के माध्यम से दिया। तो कालिया नाग के फन पर नृत्य किया, विदुराणी का साग खाया और गोवर्धन पर्वत को उठाकर गिरिधारी कहलाये। समय पडऩे पर उन्होंने दुर्योधन की जंघा पर भीम से प्रहार करवाया, शिशुपाल की गालियां सुनी, पर क्रोध आने पर सुदर्शन चक्र भी उठाया। और अर्जुन के सारथी बनकर उन्होंने पाण्डवों को महाभारत के संग्राम में जीत दिलवायी। 

सोलह कलाओं से पूर्ण वह भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने मित्र धर्म के निर्वाह के लिए गरीब सुदामा के पोटली के कच्चे चावलों को खाया और बदले में उन्हें राज्य दिया। इन्हीं वजहों से श्रीकृष्ण को संपूर्ण अवतार माना जाता है। संपूर्ण कभी गलत नहीं हो सकता न कर सकता है, क्योंकि उसके बाहर है क्या जो उसकी समीक्षा करे? इसीलिए संपूर्ण में अच्छा-बुरा, सृजन-विध्वंस और धर्म-अधर्म सबकुछ शामिल होता है। कृष्ण का चरित्र भी ऐसा ही है। मतलब साफ है संपूर्ण को संपूर्ण ही समझ सकता है और स्वीकार कर सकता है। हममें से कोई संपूर्ण नहीं है, जो कृष्ण गाथा के मर्म तक पहुंच सके। हम तो अपना-अपना कृष्ण ही चुन सकते हैं। असल में लोगों ने ऐसा ही किया है। वृंदावनवासियों को कृष्ण का बाल रूप और गोपी प्रसंग ज्यादा पसंद है।

चैतन्य महाप्रभु को कृष्ण का ईश्वरीय संस्करण ज्यादा नजर आता था। सूफी तत्व ज्यादा दिखाई पड़ता है। गांधी जी ने गीता के निष्काम कर्म योग को अपनाने की कोशिश की और लोगों ने कृष्ण को और दृष्टि से देखा होगा। कह सकते हैं हर आदमी के भीतर कृष्ण का कोई-न-कोई पहलू मौजूद है। उन्हीं परमदयालु प्रभु के जन्म उत्सव को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।

जीव सराबोर का त्योहार है  श्रीकृष्ण जन्माष्टमी जीव को श्रीकृष्ण-तत्त्व में सराबोर करने का त्यौहार है। श्रीकृष्ण का जीवन सर्वांगसंपूर्ण जीवन है। उनकी हर लीला कुछ नयी प्रेरणा देने वाली है। वैसे भी श्रीकृष्ण अवतार से जुड़ी हर घटना और उनकी हर लीला निराली है। श्रीकृष्ण के मोहक रूप का वर्णक कई धाॢमक ग्रंथों में किया गया है। सिर पर मुकुट, मुकुट में मोर पंख, पीतांबर, बांसुरी और वैजयंती की माला। ऐसे अद्भूत रूप को जो एकबार देख लेता था, वो उसी का दास बनकर रह जाता था।

श्रीकृष्ण को दूध, दही और माखन बहुत प्रिय था। इसके अलावा भी उन्हें गीत-संगीत, राजनीति, प्रेम, दोस्ती व समाजसेवा से विशेष लगाव था। जो आज हमारे लिए प्रेरणाश्रोत और सबक भी है। उनकी बांसुरी के स्वरलहरियों का ही कमाल था कि वे किसी को भी मदहोश करने की क्षमता रखते थे। उन्होंने कहा भी है, अगर भजदगी में संगीत नहीं तो आप सुनेपन से बच नहीं सकते। संगीत जीवन की उलझनों और काम के बोझ के बीच वह खुबसूरत लय है जो हमेसा आपको प्रकृति के करीब रखती है। आज के दौर में कर्कश आवाजें ज्यादा है। ऐसे में खुबसूरत ध्वनियों की एक भसफनी आपकी सबसे बड़ी जरुरत हैं।

राजनीति के  चाणक्य  थे श्री कृष्ण

राजनीति का सवाल है श्रीकृष्ण ने किशोरावस्था में मथुरा आने के बाद अपना पूरा जीवन राजनीतिक हालात सुधारने में लगाया। वे कभी खुद राजा नहीं बने, लेकिन उन्होंने तत्कालीन विश्व राजनीति पर अपना प्रभाव डाला। मिथकीय इतिहास इस बात का गवाह है कि उन्होंने द्वारका में भी खुद सीधे शासन नहीं किया। उनका मानना था कि अपनी भूमिका खुद निर्धारित करो और हालात के मुताबिक कार्रवाई तय करो। महाभारत युद्ध में दर्शक रहते हुए भी वे खुद हर रणनीति बनाते और आगे कार्रवाई तय करते थे। जबकि आज पदो के पीछे भागने की दौड़ में राजनीति अपने मूल उद्देश्य को भूल रही है। ऐसे में श्रीकृष्ण की राजनीतिक शिक्षा हमें रोशनी देती हैं।

पशु प्रकृति से जुड़कर दिया संदेश :

वृंदावन में गोपियों के साथ रास रचाने वाले श्रीकृष्ण को पशुओं और प्रकृति से बेहद लगाव था। उनका बचपन गायों और गांवों के जीवों के इर्द-गिर्द बीता, लेकिन जब मौका आया तो उन्होंने अपने नगर के लिए समुद्र के करीब का इलाके को चुना। जहां  पहाड़, पशु, पेड़, नदी-समुद्र कृष्ण की पूरी कहानी का जरुरी हिस्सा हैं।

 मित्रों को स्वावलंबी बनाने का किया काम: दोस्त को जरुरत से ज्यादा खुद पर निर्भर मत बनाओं। अर्जुन को कृष्ण लडऩे लायक बनाते है, उसके लिए खुद नहीं लड़ते। सुदामा को भी आर्थिक मदद ही करते हैं। यानी दोस्ती की छीजती सलाहियत के बीच कृष्ण दोस्त की पहचान पर जोर देते हैं। समाजसेवा के लिए श्रीकृष्ण किसी काम को छोटा नहीं समझते। अगर अर्जुन के सारथी बने तो चरवाहा या यूं कहे ग्वाला भी बनें। सुदामा के पैर धोए तो युधिष्ठिर से धुलवाया, तो उनकी पत्तल भी उठाएं। कर्म प्रधानता का पूरा शास्त्र गीता इसका बड़ा उदाहरण है। यानी काम करो, बस काम, जो भी सामने हो, जैसा भी हो। या यूं कहे कृष्ण अकर्मण्यता के खिलाफ थे। शार्टकट और पहले परिणाम जानने की दौर में श्रीकृष्ण के मार्ग ज्यादा अहम् हो जाते हैं। वे परिणाम से ज्यादा कर्म को तवज्जों देते हैं। 

जो जीवन भर रहे  युवा  : 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण 119 वर्ष की आयु तक जीवित रहे। दिलचस्प बात यह है कि कृष्ण 119 वर्ष में भी युवा ही दिखते थे। भगवान के युवा दिखाई देने का रहस्य उनके जन्म से लेकर विष्णुलोक जाने के क्रम में छिपा हुआ है। दरअसल कान्हा का जन्म मथुरा में हुआ। लालन-पालन और बचपन गोकुल, वृंदावन, नंदगांव, बरसाना में बीता। जब वह किशोर हुए तो मथुरा पहुंचे। उन्होंने अपने क्रूर मामा कंस का वध किया। और फिर वह द्वारिका में रहने लगे।वदंती है कि सोमनाथ मंदिर के नजदीक ही उन्होंने अपनी देह त्यागी थी। उनकी मृत्यु एक बहेलिया के तीर लगने के कारण हुई थी। हुआ यूं था कि बहेलिया ने उनके पैर को हिरण का सिर समझ तीर चलाया और तीर सीधा उनके पैर के तलुए में जा लगा। इस तरह उन्होंने अपनी देह त्याग दी।  वह 119 उम्र में भी एक युवा की तरह ही दिखाई देते थे।  


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