बस किराया बढ़ने के बाद एक रूपया के सिक्के का बढ़ा प्रचलन
महानगर में बस किराया क्या बढ़ा, एक रुपया के सिक्के की कद्र भी बढ़ गई है। एक हफ्ते पहले तक इससे कोई पूछता तक नहीं था-खासकर एक रूपया के छोटे सिक्के को।
कोलकाता, जागरण संवाददाता, : महानगर में बस किराया क्या बढ़ा, एक रुपया के सिक्के की कद्र भी बढ़ गई है। एक हफ्ते पहले तक इससे कोई पूछता तक नहीं था-खासकर एक रूपया के छोटे सिक्के को। न बस कंडक्टर, न यात्री, न दुकानदार और न ही भिखारी। किराया बढ़ने के बाद एक रूपया के सिक्के की शान ही बढ़ गई है। पिछले चार साल से बस का न्यूनतम किराया छह रुपये था। दूसरे चरण का आठ रुपये, इसलिए 10 रुपये का नोट अथवा दो रुपये के सिक्के देने से ही आसानी से काम चल जाता था।
न तो कंडक्टर एक रुपया का छोटा सिक्का लेना चाहते थे और न बस पर चढ़ने वाले यात्री। छुटके भैया का प्रचलन कम होता जा रहा था। अब न्यूनतम बस किराया सात रुपये होने से एक रुपया के सिक्के की अहमियत एकाएक बढ़ गई है। सात रुपये का किराया देने के लिए 10 रुपये का नोट कंडक्टर को पकड़ाने पर भी तीन रुपये लौटाने पड़ते है। इसके लिए कम से कम एक रुपया के एक सिक्के की जरुरत पड़ती ही है। बस मालिकों का कहना है कि बस में चढ़ने वाले अधिकतर यात्री कम दूरी अर्थात सात रुपये के किराये वाले होते हैं। इसके बाद 9 रुपये के किराये वाले 25 फीसद यात्री हैं।
ज्वाइंट काउंसिल ऑफ बस सिडिंकेट के महासचिव तपन बंद्योपाध्याय ने कहा कि पहले बाजार में एक रुपया का सिक्का कोई लेना नही चाहता था। यात्री भी लौटा देते थे। नए किराये में अब एक रुपया का सिक्का ही भरोसा है। एक तरह से अच्छा ही हुआ। इससे बाजार में चिल्लर भी बढ़ा है। वहीं बस-मिनी बस कोआर्डिनेशन कमेटी के महासचिव राहुल बंद्योपाध्याय ने कहा-'एक रूपया का सिक्का अप्रचलित सा हो गया था। यात्रियों को देने पर वे लेना नहीं चाहते थे। अब इस समस्या का हल हो गया है।