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IIT Kharagpur researchers आइआइटी खड़गपुर ने गीले वस्त्र से विद्युत उत्पादन का अनूठा तरीका खोजा

IIT Kharagpur researchers आइआइटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने प्राकृतिक वातावरण में कपड़े सुखाने से बिजली पैदा करने का एक अनूठा तरीका विकसित किया है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 20 Sep 2019 01:21 PM (IST)Updated: Fri, 20 Sep 2019 01:25 PM (IST)
IIT Kharagpur researchers आइआइटी खड़गपुर ने गीले वस्त्र से विद्युत उत्पादन का अनूठा तरीका खोजा
IIT Kharagpur researchers आइआइटी खड़गपुर ने गीले वस्त्र से विद्युत उत्पादन का अनूठा तरीका खोजा

खड़गपुर, जागरण संवाददाता। आइआइटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने प्राकृतिक वातावरण में कपड़े सुखाने से बिजली पैदा करने का एक अनूठा तरीका विकसित किया है। छोटे चैनलों का उपयोग करके (जिन्हें पारंपरिक रूप से बुने गए सेलूलोज आधारित फैब्रिक नेटवर्क में नैनोकैनल्स कहा जाता है) निरंतर वाष्पीकरण के बीच खारे पानी की आवागमन प्राप्त कर एवं पौधों में जल परिवहन के लिए विद्युत ऊर्जा उत्पादन संभव हो पाया है।

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मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर और एक प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर सुमन चक्रवर्ती बताते हैं कि नियमित सेल्यूलोज आधारित पहनने योग्य वस्त्र इस मामले में कोशिका क्रिया द्वारा रेशेदार नैनो स्केल नेटवर्क के माध्यम से नमक आयनों की गति के लिए एक माध्यम के रूप में कार्य करता है जो इस प्रक्रिया में एक विद्युत क्षमता को उत्प्रेरण करता है। छोटे चैनलों का उपयोग करके निरंतर वाष्पीकरण के बीच खारे पानी की आवागमन प्राप्त कर एवं पौधों में जल परिवहन के लिए विद्युत ऊर्जा उत्पादन संभव हो पाया है।

शोधकर्ताओं ने इस पूरी प्रक्रिया को बड़े पैमाने पर लगभग 50 की संख्या में 3000 वर्ग मीटर के सतह क्षेत्र के साथ वस्त्र का उपयोग करके एक दूरदराज के गांव में वस्त्र धोने वाले लोगों से मिलकर प्रदर्शन किया। इस प्रक्रिया में शोधकर्ताओं ने 24 घंटे में लगभग 10 वोल्ट तक चार्ज करने में सफलता हासिल की। यह संग्रहीत ऊर्जा एक घंटे से अधिक के लिए एक सफेद एलईडी को चालू करने के लिए पर्याप्त है।

बताया गया कि उपरोक्त मितव्ययी नवाचार यह दर्शाता है कि साधारण सेलूलोज आधारित गीला वस्त्र, जिसे आमतौर पर प्राकृतिक वातावरण में सुखाया जाता है, दूरदराज के क्षेत्रों में आवश्यक बिजली आवश्यकताओं को पूरा करने के मामले में सक्षम हो सकता है। जटिल संसाधनों से ऊर्जा संचयन के मौजूदा तरीकों की तुलना में बिजली उत्पादन प्राकृतिक परिवेश में होता है। यह उपकरण भौगोलिक रूप से गर्म और शुष्क क्षेत्रों में बेहद प्रभावी हो सकता है।

चक्रवर्ती बताते हैं कि उपरोक्त शोध हाल ही में अमेरिकन केमिकल सोसायटी के एक उच्च प्रभाव वाले जरनल नैनो लेटर्स में प्रकाशित हुआ है।


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