हमारी ¨हदी वास्तविक राष्ट्रभाषा कैसे बने ?
¨हदी दिवस पर विशेष- --------------- जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को
¨हदी दिवस पर विशेष-
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जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को ¨हदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। केंद्रीय कार्यालयों व प्रतिष्ठानों तथा ¨हदी भाषी विद्यालयों ¨हदी दिवस पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। हालांकि आज भी ¨हदी का जिस तरह से प्रचार-प्रसार होना चाहिए, उतना नहीं हो पा रहा है। लोगों पर अंग्रेजी भाषा को भूत सवार है। वर्तमान में कुछ लोग अंग्रेजी में बात करना गर्व, तो ¨हदी में बात करना शर्म महसूस करते हैं। अगर ¨हदी को राष्ट्र भाषा की पहचान दिलानी हैं, तो ¨हदी को अपनी दिनचर्या में शामिल करना होगा।
हमारी ¨हदी वास्तविक रूप में राष्ट्रभाषा कैसे बने इस पर ¨हदी के क्षेत्र में अपना योगदान देने वाले कुछ विशिष्ट जनों ने इस प्रकार अपने विचार व्यक्त किए हैं:-
हिंदी हमारे देश की राजभाषा है, संपर्क भाषा है और राष्ट्रभाषा भी है। इस देश के वाशिंदे आपसी संपर्क के लिए यदि किसी भाषा का सर्वाधिक प्रयोग करते हैं, तो वह हिंदी है। हिंदी हमारी राजभाषा भी है, लेकिन राजभाषा के रूप में वह सर्वप्रचलित नहीं है। देश की राजभाषा का मूल खाचा आजादी के 70 साल बाद भी औपनिवेशिक है। आज भी अंग्रेजी में काम-काज का प्रचलन है। हालाकि राजभाषा हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए सरकारी तौर पर हिंदी पखवाड़ा, हिंदी माह आदि के नाम पर अंधाधुंध पैसे खर्चे किए जाते हैं, पर उन खर्चो का सदुपयोग नहीं दिखता। खर्चे के हिसाब से विकास धीमा है। मानसिकता में परिवर्तन और व्यक्तिगत-सामाजिक प्रयास, दोनों की आवश्यकता है। हिंदी वास्तविक राष्ट्र भाषा तभी बनेगी जब लोग संपर्क भाषा से लेकर राजभाषा तक में हिंदी को माध्यम के रूप में व्यापक स्तर पर अपनाएंगे ।
----- डॉ. मनीषा झा, प्रोफेसर हिंदी विभाग,उत्तर बंग विश्वविद्यालय
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भारत का नागरिकता प्राप्त प्रत्येक देशवासी के लिए आज और आगे भी भविष्य में अन्य प्रातों से जुड़ने और जुड़े रहने का यदि कोई माध्यम उपलब्ध है तो वह है हिंदी। ¨हदी भाषा को संवैधानिक तौर पर भले ही हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में घोषित किया जाना प्रादेशिक राजनीति के कारण संभव नहीं हो पाया हो, लेकिन वास्तविकता के आईने में यही वह भाषा है और हिंदी भाषियों के लिए जिसकी मदद से भारत में कहीं भी पर्यटन भ्रमण एवं अपने विचारों को प्रचारित-प्रसारित करने में पर्याप्त मदद मिलती है। जन संपर्क की एकमात्र सर्व सुलभ सुबोध एवं सहज ही प्रयोग में आने वाली भाषा हिंदी है, जिसे बाजार और जनसंचार माध्यमों ने नित नये-नये प्रयोगों से अपनी सफलता का अनोखा माध्यम बनाए हुए हैं। रही बात वैश्रि्वक स्तर पर हिंदी के राष्ट्रभाषा स्वरूप की तो वैश्रि्वक स्तर पर विश्व के किसी भी देश में दक्षिण भारतीय को सहज ही एक दूसरे के निकट लाने में भी हिंदी भाषा माध्यम बनती है। ऐसी स्थिति में भारत सरकार द्वारा संवैधानिक सर्वसम्मति हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्राप्त हो या नहीं इससे कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता। वास्तविकता की धरातल पर हिंदी तो राष्ट्रभाषा है ही, भारतवर्ष जैसे सामासिक संस्कृति की राष्ट्रीय अस्मिता को ही वैश्रि्वक स्तर पर हिंदी ही स्थापित करने में समर्थ है।
यूएनओ में भारत सरकार के प्रतिनिधियों द्वारा हिंदी भाषा से संबंधित पहल सहज ही इसके राष्ट्रभाषा होने के गौरव का बोध करा देती है।
यूएनओ में वैश्रि्वक स्थान प्राप्त करने की अधिकारिणी हिंदी भाषा यदि राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित नहीं की जा रही है, तो इसके पीछे भारतवर्ष के प्रादेशिक राजनीतिज्ञ की संकीर्ण मानसिकता ही है। आजादी के तुरंत बाद जिस संकीर्णता के कारण कुछ अवधि की अनिवार्यता महसूस की गई, वही आज हिंदी के राष्ट्रभाषा होने के मार्ग में सबसे बड़ी चुनौती ही नहीं विडंबना तक बन गई। राजनेता राष्ट्रीय स्तर पर अपनी संकीर्ण मानसिकता से स्वयं को यदि मुक्त करें, तो सहज ही संवैधानिक स्तर पर हिंदी राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त कर लेगी। वैसे इसके राष्ट्रभाषा होने में कहीं कोई संदेह की व्यवहारिक स्तर पर नहीं है।
अजय साव, विभागाध्यक्ष, ¨हदी विभाग, सिलीगुड़ी कॉलेज
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द्विभाषी व त्रिभाषी माध्यम के विद्यालयों में एक ¨हदी भाषा की पढ़ाई अनिवार्य किया जाना चाहिए। सरकारी कार्यालयों में ¨हदी में कामकाज के प्रचलन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए तथा अधिक से अधिक कामकाज में ¨हदी में किया जाना अनिवार्य करने की जरूरत है। लोगों को अपने मातृभाषा व ¨हदी के प्रति ज्यादा सतर्क रहते हुए अधिक से अधिक ¨हदी का प्रयोग करना चाहिए। अपने घरों में बच्चों के साथ ¨हदी व मातृभाषा में बात करना चाहिए। कहीं भी ¨हदी में बात करने में अपने आप को गर्व महसूस करना चाहिए। ¨हदी में बात करने में अपने आप को हीनभावना से ग्रसित नहीं होना चाहिए। अंग्रेजी की छाया से बाहर निकलने की जरूरत है। आज हमें चीन, रूस समेत अन्य देशों से सीख लेनी चाहिए, जहां वे अंग्रेजी में नहीं, बल्कि अपनी मूल भाषा को अपनाकर आगे बने हुए हैं। इन सब उपायों से ही ¨हदी वास्तविक रूप में राष्ट्रभाषा हो सकती है।
डॉ एसएस अग्रवाल, प्रधानाचार्य, सिलीगुड़ी मॉडल हाईस्कूल (सीनियर सेकेंड्री) गुरुंगबस्ती