ट्वॉय ट्रेन से छिन सकता है विरासत का दर्जा
प. बंगाल के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल दार्जिलिंग में चलने वाली ट्वाय ट्रेन से विरासती दर्जा छीन सकता है। डीएचआर को विश्व विरासत का दर्जा 1999 में मिला था।
कोलकाता, [जेएनएन] । पश्चिम बंगाल के विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल दार्जिलिंग में चलने वाली ट्वाय ट्रेन से विरासती दर्जा छीन सकता है। पहाड़ में चल रहे उग्र आंदोलन से दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (डीएचआर) को पहुंचे नुकसान को देखते हुए यूनेस्को ने इस बाबत आगाह किया है। डीएचआर को विश्व विरासत का दर्जा 1999 में मिला था।
गौरतलब है कि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो) के आंदोलन के दौरान अब तक दो ट्वाय ट्रेन स्टेशन सोनादा एवं गायाबाड़ी आगजनी के शिकार हो चुके हैं जबकि डीएचआर के एलिसिया बिल्डिंग स्थित मुख्यालय में भी आगजनी की कोशिश हो चुकी है। यूनेस्को के दिल्ली स्थित कार्यालय के सेक्शन चीफ एवं प्रोग्राम स्पेशलिस्ट फॉर कल्चर मोइ चिबा ने कहा-'हम डीएचआर को लेकर काफी चिंतित है।
यह उत्कृष्ट विश्व मान का विरासती प्रतीक है। दार्जिलिंग में चल रहे बेमियादी बंद से डीएचआर को जो नुकसान पहुंचा है, उसे देखते हुए अगले साल होने वाली विश्व विरासती कमेटी की बैठक में इसे मिले विरासती दर्जे की समीक्षा की जा सकती है।'
गौरतलब है कि भारतीय रेलवे एवं यूनेस्को डीएचआर के लिए एक विस्तृत संरक्षण प्रबंधन योजना (सीसीएमपी) पर काम कर रहे हैं, जो 2016 के मध्य से शुरू हुआ था। इस योजना के लिए कर्सियांग स्थित ट्वाय ट्रेन स्टेशन में विशेषज्ञों की टीम के लिए एक कार्यालय भी खोला गया था। गत 12 जून को पहाड़ में हालात बिगड़ने के बाद इस कार्यालय को बंद करना पड़ा एवं सुरक्षा के मद्देनजर टीम को लौट जाने को कहा गया। यूनेस्को ने दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित अपने कार्यालय में फिलहाल एक अस्थायी कार्यालय खोला है।
चिबा ने आगे कहा-'पहाड़ में हालात सामान्य होने के बाद हमारी टीम वहां जाकर इस विश्व विरासत को पहुंचे नुकसान का आकलन करेगी।' सीसीएमपी से जुड़ी ऐश्वर्या टिपनिस ने कहा-'यह विरासती दर्जा पाने वाला एशिया का पहला औद्योगिक विरासती स्थल है। डीएचआर एक बड़ी आबादी की दैनिक जिंदगी से जुड़ा है। हमें उम्मीद है कि वहां के हालात जल्द सामान्य होंगे।' गौरतलब है कि डीएचआर के अलावा नीलगिरि माउंटेन रेलवे, कालका-शिमला रेलवे एवं मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस स्टेशन को विश्व विरासत का दर्जा मिला हुआ है। 1881 में स्थापित डीएचआर उलार पूर्व सीमांत रेलवे के अधीन है। 20 अक्टूबर, 1948 को इसे भारत सरकार ने अधिग्रहित किया था।
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