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‘खुशी’ दे रहा आजादी की ‘खुशी’ !

इसमें हिंदू,मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई सभी धर्मो के बच्चे आठवीं कक्षा तक की नि:शुल्क शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। बच्चों में नेपाली, आदिवासी, बिहारी, बंगाली सभी समुदाय के बच्चे शामिल हैं

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 09 Aug 2018 02:25 PM (IST)Updated: Thu, 09 Aug 2018 02:25 PM (IST)
‘खुशी’ दे रहा आजादी की ‘खुशी’ !
‘खुशी’ दे रहा आजादी की ‘खुशी’ !

सिलीगुड़ी इरफान-ए-आजम ’। काले अक्षरों से भेंट करना, पढ़-लिख कर अच्छा बनना, किसका सपना नहीं होता। पर, सपना हर किसी का साकार ही हो जाए यह मुमकिन तो नहीं। गरीबी भी तो एक बला है, जो सपनों पर पानी फेरने के लिए ही जानी जाती है।

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ऐसी ही गरीबी से लड़ते-लड़ते एक गरीब युवक आज कई गरीबों का संबल बन बैठा है। यह, ‘स्वतंत्रता का सारथी’ उन गरीब जरूरतमंद बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दे रहा है जिन तक सरकारें भी शिक्षा नहीं पहुंचा पाई हैं। वह युवक हैं 36 वर्षीय लेख बहादुर छेत्री (कटवाल) जो लोगों के बीच शिवा कटवाल के नाम से जाने जाते हैं।

चंपासारी के मिलन मोड़ के निकट कराई बाड़ी के एक किसान दंपति लाल बहादुर कटवाल (छेत्री) व स्वर्गीया दुर्गा देवी की आठ में से चौथी संतान शिवा कटवाल अभावों के चलते खुद ढंग से पढ़-लिख नहीं पाए। मगर, आज वह अपने ‘खुशी’ शिक्षा केंद्र के माध्यम से इलाके के लगभग 40 जरूरतमंद बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। शिवा ने वर्ष 2000 में डॉ. आई. बी. थापा मेमोरियल नेपाली हाईस्कूल (प्रधान नगर) से 10वीं की शिक्षा पूरी की पर तुरंत आगे नहीं पढ़ पाए। वजह गरीबी।

यह कसक हमेशा उन्हें सालती रही। एक समय उन्हें शिद्दत से यह अहसास हुआ कि उनकी ही तरह गरीबी के चलते और भी बहुतेरे होंगे जो पढ़ नहीं पा रहे होंगे, उनके लिए कुछ किया जाना चाहिए।

उसी अहसास ने अप्रैल 2000 में ‘खुशी’ (शिक्षा केंद्र) की बुनियाद डाल दी जो आज कईयों के लिए खुशी है। उनके पास अपना कोई भवन या ढंग का घर नहीं इसीलिए स्थानीय कराईबाड़ी देवराली युवा संघ में अपना नि:शुल्क शिक्षा केंद्र ‘खुशी’ चलाते हैं।

इसमें हिंदू,मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई सभी धर्मो के बच्चे आठवीं कक्षा तक की नि:शुल्क शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। बच्चों में नेपाली, आदिवासी, बिहारी, बंगाली सभी समुदाय के बच्चे शामिल हैं। इस केंद्र के तत्वावधान में बच्चों विशेष कर किशोरियों एवं युवतियों को नि:शुल्क कराटे प्रशिक्षण दिए जाने की भी व्यवस्था है। अब तक इनकी कक्षाएं जमीन पर ही चलती थीं मगर इसी साल तीन-चार महीने पहले लायंस क्लब ऑफ सिलीगुड़ी शताब्दी की ओर से 14 बेंच-डेस्क मिलने से कुछ संबल मिला है। अपने शिक्षा केंद्र ‘खुशी’ में बरस दो बरस पहले तक शिवा अकेले ही बच्चों को शिक्षा देते हैं।

इधर, स्थानीय एक छात्र नवराज शर्मा व उद्धव शर्मा आदि भी मदद करने लगे हैं। कराटे प्रशिक्षण में ब्लैक बेल्ट डबल डैन रामचंद्र सुबेदी सहायता कर रहे हैं।

इधर, तमाम मुश्किलों से लड़ते हुए शिवा ने वर्ष 2012 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपेन स्कूलिंग के माध्यम से अपनी भी 12वीं की पढ़ाई मुकम्मल कर डाली। अब, इग्नू से समाज शास्त्र में स्नातक कर रहे हैं। तृतीय वर्ष के छात्र हैं। आज भी अपने पेट की आग बुझाने के लिए वह बेगारी करते हैं। नए कपड़े खरीदने की हैसियत नहीं। पुराने कपड़े ही खरीद कर पहनते हैं।

इलाके में लोगों के घरों के निर्माण में सीमेंट मसाला बनाने व अन्य मजदूरी करते रहते हैं। यहां तक कि 100 दिनों की ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ‘मनरेगा’ तक के मजदूर हैं। पर, अब उन्हें दिलाने वाले मनरेगा का काम नहीं दिलाते। क्योंकि, वह काम दिलाने वालों को ‘पार्टी’ नहीं दे पाते। इलाके में कई लोग उन्हें पागल भी कहते हैं। पर, उन्हें कोई परवाह नहीं। वह शिक्षा की आजादी के अपने मिशन में रमे हुए हैं। उन्हें बस इसी बात की खुशी है कि उनका ‘खुशी’ आज बहुतों के लिए आजादी की ‘खुशी’ है।


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