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गुरुंग को रोकने के लिए लिया जा रहा तंत्र मंत्र का सहारा

-पातले वास स्थित आवास पर लगाया गया कटे हुए बकरे का सिर -बीती 11 जनवरी के बाद दोबारा हुई

By JagranEdited By: Published: Tue, 30 Jan 2018 07:02 PM (IST)Updated: Tue, 30 Jan 2018 07:02 PM (IST)
गुरुंग को रोकने के लिए लिया जा रहा तंत्र मंत्र का सहारा
गुरुंग को रोकने के लिए लिया जा रहा तंत्र मंत्र का सहारा

-पातले वास स्थित आवास पर लगाया गया कटे हुए बकरे का सिर

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-बीती 11 जनवरी के बाद दोबारा हुई घटना

संवादसूत्र, दार्जिलिंग : गोजमुमो प्रमुख व पूर्व जीटीए सुप्रीमो विमल गुरुंग की संभावित पहाड़ वापसी को रोकने के लिए अब अज्ञात तत्वों ने तंत्र मंत्र का सहारा लेना शुरू कर दिया है। इस बार गुरुंग के पातलेवास स्थित आवास के मुख्य प्रवेश द्वार पर बकरे का कटा हुआ सिर तथा सिंदूर और काला कपड़ा लगाने का क्रम बीती रात फिर दोहराया गया। बताते चलें कि इससे पूर्व बीती 11 जनवरी को भी गोजमुमो प्रमुख के घर के बाहर इसी तरह की घटना को अंजाम दिया गया था। हालांकि बीती रात की घटना के बाद से पहाड़ वासियों में चर्चा परिचर्चा का माहौल एक बार फिर गरम हो चला है। चर्चा जो भी हो किंतु हर ओर ऐसे कृत्य की भ‌र्त्सना की जा रही है। बीती रात गुरुंग के घर के बाहर लगाई गई आपत्ति जनक वस्तुओं के काला कपड़ा और सिंदूर एक बार फिर देखा गया है।

पहाड़ के जानकार इन घटनाओं के निहितार्थ भी निकाल रहे हैं। जानकारों का मानना है कि दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन हो चुका है तथा अब गुरुंग जिनको अभी भी राजनीतिक केंद्र के तौर पर देखा जाता है को रोकने के लिए काला जादू तंत्र मंत्र का सहारा आरंभ हो गया है। ऐसा नहीं कि घटना को होते समय किसी ने देखा नहीं किंतु अपरिहार्य कारणों से लोग इस विषय पर कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं।

बताते चलें कि वर्ष 1986 के आंदोलन के बाद ही पहाड़ की सियासत में तंत्र मंत्र व साधना का जोर शुरू हो चुका था। काले तंत्र का जादू कुछ ऐसा फैला कि देखते ही देखते पहाड़ के पवित्र महाकाल मंदिर जैसे पवित्र स्थान भी इसकी भेंट चढ़ गए। जिसके बाद इन घटनाओं ने तो मानो थमने का नाम ही नहीं लिया। प्राकृतिक आस्था का केंद्र त्रिवेणी खोला नदी के घाट भी प्राकृतिक पूजा के नाम पर मदिरा चढ़ाने की रस्मों से पूजे जाने लगे। ऐसा नहीं कि जीटीए प्रमुख विमल गुरुंग स्वयं ऐसी घटनाओं से अछूते रहे बाबा गुरूदेव के प्रति उनकी आस्था किसी से छिपी नहीं थी। जिसको आगे बढ़ाते हुए उन्होने सप्ताहव्यापी चंडी पाठ के सार्वजनिक कर इस चलन की शुरूआत की।

आस्था और विश्वास के चलन को विनय तामांग ने भी आगे बढ़ाया और जीटीए बोर्ड की कमान संभालने के बाद उन्होने शांति का धर्म कहे जाने वाले बौद्ध धर्म में आस्था को जगजाहिर किया। जिसके लिए तामांग ने बौद्ध धर्म गुरू लामा का सहारा लिया।

वैसे देखा जाए तो आस्था और विश्वास पवित्र तथा अति व्यक्तिगत विषय हैं किंतु यदि इनमें सियासत का रंग घोलकर तंत्र मंत्र से जोड़ दिया जाए तो यह कतई स्वीकार्य नहीं हो सकता है। ऐसी ही प्रतिक्रिया पहाड़ वासियों ने भी इन घटनाओं पर दी है।


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