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कर्सियांग के नेताजी संग्रहालय को भूल गई बंगाल सरकार

कर्सियांग से चार किलोमीटर दूर स्थित भाई शरत चंद्र बोस के भवन में सन 1938-39 में छह माह से अधिक समय के लिए नेताजी को नजरबंद कर रखा गया था।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 24 Jan 2018 03:35 PM (IST)Updated: Wed, 24 Jan 2018 03:35 PM (IST)
कर्सियांग के नेताजी संग्रहालय को भूल गई बंगाल सरकार
कर्सियांग के नेताजी संग्रहालय को भूल गई बंगाल सरकार

कर्सियांग, [मुरारी लाल पंचम]।  भारत की स्वतंत्रता के लिए हर कष्ट को खुशी खुशी सहने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के अवसर पर वैसे तो प्रशासन द्वारा कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया किंतु कर्सियांग से चार किलोमीटर स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस संग्रहालय की खराब हालत प्रशासन की अनदेखी और उदासीनता को बयान कर रही है। जहां एक ओर प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने को लेकर दो दो हाथ कर रही हैं तो वहीं उन्हीं के राज्य बंगाल में नेताजी संग्रहालय की खराब हालत नेताजी के सम्मान के प्रति प्रशासनिक गंभीरता को साफ बयान कर रही है। 

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बताते चलें कि कर्सियांग से करीब चार किलोमीटर दूर स्थित उनके भाई शरत चंद्र बोस के भवन में सन 1938-39 में करीब छह माह से अधिक समय के लिए नेताजी को नजरबंद कर रखा गया था। किंतु इस छोटे से समय में ही नेताजी ने यहां के बच्चों और स्थानीय लोगों से प्रेम का गहरा नाता बनाया था। आज भी बोस बाबू द्वारा लिखी गई चिट्ठियां हों या उनसे जुड़ी अन्य सामग्रियां भवन में मौजूद है। उक्त भवन को ही बाद में नेताजी संग्रहालय के रूप में जाना जाता है। संग्रहालय में ही रहने वाली मोती माया लेप्चा जो नेताजी के प्रवास के दौरान मात्र आठ वर्ष की थी का उनसे विशेष लगाव था और सुभाष चंद्र बोस भी उन्हें अपनी पुत्री के समान स्नेह देते थे। अब तक संग्रहालय की देखरेख करने वाली लेप्चा का निधन गत वर्ष ही हुआ है। शुरूआत में तो लेप्चा को संग्रहालय की देखरेख करने के लिए सरकार की ओर से मात्र एक सौ से डेढ़ सौ रुपये ही दिए जाते थे किंतु बाद में स्थानीय मीडिया तथा समाज सेवी संगठनों द्वारा मामला प्रकाश में लाने के बाद उन्हें तीन हजार रुपये दिए जाने लगे। वर्तमान में संग्रहालय की देखरेख मात्र दो लोगों के हवाले है जिनमें गणोश प्रधान के अतिरिक्त एक अस्सी वर्षीय चौकीदार पदम बहादुर क्षेत्री कार्यरत हैं। संग्रहालय के रंग रोगन कार्य कर रहे स्थानीय ठेकेदार ने रवि प्रधान ने बताया कि बीते वर्ष 2017 में इस कार्य के लिए करीब दस लाख रुपये आवंटित किए गए थे।

प्रशासनिक उदासीनता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि संग्रहालय में आने वाले लोगों के लिए शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है। उन्होने यह भी बताया कि संग्रहालय में माली के पद पर कार्य कर रहीं मोतीमाया लेप्चा के निधन के एक वर्ष बाद भी आज तक उनके स्थान पर किसी की नियुक्ति नहीं की गई है। गौरतलब हो कि नेताजी संग्रहालय की मरम्मत कर वर्ष 2003 में सरकार द्वारा संग्रहालय के साथ ही सेंटर फार स्टडीज इन हिमालयन लैंग्वेज सोसाइटी एंड कल्चर स्थापित करने का निर्णय लिया गया था किंतु आज तक उक्त योजना अधर में ही लटकी है।


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