प्रिय मित्र की मां की बीमारी से हुई मौत ने झकझोर कर रख दिया प्रेरणा को इसलिए उसने...
अंधविश्वास चरम पर था। लोग अस्पताल जाने के बजाए झाड़फूंक में विश्वास करते थे। उसने ठान लिया कि इलाज के अभाव में किसी को मरने नहीं देगी।
सिलीगुड़ी, गौरव मिश्र। आंखों के सामने बीमारी के कारण सुनीता प्रधान की मां की बीमारी से हुई मौत ने मात्र 10 वर्ष की उम्र में प्रेरणा को इस हद तक झकझोर दिया कि उसने अपने जीवन का उद्देश्य ही बीमारों को अस्पताल पहुंचाने को बना लिया।
जलपाईगु़ड़ी जिला के नागराकाटा ब्लॉक में जंगलों से घिरे शिबचू वन बस्ती इलाके के लोग आज बीमार होते ही समय से अस्पताल पहुंचा दिए जाते हैं तो सिर्फ और सिर्फ प्रेरणा की बदौलत।
इस गांव की आबादी करीब 400 है। पहले लोग अस्पताल जाने के नाम से ही डरते थे। पूरे गांव में अंधविश्वास का माहौल बना हुआ था। जब प्रेरणा सुनार 10 साल की होगी तो उस समय उसने मलेरिया के चलते गांव में कई लोगों को मरते देखा। ये मौतें समय से अस्पताल न जाने व अंधविश्वास के कारण हुई थीं।
इस घटना के बाद ही उसने ठान लिया कि वह लोगों के मन से अस्पताल के भय को मिटा देगी। 14 साल की उम्र से ही गांव के लोगों की सेवा में लग गई। प्रेरणा सुनार संयुक्त परिवार में रहती हैं। उसके पिता लक्ष्मण सुनार दूध बेचने का काम करते हैं। मां मालती घर में ही रहती है।
वर्तमान समय में शिबचू वन बस्ती में मरीजों का एकमात्र भरोसा 24 वर्षीय युवती प्रेरणा सुनार ही है। प्रेरणा के प्रयास का ही नतीजा है कि अब बस्ती में किसी महिला का प्रसव घर में नहीं होता है। सूचना मिलते ही महिला को तुरंत अस्पताल में भर्ती करा देती हैं।
बच्चे को टीका लगवाना हो या किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य परिसेवा हो, लोग प्रेरणा के पास पहुंचकर उनकी राय लेते हैं। अगर मरीज सामान्य बीमार हो तो अपने पास मौजूद दवाएं भी मुहैया करा देती हैं। अगर बीमारी गंभीर हो या फिर मरीज की स्थिति नाजुक हो तो वह अपने खर्च या फिर चंदा एकत्र कर उसको पास के स्वास्थ्य केंद्र व अस्पताल में भर्ती करा देती है।
नागराकाटा से सटे 31 नंबर राष्ट्रीय राजमार्ग के खुनिया मोड़ से सड़क सीधे चापरामाड़ी जंगल से होते हुए झालंग व बिंदु से सात किलोमीटर दूर शिबचू वन बस्ती इलाका है। अधिकतर परिवार गरीबी रेखा से नीचे के हैं। जंगल से लकड़ी काटकर बिक्री करना व पशुपालन ही लोगों का मुख्य पेशा है। वन बस्ती से सबसे नजदीक उप स्वास्थ्य केंद्र की दूरी करीब 12 किलोमीटर है। गांव से होकर वाहन भी कम ही चलते हैं। इसलिये यहां किसी के बीमार होने पर लोगों के मुंह पर सबसे पहले प्रेरणा का नाम ही आता है।
बोलीं प्रेरणा
बचपन से ही गांव के हालात को देखती आ रही हूं। बीमारी के कारण लोगों को मरते देखा है। अंधविश्वास चरम पर था। लोग अस्पताल जाने के बजाए झाड़फूंक में विश्वास करते थे। उसने ठान लिया कि इलाज के अभाव में किसी को मरने नहीं देगी। बस अपने जीवन का उद्देश्य लोगों को समय से उपचार की सुविधा मुहैया कराना बना लिया। इसमें पिता सहित अन्य लोगों का भी सहयोग मिलता है।
-प्रेरणा सुनार