ताकत बढ़ाने के काम आने वाले संकटग्रस्त जीव पैंगोलिन की पश्चिम बंगाल से की जा रही तस्करी
शारीरिक ताकत बढ़ाने के काम आने वाले दुर्लभ जीव पैंगोलिन की तस्करी पश्चिम बंगाल से की जा रही है। बैकुंठपुर वन विभाग की टीम द्वारा पैंगोलिन को बरामद करने के बाद खुलासा हुआ।
सिलीगुड़ी [जागरण संवाददाता]। शारीरिक ताकत बढ़ाने के लिए दवा बनाने के काम आने वाले अति दुर्लभ प्रजाति के जीव पैंगोलिन की तस्करी का भंडाफोड़ हुआ है। हालांकि इस मामले में किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। सिलीगुड़ी से जलपाईगुड़ी की ओर जाने वाले राजमार्ग पर सारियाम इलाके से एक वाहन लावारिस वाहन जब्त किया गया, जिसमें एक पैंगोलिन तथा 32 किलोग्राम गांजा को बैकुंठपुर वन विभाग के अधिकारियों ने बरामद किया। वाहन किसका है, यह पड़ताल की जा रही है।
वन विभाग के बेलाकोबा रेंज के रेंजर संजय दत्त ने बताया कि दक्षिण एशियाई यह जीव बहुत ही फायदेमंद है। इस छोटे से जीव की कीमत आज के बाजार में लगभग 15 लाख रुपये है। बरामद पैंगोलिन को असम से लाए जाने की पूरी संभावना है। इसका मुख्य भोजन कीड़े मकोड़े के साथ-साथ चींटी और दीमक हैं। इसे देखने में इसकी त्वचा बिल्कुल खजूर के पेड़ के छिलके जैसी होती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि कोई भी खतरा आने से पहले यह बिल्कुल सिकुड़कर गेंद के समान हो जाता है। यूं तो पैंगोलिन की सात प्रजाति होती हैं। पर, भारत में केवल दो प्रजातियों का पेंगोलिन पाया जाता है।
इसे आइयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फार कंजर्वेशन ऑफ नेचर) द्वारा संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची में शामिल किया गया है। यह प्रजाति संरक्षित है। यह बांग्लादेश, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल, ताइवान, थाइलैंड और वियतनाम में राष्ट्रीय कानूनों से संरक्षित है। इसे भारत मे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची एक में रखा गया है। इसका उपयोग अधिकतर शारीरिक ताकत बढ़ानेवाली दवा बनाने में किया जाता है। इसकी वजह से कीमत लाखों में है।
जानकारों की अगर मानें तो इसके अंगों की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 10-12 लाख रुपये तक मिलती है लेकिन भारत में इसे 20 हजार रुपये में बेचा जाता है। इसका उपयोग चीन और थाईलैंड जैसे देशों में ताकत और मर्दानगी बढ़ाने वाली दवाओं को बनाने में किया जाता है।